नवभारत टाइम्स, 7th February, 2010
हर चेहरे पर मुस्कान देखने की तमन्ना रखने वाले आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकरविश्वशांति, सौहार्द और सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता के लिए भी जाने जाते हैं। पिछले दिनों 'मेरी दिल्ली, मेरी यमुना'अभियान के तहत वह दिल्ली में थे। इस दौरान राजेश मिश्र और प्रभात गौड़ ने उनसे कई मुद्दों पर बातचीत की। पेश हैं इसबातचीत के प्रमुख अंश:
आपने यमुना की सफाई का अभियान शुरू किया है, लेकिन लोग हैं कि धर्म के नाम पर हवन सामग्री, फूल और न जानेक्या-क्या, यमुना में प्रवाहित करते हैं। आप लोगों का आह्वान क्यों नहीं करते कि ऐसी चीजों को यमुना में बहाना धर्म केखिलाफ है?
जहां तक फूल, पत्ते, मिट्टी आदि का सवाल है, तो उसे पानी में बहाने में कोई हर्ज नहीं है। ये चीजें बायोडिग्रेडेबल होती हैंजिनका कोई नुकसान नहीं होता। असली दिक्कत तब आती है जब हम केमिकल और पेंट से बनी हुई चीजें यमुना या गंगा मेंबहाते हैं। ऐसी चीजों को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता लाई जानी चाहिए।
शिवसेना और राज ठाकरे आजकल जिस तरह की विभाजन की राजनीति कर रहे हैं, उससे देश को मुक्ति कैसे मिले? आपकोनहीं लगता कि इन्हें भी आर्ट ऑफ लिविंग की जरूरत है?
देखिए, जनता में इसके प्रति सजगता जरूरी है। जनता अगर यह जान ले कि खंडित और सीमित सोच वाले ऐसे राजनेता सिर्फअपना उल्लू सीधा करने के लिए उन्हें बरगला रहे हैं, तो ये अपने आप खत्म हो जाएंगे। जहां तक आर्ट ऑफ लिविंग की बात हैतो उससे तो सभी को फायदा होता है। जाहिर है, सभी लोगों में ऐसे राजनेता भी शामिल हैं।
अगर कोई शख्स लगातार हमारे साथ बुरा किए जा रहा है तो उसके साथ कैसे पेश आना चाहिए?
यह आपके भाव पर निर्भर करता है कि आप उसके साथ किस तरह पेश आएंगे। कोई भी इंसान बुरा नहीं होता। उसे कोई नकोई तकलीफ होती है। हो सकता है, अपनी परेशानियों की वजह से वह बुरा बन गया हो। अगर आप उसे दंड भी देना चाहते हैंतो उसके पीछे मकसद सुधार का होना चाहिए। सुधारक के दृष्टिकोण से कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं होता। सीमित ज्ञान याअज्ञान की वजह से कोई व्यक्ति बुरा बन जाता है। उसे एजुकेट और प्रशिक्षित करना ही सही रास्ता है।
भारत पर भूतकाल में कई हमले हुए हैं। वर्तमान में भी हम निशाने पर हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?
हमलावरों को ऐसे ही छोड़ देना ठीक नहीं है। ऐसी परिस्थिति आने पर हमें कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन दूसरों के साथसख्ती के बावजूद हमारा भाव सुधार का ही होना चाहिए।
आप कहते हैं - एक्सेप्ट द सिचुएशन एज इट इज। क्या गलत को भी स्वीकार कर लें?
पहले स्वीकार करो कि यह गलत है। यह मत पूछो कि क्यों गलत है। हमारी सारी परेशानियां की वजह यह है कि हम सोचते हैंकि ये क्यों गलत है? किसी ने ऐसा क्यों कहा? भूतकाल को हम क्वेश्चन करते रहते हैं। इससे हम और भी ज्यादा परेशान होजाते हैं। स्वीकार मतलब, भूतकाल को स्वीकार करना कि ऐसा है। चोर क्यों है, ये पूछने से कोई फायदा नहीं है। चोर है येस्वीकार किया, फिर उसके लिए जो सजा तय है, उसे मिलनी चाहिए।
अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए?
