November 3, 2009

श्री श्री इज़राइल मे

धर्म को धर्मनिरपेक्ष, व्यापार का सामाजीकरण और राजनीति का आध्यात्मिकरण
           
बेंगलुरु, अक्टूबर 21,2009: द आर्ट ऑंफ लिविंग के  संस्थापक परम पूज्य श्री श्री रविशंकरजी जो इज़राइल मे 19 से 23 अक्टूबर ,2009 तक पाँच दिवसीय दौरे पर है ने टी ए विश्वविघालय मे व्यापार जगत के नेताओं को सम्बोधित करते हुए बेहतर विश्व के लिये '' धर्म को धर्मनिरपेक्ष, व्यापार का सामाजीकरण और राजनीति का आध्यात्मिकरण '' करने की बात कही । इस देश मे श्री श्री दूसरी इज़राइली राष्ट्रपति सम्मेलन मे सम्बोधित करने गये है । इस सम्मेलन का शीर्षक '' फेसिंग टूमोरो '' है और इसका उद्धाटन इज़राइल के माननीय राष्ट्रपति शिमोन पेरेस द्वारा किया गया और इसमे श्री श्री माननीय राष्ट्रपति के साथ मंच पर हिस्सेदार होंगे ।
इस सम्मेलन मे आर्थिक मंदी, निरंतर पारिस्थितिकी विकृति, मध्य पूर्वी देशो मे राजनीतिक अस्थिरता और ईरान की परमाणु शस्त्र प्राप्त करने की पहल जैसे विषयो पर चर्चा होगी ।इसमे विश्व के अनेक गणमान्य लोग,बुध्दिजीवी, राजनेता और अनेक प्रधान मंत्री,मंत्रीगण,और राजदूत सम्मलित है ।
सम्मेलन के दौरान एक चर्चा के अलावा, दिनांक 22 अक्टूबर 2009 को श्री श्री का प्रसिध्द इज़राइली पत्रकार, टीवी और रेडियो निर्माता दन शिलोन के द्वारा साक्षात्कार लिया जायेगा । दन शिलोन को विशेष अतिथियो जिनके जीवन की कथा उपलब्धियो, सृजनकता और नेतृत्व का शानदार प्रदर्शन है का  साक्षात्कार करने का 45 वर्ष का विशाल अनुभव है ।



प्रथम दिन टी ए विश्वविघालय मे व्यापार जगत के नेताओं को श्री श्री ने सम्बोधित किया, हरब्यिु विश्वविघालय मे सार्वजनिक चर्चा मे '' युवा वर्तमाान का नेतृत्व ''शीर्षक पर सार्वजनिक चर्चा  दी और इज़राइली संसद मे मुलाकात एवं चर्चा करी ।
टी ए विश्वविघालय मे श्रोताओ को सम्बोधित काते हुए श्री श्री ने महत्वपूर्ण चुनौतीया  जैसे शांति, आतंकवाद,  व्यापार मे  नैतिकता, युवाओ के विषय इत्यादि पर गहराई से प्रकाश डाला । उन्होने कहा '' शांति सिर्फ संघर्ष का अभाव नही है । यह भितर की सकारात्मक भावना है ं। शांति और समृध्दि साथ मे चलते है । यदि कही शांति है तो वहा काफी समृध्दि होगी । मध्य पूर्वी देशो मे शांति स्थापित हो, आज यह पूरे विश्व की कामना है ।
द आर्ट ऑंफ लिविंग संस्था इज़राइल मे वर्ष 2003 से सक्रिय रुप से कार्य कर रही है, जब श्री श्री ने इज़राइल का दौरा किया और यहूदी ,इसाई,मुसलमानी और ड्ररुज़ समूदाय के धार्मिक गुरुओ को शांति का संदेश दिया ।उनके दौरे के उपरांत द आर्ट ऑंफ लिविंग कार्यशाला और आघात देखरेख कार्यक्रम प्रभावित क्षेत्रो आयोजित किये जा रहे है जिसमे गाज़ा पट्टी, वेस्ट बैंक क्षेत्र, जेरुसलेम,टूलकरेम, हैफा और सडेरोट सम्मलित है ।

