February 12, 2010

अभी तो बच्चा हूं जी: श्री श्री रवि शंकर





नवभारत
 टाइम्स7th February, 2010

हर चेहरे पर मुस्कान देखने की तमन्ना रखने वाले आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकरविश्वशांतिसौहार्द और सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता के लिए भी जाने जाते हैं। पिछले दिनों 'मेरी दिल्लीमेरी यमुना'अभियान के तहत वह दिल्ली में थे। इस दौरान राजेश मिश्र और प्रभात गौड़ ने उनसे कई मुद्दों पर बातचीत की। पेश हैं इसबातचीत के प्रमुख अंश:

आपने यमुना की सफाई का अभियान शुरू किया हैलेकिन लोग हैं कि धर्म के नाम पर हवन सामग्रीफूल और  जानेक्या-क्यायमुना में प्रवाहित करते हैं। आप लोगों का आह्वान क्यों नहीं करते कि ऐसी चीजों को यमुना में बहाना धर्म केखिलाफ है?

जहां तक फूलपत्तेमिट्टी आदि का सवाल हैतो उसे पानी में बहाने में कोई हर्ज नहीं है। ये चीजें बायोडिग्रेडेबल होती हैंजिनका कोई नुकसान नहीं होता। असली दिक्कत तब आती है जब हम केमिकल और पेंट से बनी हुई चीजें यमुना या गंगा मेंबहाते हैं। ऐसी चीजों को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता लाई जानी चाहिए।

शिवसेना और राज ठाकरे आजकल जिस तरह की विभाजन की राजनीति कर रहे हैंउससे देश को मुक्ति कैसे मिलेआपकोनहीं लगता कि इन्हें भी आर्ट ऑफ लिविंग की जरूरत है?

देखिएजनता में इसके प्रति सजगता जरूरी है। जनता अगर यह जान ले कि खंडित और सीमित सोच वाले ऐसे राजनेता सिर्फअपना उल्लू सीधा करने के लिए उन्हें बरगला रहे हैंतो ये अपने आप खत्म हो जाएंगे। जहां तक आर्ट ऑफ लिविंग की बात हैतो उससे तो सभी को फायदा होता है। जाहिर हैसभी लोगों में ऐसे राजनेता भी शामिल हैं।

अगर कोई शख्स लगातार हमारे साथ बुरा किए जा रहा है तो उसके साथ कैसे पेश आना चाहिए?

यह आपके भाव पर निर्भर करता है कि आप उसके साथ किस तरह पेश आएंगे। कोई भी इंसान बुरा नहीं होता। उसे कोई कोई तकलीफ होती है। हो सकता हैअपनी परेशानियों की वजह से वह बुरा बन गया हो। अगर आप उसे दंड भी देना चाहते हैंतो उसके पीछे मकसद सुधार का होना चाहिए। सुधारक के दृष्टिकोण से कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं होता। सीमित ज्ञान याअज्ञान की वजह से कोई व्यक्ति बुरा बन जाता है। उसे एजुकेट और प्रशिक्षित करना ही सही रास्ता है।

भारत पर भूतकाल में कई हमले हुए हैं। वर्तमान में भी हम निशाने पर हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?

हमलावरों को ऐसे ही छोड़ देना ठीक नहीं है। ऐसी परिस्थिति आने पर हमें कठोर कार्रवाई करनी चाहिएलेकिन दूसरों के साथसख्ती के बावजूद हमारा भाव सुधार का ही होना चाहिए।

आप कहते हैं - एक्सेप्ट द सिचुएशन एज इट इज। क्या गलत को भी स्वीकार कर लें?

पहले स्वीकार करो कि यह गलत है। यह मत पूछो कि क्यों गलत है। हमारी सारी परेशानियां की वजह यह है कि हम सोचते हैंकि ये क्यों गलत हैकिसी ने ऐसा क्यों कहाभूतकाल को हम क्वेश्चन करते रहते हैं। इससे हम और भी ज्यादा परेशान होजाते हैं। स्वीकार मतलबभूतकाल को स्वीकार करना कि ऐसा है। चोर क्यों हैये पूछने से कोई फायदा नहीं है। चोर है येस्वीकार कियाफिर उसके लिए जो सजा तय हैउसे मिलनी चाहिए।

अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए?

मैं तो अभी बच्चा ही हूं। मेरा बचपन कभी खत्म ही नहीं हुआ है।  आगे होने की संभावना है। मैं जैसा पहले थाआज भी वैसाही हूं।

आपने शादी नहीं की?

(हंसकरमैंने कहा मैं अभी बच्चा हूं और अपने देश में बाल-विवाह गैरकानूनी है।

ज्ञान प्राप्ति के बाद आपमें क्या बदलाव आए?

मैं पहले से ऐसा ही हूं। मुझमें कुछ बदलाव नहीं आए। बस भीतर एक तड़प थी जो खत्म हो गई।

10 दिन की मौन साधना में क्या हुआ?