मैं तो अभी बच्चा ही हूं। मेरा बचपन कभी खत्म ही नहीं हुआ है। न आगे होने की संभावना है। मैं जैसा पहले था, आज भी वैसाही हूं।
आपने शादी नहीं की?
(हंसकर) मैंने कहा न, मैं अभी बच्चा हूं और अपने देश में बाल-विवाह गैरकानूनी है।
ज्ञान प्राप्ति के बाद आपमें क्या बदलाव आए?
मैं पहले से ऐसा ही हूं। मुझमें कुछ बदलाव नहीं आए। बस भीतर एक तड़प थी जो खत्म हो गई।
10 दिन की मौन साधना में क्या हुआ?
जो मैं था, वह औरों को दिखाना चाहता था, बताना चाहता था। दूसरों को उसकी अनुभूति करानी थी। एक प्रेम का अनुभव दूसरेलोगों में पैदा करना चाहता था। दस दिन के मौन के बाद अपने आप ही वह मार्ग मिल गया।
लेकिन कुछ तो चेंज आए होंगे?
हां कुछ तो था जिसे बाहर निकालना था, लोगों के बीच बांटना था। लेकिन उससे पहले भी हम योग, प्राणायाम और ध्यान लोगोंको सिखाते थे। उस वक्त लगता था कि कुछ और भी भीतर है जो लोगों के बीच पहुंचाना है। दस दिनों की साधना के दौरान यहअनुभूति होने लगी कि 'सुदर्शन क्रिया' के इस विशिष्ट ज्ञान को औरों तक पहुंचाना है।
सेक्स के बारे में सही नजरिया क्या होना चाहिए? ब्रह्माचर्य या फिर जितनी मर्जी उतना करो?
यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। अगर कोई सेक्स की अति पर पहुंच जाए, तो ऐसे लोगों के लिए तंत्र में कई तरह की साधनाओंका जिक्र है। सेक्स से परे जाने के लिए भारत के कुछ मंदिरों में नग्न प्रतिमाओं के सामने बैठकर ध्यान करने की भी पद्धतिरही है। साधक वहां बैठकर ध्यान करते थे और सेक्स से ऊपर उठ जाते थे। लेकिन ये सबके लिए नहीं है। सबको इसकी जरूरतभी नहीं है। ध्यान और प्राणायाम करने से भी शरीर और मन की तरंगें बदलती हैं। और व्यक्ति आत्मिक रूप से मजबूत होजाता है।
क्या आप ब्रह्माचर्य के पक्ष में हैं?
ब्रह्माचर्य सहज ही सिद्ध हो तो ठीक है, लेकिन भावनाओं का दमन नहीं करना चाहिए। प्राणायाम, ध्यान और योग के मार्ग मेंजो उतरते हैं उनका ब्रह्माचर्य सहज ही फलित होने लगता है।
आप हर चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं। यह कैसे संभव है?
देखिए, जो हमारे समाने आता है, वह तो मुस्कुराता ही है। और में उसी चेहरे को देखता हूं, जो मेरे सामने आता है।
आप दुनिया को क्या देना चाहते हैं?
मेरे पास सबके लिए बस प्रेम ही प्रेम है। मैं प्यार ही दे सकता हूं, प्यार के सिवा कुछ भी नहीं।
लेकिन एक आम आदमी के लिए आपसे मिलना और आप तक पहुंचना बेहद कठिन है।
नहीं, ऐसा तो नहीं है। मैं तो रोजाना हजारों लोगों से मिलता हूं, उनसे बात करता हूं। हां, कई बार व्यस्त कार्यक्रम के चलतेवक्त निकालना मुश्किल हो जाता है।
हमारे रीडर्स के लिए आपका कोई संदेश?
जीवन एक उत्सव है। इसे मस्त होकर जीना चाहिए। रूखा सूखा जीना भी क्या जीनाअगर हम ये समझ सकें तो सारे तनावों सेमुक्त हो जाएंगे। इसलिए कहता हूं हंसो और हंसाओ, मत फंसो और फंसाओ।