October 17, 2009

दिवाली : हर दिल में प्रेम का दिया जलाते चलो - परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर

एक दीपक की बाती को जलने के लिये उसे तेल में डूबे होना चाहिये, और साथ ही तेल के बाहर भी रहना चाहिये. यदि बाती तेल में पूरी डूब जाये तो वह प्रकाश नहीं दे सकती. जीवन भी दीपक की बाती के समान है, तुम्हें संसार में रहते हुए भी उसके ऊपर निष्प्रभावित रहना होता है. अगर तुम पदार्थ जगत में डूबे हुए हो, तो जीवन में आनन्द और ज्ञान नहीं ला पाओगे. संसार में रहते हुए भी, सांसारिक माया के ऊपर उठकर  हम  आनन्द और ज्ञान के ज्योति प्रकाश बन सकते हैं.  
इस प्रकार से ज्ञान के प्रकाश के प्रकट होने का उत्सव ही दिवाली है. दीपावली बुराई पर अच्छाई का, अन्धकार पर प्रकाश का और अज्ञान पर ज्ञान के विजय का त्योहार है। इस दिन घरों में करी जाने वाली रोशनी न केवल सजावट के लिये होती है, बल्कि वह जीवन के गहरे सत्य को भी अभिव्यक्त करती है। हरेक दिल में प्रेम और ज्ञान की लौ को प्रज्जवलित करें और सभी के चेहरों पर सच्ची मुस्कान लायें.
प्रत्येक मनुष्य में कुछ सद्गुण होते हैं। आपके द्वारा प्रज्ज्वलित प्रत्येक दीपक इसी का प्रतीक है। कुछ में धैर्य होता है, कुछ में प्रेम, शक्ति, उदारता, अन्य में लोगों को साथ मिलाकर चलने की क्षमता होती है। आप में स्थित अव्यक्त सद्गुण दीपक के समान हैं। केवल एक ही दीप जला कर संतुष्ट न हों;  हज़ारों दीप प्रज्जवलित करें क्योंकि अज्ञान के अन्धकार को दूर करने के लिये अनेक ज्योत जलाने होंगे । ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित होने से आत्मस्वरूप के सभी पहलु जाग्रत हो जाते हैं. और उनका जाग्रत और प्रकाशित हो जाना ही दीपावली है.
जीवन का एक और गूढ़ रहस्य दिवाली के पटाखों के फूटने में है। जीवन में कई बार आप पटाखों के समान अपनी दबी हुई भावनाओं, कुंठाओं और क्रोध के कारण अति ज्वलनशील रहते हैं – बस फूटने के लिये तैयार. अपने राग- द्वेष, घृणा आदि को दबाकर फटने की उस स्थिति तक पहुँच जाते कि अब फूटे कि तब. पटाखे फोड़ने की प्रथा हमारे पूर्वजों द्वारा, लोगों की दबी हुई भावनाओं से मुक्ति पाने का एक सुन्दर मनोवैज्ञानिक उपाय है। जब आप बाहर विस्फोट देखते हैं तो आपके अंदर भी वैसी ही कुछ अनुभूति होती है. विस्फोट के साथ प्रकाशपुंज भी होता है। और आप अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होते हैं फिर अन्दर में शांति का उदय होता है।
अपने नित नूतन और चिर पुरातन स्वभाव का अनुभव करने के लिये इन दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना अति आवश्यक है. दीपावली का अर्थ है वर्तमान क्षण में जीना, अत: अतीत का पछतावा और भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान क्षण में जीयें. 
दीपावली की मिठाइयों और उपहारों के आदान प्रदान के पीछे भी एक मनोवैज्ञानिक पहलु है. पुरानी गलतफ़हमी की कड़वाहट को छोड़कर सम्बन्धों को मधुर बनाते चलो.
सेवा भाव के बिना हर उत्सव अधूरा है. परमात्मा ने जो कुछ भी हमें दिया है उस प्रसाद को हमें सबके साथ बाँटना है. क्योंकि जितना बाँटेंगे उतना ही उसकी कृपा और बरसती है. सही मायने में यही दीपावली का उत्सव है. उत्सव का और एक अर्थ है - अपने मतभेदों को मिटाकर अद्वैत आत्मा की ज्योति से अपने सच्चिदानन्द स्वरूप में विश्राम करना. दिव्य समाज की स्थापना के लिये हर दिल में ज्ञान व आनन्द की ज्योत जलानी होगी. और वह तभी सम्भव है यदि सब एक साथ मिलकर ज्ञान का उत्सव मनायें.
बीते हुए वर्ष के झगड़े फ़साद और नकारात्मकताओं को छोड़कर अपने भीतर उदित हुए ज्ञान पर प्रकाश डालकर एक नयी शुरुआत करना ही दीपावली का उत्सव है. जब सच्चा ज्ञान उदित होता है तब उत्सव होता है। अधिकतर उत्सव में हम अपनी सजगता या एकाग्रता खोने लगते हैं। उत्सव में सजगता बनाए रखने के लिये, हमारे ऋषियों नें प्रत्येक उत्सव को पावन बनाकर पूजा विधियों के साथ जोड़ दिया। इसलिये दिवाली भी पूजा का समय है। दिवाली का आध्यात्मिक पहलु उत्सव में गहरायी लाता है। प्रत्येक उत्सव में आध्यात्म होना चाहिये क्योंकि आध्यात्म के बिना उत्सव छिछला होता है।
जो ज्ञान में नहीं हैं उनके लिये वर्ष में एक बार ही दिवाली आती है, किंतु जो ज्ञानी हैं उनके लिये प्रत्येक दिन, प्रतिक्षण दिवाली है। इस दिवाली को ज्ञान के साथ मनायें और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें. अपने दिल में प्रेम का दीपक जलाओ; घर में समृद्धि का दीपक जलाओ; औरों की सेवा के लिये करुणा का दीपक जलाओ; अज्ञान के अन्धकार को मिटाने के लिये ज्ञान का दीपक जलाओ; और हमें दिव्यता द्वारा दिये सम्पन्नता के लिये शुक्राने के दीपक जलाओ. 