जो मैं थावह औरों को दिखाना चाहता थाबताना चाहता था। दूसरों को उसकी अनुभूति करानी थी। एक प्रेम का अनुभव दूसरेलोगों में पैदा करना चाहता था। दस दिन के मौन के बाद अपने आप ही वह मार्ग मिल गया।

लेकिन कुछ तो चेंज आए होंगे?

हां कुछ तो था जिसे बाहर निकालना थालोगों के बीच बांटना था। लेकिन उससे पहले भी हम योगप्राणायाम और ध्यान लोगोंको सिखाते थे। उस वक्त लगता था कि कुछ और भी भीतर है जो लोगों के बीच पहुंचाना है। दस दिनों की साधना के दौरान यहअनुभूति होने लगी कि 'सुदर्शन क्रियाके इस विशिष्ट ज्ञान को औरों तक पहुंचाना है।

सेक्स के बारे में सही नजरिया क्या होना चाहिएब्रह्माचर्य या फिर जितनी मर्जी उतना करो?

यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। अगर कोई सेक्स की अति पर पहुंच जाएतो ऐसे लोगों के लिए तंत्र में कई तरह की साधनाओंका जिक्र है। सेक्स से परे जाने के लिए भारत के कुछ मंदिरों में नग्न प्रतिमाओं के सामने बैठकर ध्यान करने की भी पद्धतिरही है। साधक वहां बैठकर ध्यान करते थे और सेक्स से ऊपर उठ जाते थे। लेकिन ये सबके लिए नहीं है। सबको इसकी जरूरतभी नहीं है। ध्यान और प्राणायाम करने से भी शरीर और मन की तरंगें बदलती हैं। और व्यक्ति आत्मिक रूप से मजबूत होजाता है।

क्या आप ब्रह्माचर्य के पक्ष में हैं?

ब्रह्माचर्य सहज ही सिद्ध हो तो ठीक हैलेकिन भावनाओं का दमन नहीं करना चाहिए। प्राणायामध्यान और योग के मार्ग मेंजो उतरते हैं उनका ब्रह्माचर्य सहज ही फलित होने लगता है।

आप हर चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं। यह कैसे संभव है?

देखिएजो हमारे समाने आता हैवह तो मुस्कुराता ही है। और में उसी चेहरे को देखता हूंजो मेरे सामने आता है।

आप दुनिया को क्या देना चाहते हैं?

मेरे पास सबके लिए बस प्रेम ही प्रेम है। मैं प्यार ही दे सकता हूंप्यार के सिवा कुछ भी नहीं।

लेकिन एक आम आदमी के लिए आपसे मिलना और आप तक पहुंचना बेहद कठिन है।

नहींऐसा तो नहीं है। मैं तो रोजाना हजारों लोगों से मिलता हूंउनसे बात करता हूं। हांकई बार व्यस्त कार्यक्रम के चलतेवक्त निकालना मुश्किल हो जाता है।

हमारे रीडर्स के लिए आपका कोई संदेश?

जीवन एक उत्सव है। इसे मस्त होकर जीना चाहिए। रूखा सूखा जीना भी क्या जीनाअगर हम ये समझ सकें तो सारे तनावों सेमुक्त हो जाएंगे। इसलिए कहता हूं हंसो और हंसाओमत फंसो और फंसाओ।

February 10, 2010

शिवरात्रि – सर्वव्यापक चेतना की जागृति का उत्सव

पूरी सृष्टि शिव जी का खेल है, उस एक चेतना, एक बीज का नृत्य है जिससे संसार के लाखों जीव प्रकट हुए हैं| सारा विश्व शिव के भोलेपन और ज्ञान के शुभ लय में चल रहा है। उर्जा का स्थाई एवं अनन्त स्त्रोत शिव हैं वे अस्तित्व के इकलौते शाश्वत स्वरूप हैं।

शिवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है वह रात्रि जो तीन साधनों में शिवतत्व को समाहित करती है, वह तत्व जो सबसे परे है। समाधि को शिवसायुज्य, शिव की उपस्थिति भी कहा जाता है, जिसका वर्णन करना बहुत कठिन है। कबीरदास जी ने इसे कोटि कल्प विश्राम- एक क्षण में समाहित करोड़ों वर्षो का विश्राम कहा है। यह सजगता से युक्त गहनतम विश्राम की स्थिति है जो सभी प्रकार की पहचान से मुक्ति दिलाती है।

जब मन दिव्यता की गोद में विश्राम करता है तो वही सच्चा विश्राम है। संस्कृत में रात्रि शब्द का अर्थ है- वह जो तीन प्रकार की व्यथाओं से आप को मुक्त करे। यह तीन साधनों-शरीर, मन और वाणी को विश्राम देती है। वह तीनों प्रकार के दुःख से हमें राहत देती है। ॐ शांति, शांति, शांति हमें तीन स्तरों पर शांति चाहिये शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर अधिभौतिक, अधिदैविक, और आध्यात्मिक। केवल तीनों के होने पर ही सम्पूर्ण शांति मिलती है।

