October 17, 2009

दिवाली : हर दिल में प्रेम का दिया जलाते चलो - परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर

एक दीपक की बाती को जलने के लिये उसे तेल में डूबे होना चाहिये, और साथ ही तेल के बाहर भी रहना चाहिये. यदि बाती तेल में पूरी डूब जाये तो वह प्रकाश नहीं दे सकती. जीवन भी दीपक की बाती के समान है, तुम्हें संसार में रहते हुए भी उसके ऊपर निष्प्रभावित रहना होता है. अगर तुम पदार्थ जगत में डूबे हुए हो, तो जीवन में आनन्द और ज्ञान नहीं ला पाओगे. संसार में रहते हुए भी, सांसारिक माया के ऊपर उठकर  हम  आनन्द और ज्ञान के ज्योति प्रकाश बन सकते हैं.  
इस प्रकार से ज्ञान के प्रकाश के प्रकट होने का उत्सव ही दिवाली है. दीपावली बुराई पर अच्छाई का, अन्धकार पर प्रकाश का और अज्ञान पर ज्ञान के विजय का त्योहार है। इस दिन घरों में करी जाने वाली रोशनी न केवल सजावट के लिये होती है, बल्कि वह जीवन के गहरे सत्य को भी अभिव्यक्त करती है। हरेक दिल में प्रेम और ज्ञान की लौ को प्रज्जवलित करें और सभी के चेहरों पर सच्ची मुस्कान लायें.
प्रत्येक मनुष्य में कुछ सद्गुण होते हैं। आपके द्वारा प्रज्ज्वलित प्रत्येक दीपक इसी का प्रतीक है। कुछ में धैर्य होता है, कुछ में प्रेम, शक्ति, उदारता, अन्य में लोगों को साथ मिलाकर चलने की क्षमता होती है। आप में स्थित अव्यक्त सद्गुण दीपक के समान हैं। केवल एक ही दीप जला कर संतुष्ट न हों;  हज़ारों दीप प्रज्जवलित करें क्योंकि अज्ञान के अन्धकार को दूर करने के लिये अनेक ज्योत जलाने होंगे । ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित होने से आत्मस्वरूप के सभी पहलु जाग्रत हो जाते हैं. और उनका जाग्रत और प्रकाशित हो जाना ही दीपावली है.
जीवन का एक और गूढ़ रहस्य दिवाली के पटाखों के फूटने में है। जीवन में कई बार आप पटाखों के समान अपनी दबी हुई भावनाओं, कुंठाओं और क्रोध के कारण अति ज्वलनशील रहते हैं – बस फूटने के लिये तैयार. अपने राग- द्वेष, घृणा आदि को दबाकर फटने की उस स्थिति तक पहुँच जाते कि अब फूटे कि तब. पटाखे फोड़ने की प्रथा हमारे पूर्वजों द्वारा, लोगों की दबी हुई भावनाओं से मुक्ति पाने का एक सुन्दर मनोवैज्ञानिक उपाय है। जब आप बाहर विस्फोट देखते हैं तो आपके अंदर भी वैसी ही कुछ अनुभूति होती है. विस्फोट के साथ प्रकाशपुंज भी होता है। और आप अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होते हैं फिर अन्दर में शांति का उदय होता है।
अपने नित नूतन और चिर पुरातन स्वभाव का अनुभव करने के लिये इन दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना अति आवश्यक है. दीपावली का अर्थ है वर्तमान क्षण में जीना, अत: अतीत का पछतावा और भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान क्षण में जीयें. 
दीपावली की मिठाइयों और उपहारों के आदान प्रदान के पीछे भी एक मनोवैज्ञानिक पहलु है. पुरानी गलतफ़हमी की कड़वाहट को छोड़कर सम्बन्धों को मधुर बनाते चलो.
सेवा भाव के बिना हर उत्सव अधूरा है. परमात्मा ने जो कुछ भी हमें दिया है उस प्रसाद को हमें सबके साथ बाँटना है. क्योंकि जितना बाँटेंगे उतना ही उसकी कृपा और बरसती है. सही मायने में यही दीपावली का उत्सव है. उत्सव का और एक अर्थ है - अपने मतभेदों को मिटाकर अद्वैत आत्मा की ज्योति से अपने सच्चिदानन्द स्वरूप में विश्राम करना. दिव्य समाज की स्थापना के लिये हर दिल में ज्ञान व आनन्द की ज्योत जलानी होगी. और वह तभी सम्भव है यदि सब एक साथ मिलकर ज्ञान का उत्सव मनायें.
बीते हुए वर्ष के झगड़े फ़साद और नकारात्मकताओं को छोड़कर अपने भीतर उदित हुए ज्ञान पर प्रकाश डालकर एक नयी शुरुआत करना ही दीपावली का उत्सव है. जब सच्चा ज्ञान उदित होता है तब उत्सव होता है। अधिकतर उत्सव में हम अपनी सजगता या एकाग्रता खोने लगते हैं। उत्सव में सजगता बनाए रखने के लिये, हमारे ऋषियों नें प्रत्येक उत्सव को पावन बनाकर पूजा विधियों के साथ जोड़ दिया। इसलिये दिवाली भी पूजा का समय है। दिवाली का आध्यात्मिक पहलु उत्सव में गहरायी लाता है। प्रत्येक उत्सव में आध्यात्म होना चाहिये क्योंकि आध्यात्म के बिना उत्सव छिछला होता है।
जो ज्ञान में नहीं हैं उनके लिये वर्ष में एक बार ही दिवाली आती है, किंतु जो ज्ञानी हैं उनके लिये प्रत्येक दिन, प्रतिक्षण दिवाली है। इस दिवाली को ज्ञान के साथ मनायें और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें. अपने दिल में प्रेम का दीपक जलाओ; घर में समृद्धि का दीपक जलाओ; औरों की सेवा के लिये करुणा का दीपक जलाओ; अज्ञान के अन्धकार को मिटाने के लिये ज्ञान का दीपक जलाओ; और हमें दिव्यता द्वारा दिये सम्पन्नता के लिये शुक्राने के दीपक जलाओ. 

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