October 16, 2009

2009 कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से श्री श्री को नवाज़ा गया

2009 कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से श्री श्री को नवाज़ा गया

श्री श्री रविशंकर जी  2009 कल्चर इन बैलेंस अवार्ड ग्रहण करते हुए दिनांक 10 अक्टूबर 2009 डे्रसडेनजर्मनी, (दायें से बायें) प्रोफेसर बर्न्ड गुगेनबर्गरबर्लिन के लेसिंग विश्वविद्यालय के डीनडे्रसडेन की मेयर सुश्री हेल्मा आरोज़श्री श्री रविशंकर जीसंस्थापक आर्ट ऑफ लिविंगप्रोफेसर गेसन श्वानजर्मनी के राष्ट्रपति चुनाव 2009 के उम्मीदवार एवं बर्लिन के हम्बोल्ड वियद्रिना स्कूल ऑफ गवर्नेंस के डीननिरज् देवयूरोपीय संसद के ब्रिटिश सदस्यश्रीमती देवएवं श्री हंस जोकिम फ्रेसंचालक टिबेरियस फोरम

डे्रसडेन, जर्मनी, 10 अक्टूबर 2009 - आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के सस्ंथापक परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी को आज संस्कृति के सभी पहलूओं पर उत्कृष्ट योगदान और उनके विश्वव्यापी संस्कृति संतुलन के लिए 2009 कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से श्री श्री को नवाज़ा गया। अवार्ड को देने के लिए चयन समिति ने श्री श्री के अंतरसांस्कृतिक बातचीत, शांति, संघर्ष क्षेत्रों में सुलह, व्यवसाय में नैतिकता पर विशेष महत्तव दिया।

