परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा स्थापित आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था आज १५० देशों में फैली हुई है| साधना, सेवा, सत्संग, योग, प्राणायाम व ज्ञान के माध्यम से लाखों लोग तनाव मुक्त हो रहे हैं| यहाँ आपको इस सुन्दर मार्ग पर चल रहे लोगों के कुछ अनुभव, गुरुदेव का ज्ञान, व अन्य रोचक खबरें मिलेंगी| आप भी अपने अनुभव को अपनी तस्वीर, नाम व परिचय के साथ deartanuj@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं
November 3, 2009
श्री श्री इज़राइल मे
October 17, 2009
दिवाली : हर दिल में प्रेम का दिया जलाते चलो - परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर
October 16, 2009
2009 कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से श्री श्री को नवाज़ा गया
- विश्व सांस्कृतिक फोरम एक द्विवार्षिक समारोह की श्रंखला है जो विभिन्न सांस्कृतिक पहलु के मध्य में उचित संतुलन को स्थापित करने की आवश्यकता का परीक्षण करती है। http://www.wcf-dresden.com
- द कल्चर इन बैलेंस अवार्ड की स्थापना टिबेरियस फोरम द्वारा की गई, जो एक जर्मन संस्था है जो सांस्कृति और अर्थशास्त्र के मध्य में संपर्क को पुन: सशक्त करने के लिए प्रतिबध्द है। http://www.forum-tiberius.com
August 25, 2009
गणेश चतुर्थी पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा
गणेश जी का प्रतीकवाद
परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी
गणेश दिव्यता की निराकार शक्ति हैं – जिनको भक्तों के लाभ के लिए एक शानदार रूप में प्रकट करा गया है. गण यानि समूह. ब्रह्मांड परमाणुओं और विभिन्न ऊर्जाओं का एक समूह है. इन विभिन्न ऊर्जा समूहों के ऊपर यदि कोई सर्वोपरि नियम न बन कर रहे तो यह ब्रह्माण्ड अस्त व्यस्त हो जाएगा. परमाणुओं और ऊर्जा के इन सभी समूहों के अधिपति गणेश हैं. वह परमतत्व चेतना हैं जो सब में व्याप्त है और इस ब्रह्मांड में व्यवस्था लाती
है.
आदि शंकर ने गणेश के सारतत्व का बड़ा सुन्दर वर्णन करा है. हालांकि गणेश भगवान को हाथी के सिर वाले रूप में पूजा जाता है, उनका यह स्वरूप हमें निराकार परब्रह्मरूपा की ओर ले जाने के लिए है. वे “अजम निर्विकल्पम निराकारमेकम” हैं. अर्थात वे अजन्मे हैं, गुणातीत हैं, व निराकार हैं और उस परमचेतना के प्रतीक हैं जो सर्वव्यापी है. गणेश वही शक्ति है जिस कारण से इस ब्रह्मांड का सृजन हुआ, जिससे सब कुछ प्रकट हुआ और जिसमें यह सब कुछ विलीन हो जाना है.
हम सब इस कहानी से परिचित हैं कि गणेश जी
कैसे हाथी के सिर वाले भगवान बने. शिव और पार्वती उत्सव मना रहे थे जिसमें पार्वती जी मैली हो गयीं. यह एहसास होने पर वे अपने शरीर पर लगी मिट्टी को हटाकर उससे एक लड़का बना देती हैं. वह स्नान करने जाती हैं और लड़के को पहरेदारी करने के लिए कहती हैं. जब शिव लौटते हैं, वह लड़का उन्हें पहचान नहीं पाता है और उनके रस्ते को रोक देता है. तब शिवजी लड़के के सिर को काट देते हैं और अन्दर प्रवेश कर जाते हैं. पार्वती चौंक जाती हैं. वे समझाती हैं कि वह लड़का उनका बेटा था और शिव जी को हर हालत में उसे बचाने का निवेदन करती हैं. शिव जी अपने सहायकों को उत्तर दिशा की ओर इशारा करते हुए किसी सोते हुए का सिर लाने के लिये कहते हैं. तब सहायक हाथी का सिर लेकर आते हैं जिसे
शिवजी लड़के के धड़ से जोड़ देते हैं और इस तरह गणेश की उत्पत्ति होती है.