शिवरात्रि तब है, जब शिव तत्व और शक्ति एक हो जाते है । शिव तथा शक्ति के मिलन की एक कहानी शिवरात्रि से संबंधित है। आदि तथा चैतन्य शक्ति का अवचेतन से गठबंधन है। शिव मौन साक्षी, चिदाकाश है तथा शक्ति, चित्ति अथवा चित्तविलास है, वह शक्ति जो इस अनंत आकाश में भिन्न-भिन्न आकार, विचार रचती है। शिव निराकार हैं, जबकि शक्ति साकार रूप में प्रकट हुई हैं।  यही पदार्थ और ऊर्जा के द्वैत रूप की पहचान है, प्रकृति और पुरूष,  द्रव्य और गुण,  पदार्थ और उसके गुण। ब्रह्माण्ड में अंतर्निहित अद्वैत स्वरूप की पहचान ही शिवरात्रि है।

शिव को विनाश के साथ जोड़ दिया जाता है; परन्तु परिवर्तन तभी आयेगा, बेहतरी के लिए नई शुरूआत तभी हो सकती है जब कुछ नाश किया जाए। शिव परिवर्तन के तत्व हैं। शंकर का अर्थ हे जो शांति देता है और बहुत कुछ अच्छा करता है । शिव तत्व सर्वव्यापक है। शिवरात्रि इसलिये शुभ है क्योंकि वातावरण उस समय अधिक जागृत हो जाता है।

सर्वव्यापक चेतना की जागृति का पर्व - शिवरात्रि की रात को निद्रा की बेहोशी की अवस्था में जाये बिना मनाया जाता है। यह एक अवसर है जब व्यक्ति हर प्रकार की निद्रा से स्वयं को जगा सकता है। जागरण का अर्थ केवल ऊंची आवाज में भजन गाना या हठपूर्वक स्वयं को जगाए रखना नहीं है। यह है स्वयं को जागृत रखना, आत्मोन्मुख होना एवं अपने अंदर उस विश्राम के प्रति सजग होना, जो नींद में आप को वैसे भी प्राप्त होता है। जब नींद आने की एक अवस्था को आप पार कर लेते हैं तो फिर समाधि लग  जाती है या शिव सायुज्य हो जाता है।

शिव का प्रतीक लिंग है। दिव्यता लिंग के परे है। इसलिए ईश्वर को एकलिंग कहते हैं। आत्मा एकलिंग है। आत्मा शरीर, मन या बुद्धि के परे है,  वह प्रिय और अप्रिय से भी परे है,  आत्मा केवल एक ही है, वह एकलिंग है। शिव शक्ति (शिव की उर्जा ) सभी लिंगों से आकर शिवरात्रि में लीन हो जाती है ।

शिव बहुत ही सरल देव है वे भोले हैं भोलानाथ। किसी को उन्हें खुश करने के लिये बस बेल पत्ता ही चढ़ाना होता है। परन्तु इस सरलता में एक गहरा संदेश है- बेल पत्र को भेंट करना यह दर्शाता है कि स्वभाव के तीनों गुणों का समर्पण कर दो - तमस, रजस और सत्व। अपने जीवन की  सकारात्मकता और नकारात्मकता को शिवजी को समर्पित करके आपको आनन्दविभोर हो जाना है। सबसे बड़ा चढ़ावा स्वयं का है। स्वयं को समर्पित कर देना जीवन में आनन्द पाने का सूत्र है ।

कैलाश शिवजी का प्रसिद्ध निवास स्थान है। कैलाश का अर्थ है जहाँ पर उत्सव हो । इसलिये जहाँ पर भी आनंद और उत्सव है, वहाँ पर शिवजी उपस्थित होते हैं। चाहे आप सन्यास में हो या संसार में आप शिव से नहीं बच सकते। उनकी उपस्थिति को हर समय महसूस करते रहना शिवरात्रि का सार है। भगवान शिव को हर समय आँख बंद करे हुए गले में नाग लपेटे हुए बैठे हुए दिखाया जाता है। किसी को यह  लग सकता है कि वे सो रहे है परन्तु इससे यह दर्शाता है कि भीतर से वे कैसे है - सर्प के जैसे हर समय सजग।

उनके चित्र में उन्हें हमेशा नीले रंग से दर्शाया जाता है। नीला रंग आकाश की विशालता को दर्शाता है। उनके सिर पर चन्द्र दर्शाता है कि उनके भीतर क्या है। इसलिये सारे भूत, प्रेत, राक्षस भी उनके गण में शामिल हैं। वे कह रहे हैं कि शिव की बारात में सभी प्रकार के लोग हैं। इसलिये इस विश्व में सब कुछ उस परम आत्मा का है। यह कहा जाता है कि ''सर्वम शिवमयम जगत''  - यह सारा जगत शिवमय है।     

शिवरात्रि इस बात का प्रतीक है कि आपके पास जो कुछ भी है उसके प्रति सजग हो जायें और कृतज्ञ हो जायें। सुख के लिये कृतज्ञ रहो जो जीवन में विकास लाता है और दुःख के प्रति भी कृतज्ञ रहो जो जीवन में गहराई प्रदान करता है। यह शिवरात्रि मनाने की सही विधि है।

परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के द्वारा