इस अवार्ड की स्थापना टिबेरियस फोरम द्वारा की गई और इसे डे्रसडेन के मेयर सुश्री हेल्मा आरोज़ द्वारा श्री श्री को यह पुरुस्कार दिया और लोगों ने खड़े होकर उनका अभिनंदन किया। यह पुरुस्कार समारोह डे्रसडेन के वॉक्सवैगन लैंडमार्क ट्रांसपेरेंट फैक्टरी में विश्व सांस्कृतिक फोरम के विशेष सत्र में हुआ।

बहुत से विशिष्ट व्यक्ति जैसे निरज् देव, यूरोपीय संसद के ब्रिटिश सदस्य, प्रोफेसर गेसन श्वान, जर्मनी के राष्ट्रपति चुनाव 2009 के उम्मीदवार एवं बर्लिन के हम्बोल्ड वियद्रिना स्कूल ऑफ गवर्नेंस के डीन, और प्रोफेसर बर्न्ड गुगेनबर्गर, बर्लिन के लेसिंग विश्वविद्यालय के डीन सम्मिलित थे ने श्री श्री की भरपूर प्रशंसा की।

अपने सम्बोधन में प्रोफेसर श्वान ने श्री श्री के शांति प्रयासों, विश्वव्यापी सेवा योजनायें एवं विश्व के विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक विषयों पर बहुमूल्य सलाहों की सराहना की। यह प्रशंसनीय है कि किस सौम्यतापूर्ण दृढ़संकल्प, शांत एवं उर्जावाद, पूरी एकाग्रता के साथ एवं शुध्द दयालुता के साथ श्री श्री लोगों को यह समझाते हैं कि वे शांति में तभी सहयोग दे सकते हैं जब वे स्वयं के आंतरिक भय एवं दूसरों के प्रति दुर्भावना से परे होंगे

प्रोफेसर गुगेनबर्गर ने श्री श्री के मानवतावादी प्रयास एवं विश्व में विभिन्नता को बढ़ावा, उसका संरक्षण और उत्सव के प्रयासों की सराहना की। उन्होनें कहा कि ''हर समाज को विभिन्नता का अधिकार है''। नीरज् देव (एम.ई.पी.) ने श्री श्री के यूरोप में पहल की सराहना की और द आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की श्वास, गहराई और बहु आयामी दृष्टिकोण के बारे में कहा। उन्होनें यह भी कहा कि वे करोड़ों लोगों के मित्र हैं राष्ट्रपति से लेकर मजदूर तक। लोगों को संकट से उबारना काफी प्रशंसनीय है यह भी उन्होनें कहा।

पुरुस्कार को प्राप्त कर श्री श्री ने कहा - ''मैं यह पुरुस्कार उन लोंगों के साथ बांटत हूँ जो हिंसारहित, तनावरहित समाज के लिए सक्रिय हैं। यह पुरुस्कार किसी व्यक्ति या व्यक्तित्व के लिए नहीं है परंतु उस सिध्दांत के लिए है जो एक संयुक्त परिवार और सांस्कृतिक अनेकता का आदर्श है''

देर शाम द आर्ट ऑफ लिविंग संस्था ने बर्लिन के हम्बोल्ड वियद्रिना स्कूल ऑफ गवर्नेंस के साथ मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेंडिंग में हस्ताक्षर किये। इसके पहले सुबह श्री श्री ने विश्वव्यापी करुणा, ज्ञान, मानवतावादिता पर विश्व सांस्कृतिक फोरम के अपने प्रमुख संबोधन पर कहा, इसके अलावा उन्होनें उन्होनें विभिन्न प्रश्नों के उत्तर देते हुए एक ध्यान भी करवाया। फोरम ने संपूर्ण जर्मनी, यूरोप एवं समाज के हर वर्ग के 500 प्रतिनिधियों को साथ में लाया जिसमें राजनितिज्ञ, धर्मगुरु, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, वैज्ञानिक, प्रोफेसर एवं मीडिया के विशेष व्यक्तित्व सम्मिलित थे। शुक्रवार को डे्रसडेन के हिल्टन होटल में श्री श्री ने ''लिविंग ह्यूमन वैल्यूस्'' विषय पर भारी संख्या में उपस्थित लोगों को संबोधित किया।