क्या यह सुनने में कुछ अजीब सा है? पार्वती के शरीर पर मैल क्यों आया? सब कुछ जानने वाले शिव अपने ही बेटे को क्यों नहीं पहचान सके? शिव जो शांति के प्रतीक हैं उनमें क्या इतना गुस्सा था कि वे अपने ही बेटे का सिर काट दें? और गणेश का सिर हाथी का क्यों है? इसमें कुछ और गहरा रहस्य छिपा हुआ है.
पार्वती उत्सव की ऊर्जा का प्रतीक है. उनके मैला
होना इस बात का प्रतीक है कि उत्सव के दौरान हम आसानी से राजसिक हो सकते हैं या अपने अन्दर किसी चीज़ के प्रति ज्वर ला सकते हैं जिससे हम अपने केन्द्र से विचलित हो जायें. मैल अज्ञानता का प्रतीक है और शिव भोलेभाव, परमशांति और ज्ञान के प्रतीक हैं. गणेश ने शिव के पथ को रोका का अर्थ यह है कि अज्ञानता (जो इस सिर का गुण है) ज्ञान को पहचान नहीं पायी. फिर ज्ञान को अज्ञानता मिटानी पड़ी. इसका प्रतीक यही है कि शिव ने गणेश के सिर को काटा.
और हाथी का सिर क्यों? ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति दोनों
का प्रतिनिधित्व हाथी करता है. हाथी के गुण सिद्धांतत: बुद्धि और अप्रयत्नशीलता है. हाथी का बड़ा सिर बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है. हाथी न तो किसी अवरोध से बचने के लिये घूम कर निकलता है और न ही कोई बाधा उसे रोक पाती है. वह सभी बाधाओं को हटाते हुए सीधे चलता रहता है– यह अप्रयत्नशीलता का लक्षण है. तो जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं तो हमारे भीतर भी यही हाथी वाले गुण आ जाते हैं.
गणेश का बड़ा पेट उदारता और पूर्ण स्वीकृति का प्रतीक है. गणेश के अभय मुद्रा में उठे हुए हाथ, संरक्षण का प्रतीक है - "घबराओ नहीं - मैं तुम्हारे साथ हूँ" और उनका दूसरा हाथ नीचे की तरफ है और हथेली बाहर की ओर है – जो कहती है कि वह निरंतर हमें दे रहे हैं वह साथ ही हमें समर्पण करने के लिए निमंत्रण दे रहे हैं - वह इस तथ्य की तरफ़ भी इंगित करती है कि एक दिन हम सभी को इस पृथ्वी में समा जाना है. गणेश जी का एक ही दंत है जो कि एकाग्रचित् होने का प्रतीक है. उनके हाथों में जो उपकरण हैं उनका भी प्रतीक है. वह अपने हाथों में अंकुश लिये हुए हैं जो कि सजगता का प्रतीक है और पाश है जो नियंत्रण का प्रतीक है. चेतना जागृ
त होने पर बहुत ऊर्जा निकलती है जो बिना किसी नियंत्रण के अस्त व्यस्त हो जायेगी.
और हाथी के सिर वाले गणेश की सवारी इतने छोटे से चूहे पर क्यों होती है? यह बात असंगत सी लगती है न? यहाँ भी एक प्रतीक है जो बहुत गहरा है. जो बन्धन बाँध कर रखते हैं उसे चूहा कुतर कुतर कर समाप्त कर देता है. चूहा उस मंत्र की भांति है जो धीरे-धीरे अज्ञान की एक-एक परत को काट कर भेद देता है, और उस परमज्ञान की ओर ले जाता है जिसका प्रतिनिधित्व गणेश करते हैं.
हमारे प्राचीन ऋशि बहुत बुद्धिमान थे, उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्त करा क्योंकि समय के साथ शब्द बदल जाते हैं परंतु प्रतीक समयातीत होते हैं. इन गहरे प्रतीकों को हम भी मन में रखें जब हम सर्वव्यापी शक्ति को गजानन गणेश के रूप में अनुभव करें, और साथ ही इसके प्रति भी पूर्ण सजगता रखें कि गणेश हमारे भीतर ही हैं. गणेश चतुर्थी उत्सव मनाते समय हमें इसी
ज्ञान को उठाना चाहिये
.