संपादक की टिप्पणी
  • विश्व सांस्कृतिक फोरम एक द्विवार्षिक समारोह की श्रंखला है जो विभिन्न सांस्कृतिक पहलु के मध्य में उचित संतुलन को स्थापित करने की आवश्यकता का परीक्षण करती है। http://www.wcf-dresden.com
  • द कल्चर इन बैलेंस अवार्ड की स्थापना टिबेरियस फोरम द्वारा की गई, जो एक जर्मन संस्था है जो सांस्कृति और अर्थशास्त्र के मध्य में संपर्क को पुन: सशक्त करने के लिए प्रतिबध्द है। http://www.forum-tiberius.com

August 25, 2009

गणेश चतुर्थी पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा



गणेश जी का प्रतीकवाद

परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी


गणेश दिव्यता की निराकार शक्ति हैं जिनको क्तों के लाभ के लिए एक शानदार रूप में प्रकट करा गया है. गण यानि समूह. ब्रह्मांड परमाणुओं और विभिन्न ऊर्जाओं का एक समूह है. इन विभिन्न ऊर्जा समूहों के ऊपर यदि कोई सर्वोपरि नियम न बन कर रहे तो यह ब्रह्माण्ड अस्त व्यस्त हो जाएगा. परमाणुओं और ऊर्जा के इन सभी समूहों के अधिपति गणेश है. वह परमतत्व चेतना हैं जो सब में व्याप्त है और इस ब्रह्मांड में व्यवस्था लाती

है.


आदि शंकर ने गणेश के सारतत्व का बड़ा सुन्दर वर्णन करा है. हालांकि गणेश भगवान को हाथी के सिर वाले रूप में पूजा जाता है, उनका यह स्वरूप हमें निराकार परब्रह्मरूपा की ओर ले जाने के लिए है. वे “अजम निर्विकल्पम निराकारमेकम” हैं. अर्थात वे अजन्मे है, गुणातीत है, व निराकार है और उस परमचेतना के प्रतीक हैं जो सर्वव्यापी है. गणेश वही शक्ति है जिस कारण से इस ब्रह्मांड का सृजन हुआ, जिससे सब कुछ प्रकट हुआ और जिसमें यह सब कुछ विलीन हो जाना है.

हम सब इस कहानी से परिचित हैं कि गणेश जी

कैसे हाथी के सिर वाले भगवान बने. शिव और पार्वती उत्सव मना रहे थे जिसमें पार्वती जी मैली हो गयीं. यह एहसास होने पर वे अपने शरीर पर लगी मिट्टी को हटाकर उससे एक लड़का बना देती हैं. वह स्नान करने जाती हैं और लड़के को पहरेदारी करने के लिए कहती है. जब शिव लौटते हैं, वह लड़का उन्हें पहचान नहीं पाता है और उके रस्ते को रोक देता है. तब शिवजी लड़के के सिर को काट देते हैं और अन्दर प्रवेश कर जाते हैं. पार्वती चौंक जाती हैं. वे समझाती हैं कि वह लड़का उनका बेटा था और शिव जी को हर हालत में उसे बचाने का निवेदन करती हैं. शिव जी अपने सहायकों को उत्तर दिशा की ओर इशारा करते हुए किसी सोते हुए का सिर लाने के लिये हते हैं. तब सहायक हाथी का सिर लेकर आते हैं जिसे

शिवजी लड़के के धड़ से जोड़ देते हैं और इस तरह गणेश की उत्पत्ति होती है.


क्या यह सुनने में कुछ अजीब सा है? पार्वती के शरीर पर मैल क्यों आया? सब कुछ जानने वाले शिव अपने ही बेटे को क्यों नहीं पहचान सके? शिव जो शांति के प्रतीक हैं उनमें क्या इतना गुस्सा था कि वे अपने ही बेटे का सिर काट दें? और गणेश का सिर हाथी का क्यों है? इसमें कुछ और गहरा रहस्य छिपा हुआ है.

पार्वती उत्सव की ऊर्जा का प्रतीक है. उनके मैला

होना इस बात का प्रतीक है कि उत्सव के दौरान हम आसानी से राजसिक हो सकते हैं या अपने अन्दर किसी चीज़ के प्रति ज्वर ला सकते हैं जिससे हम अपने केन्द्र से विचलित हो जायें. मैल अज्ञानता का प्रतीक है और शिव भोलेभाव, परमशांति और ज्ञान के प्रतीक है. गणेश ने शिव के पथ को रोका का अर्थ यह है कि अज्ञानता (जो इस सिर का गुण है) ज्ञान को पहचान नहीं पायी. फिर ज्ञान को अज्ञानता मिटानी पड़ी. इसका प्रतीक यही है कि शिव ने गणेश के सिर को काटा.


और हाथी का सिर क्यों? ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति दोनों

का प्रतिनिधित्व हाथी करता है. हाथी के गुण सिद्धांतत: बुद्धि और अप्रयत्नशीलता है. हाथी का बड़ा सिर बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है. हाथी न तो किसी अवरोध से बचने के लिये घूम कर निकलता है और न ही कोई बाधा उसे रोक पाती है. वह सभी बाधाओं को हटाते हुए सीधे चलता रहता है यह अप्रयत्नशीलता का लक्षण है. तो जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं तो हमारे भीतर भी यही हाथी वाले गुण आ जाते हैं.

गणेश का बड़ा पेट उदारता और पूर्ण स्वीकृति का प्रतीक है. गणेश के अभय मुद्रा में उठे हुए हाथ, संरक्षण का प्रतीक है - "घबराओ नहीं - मैं तुम्हारे साथ हूँ" और उनका दूसरा हाथ नीचे की तरफ है और हथेली बाहर की ओर है – जो कहती है कि वह निरंतर हमें दे रहे हैं वह साथ ही हमें समर्पण करने के लिए निमंत्रण दे रहे हैं - वह इस तथ्य की तरफ़ भी इंगित करती है कि एक दिन हम सभी को इस पृथ्वी में समा जाना है. गणेश जी का एक ही दंत है जो कि एकाग्रचित् होने का प्रतीक है. उनके हाथों में जो उपकरण हैं उनका भी प्रतीक है. वह अपने हाथों में अंकुश लिये हुए हैं जो कि सजगता का प्रतीक है और पाश है जो नियंत्रण का प्रतीक है. चेतना जागृ

त होने पर बहुत ऊर्जा निकलती है जो बिना किसी नियंत्रण के अस्त व्यस्त हो जायेगी.

और हाथी के सिर वाले गणेश की सवारी इतने छोटे से चूहे पर क्यों होती है? यह बात असंगत सी लगती है न? यहाँ भी एक प्रतीक है जो बहुत गहरा है. जो बन्धन बाँध कर रखते हैं उसे चूहा कुतर कुतर कर समाप्त कर देता है. चूहा उस मंत्र की भांति है जो धीरे-धीरे अज्ञान की एक-एक परत को काट कर भेद देता है, और उस परमज्ञान की ओर ले जाता है जिसका प्रतिनिधित्व गणेश करते हैं.

हमारे प्राचीन ऋशि बहुत बुद्धिमान थे, उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्त करा क्योंकि समय के साथ शब्द बदल जाते हैं परंतु प्रतीक समयातीत होते हैं. इन गहरे प्रतीकों को हम भी मन में रखें जब हम सर्वव्यापी शक्ति को गजानन गणेश के रूप में अनुभव करें, और साथ ही इसके प्रति भी पूर्ण सजगता रखें कि गणेश हमारे भीतर ही हैं. गणेश चतुर्थी उत्सव मनाते समय हमें इसी

ज्ञान को उठाना चाहिये

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