February 10, 2010

शिवरात्रि – सर्वव्यापक चेतना की जागृति का उत्सव

पूरी सृष्टि शिव जी का खेल है, उस एक चेतना, एक बीज का नृत्य है जिससे संसार के लाखों जीव प्रकट हुए हैं| सारा विश्व शिव के भोलेपन और ज्ञान के शुभ लय में चल रहा है। उर्जा का स्थाई एवं अनन्त स्त्रोत शिव हैं वे अस्तित्व के इकलौते शाश्वत स्वरूप हैं।

शिवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है वह रात्रि जो तीन साधनों में शिवतत्व को समाहित करती है, वह तत्व जो सबसे परे है। समाधि को शिवसायुज्य, शिव की उपस्थिति भी कहा जाता है, जिसका वर्णन करना बहुत कठिन है। कबीरदास जी ने इसे कोटि कल्प विश्राम- एक क्षण में समाहित करोड़ों वर्षो का विश्राम कहा है। यह सजगता से युक्त गहनतम विश्राम की स्थिति है जो सभी प्रकार की पहचान से मुक्ति दिलाती है।

जब मन दिव्यता की गोद में विश्राम करता है तो वही सच्चा विश्राम है। संस्कृत में रात्रि शब्द का अर्थ है- वह जो तीन प्रकार की व्यथाओं से आप को मुक्त करे। यह तीन साधनों-शरीर, मन और वाणी को विश्राम देती है। वह तीनों प्रकार के दुःख से हमें राहत देती है। ॐ शांति, शांति, शांति हमें तीन स्तरों पर शांति चाहिये शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर अधिभौतिक, अधिदैविक, और आध्यात्मिक। केवल तीनों के होने पर ही सम्पूर्ण शांति मिलती है।

शिवरात्रि तब है, जब शिव तत्व और शक्ति एक हो जाते है । शिव तथा शक्ति के मिलन की एक कहानी शिवरात्रि से संबंधित है। आदि तथा चैतन्य शक्ति का अवचेतन से गठबंधन है। शिव मौन साक्षी, चिदाकाश है तथा शक्ति, चित्ति अथवा चित्तविलास है, वह शक्ति जो इस अनंत आकाश में भिन्न-भिन्न आकार, विचार रचती है। शिव निराकार हैं, जबकि शक्ति साकार रूप में प्रकट हुई हैं।  यही पदार्थ और ऊर्जा के द्वैत रूप की पहचान है, प्रकृति और पुरूष,  द्रव्य और गुण,  पदार्थ और उसके गुण। ब्रह्माण्ड में अंतर्निहित अद्वैत स्वरूप की पहचान ही शिवरात्रि है।

शिव को विनाश के साथ जोड़ दिया जाता है; परन्तु परिवर्तन तभी आयेगा, बेहतरी के लिए नई शुरूआत तभी हो सकती है जब कुछ नाश किया जाए। शिव परिवर्तन के तत्व हैं। शंकर का अर्थ हे जो शांति देता है और बहुत कुछ अच्छा करता है । शिव तत्व सर्वव्यापक है। शिवरात्रि इसलिये शुभ है क्योंकि वातावरण उस समय अधिक जागृत हो जाता है।

सर्वव्यापक चेतना की जागृति का पर्व - शिवरात्रि की रात को निद्रा की बेहोशी की अवस्था में जाये बिना मनाया जाता है। यह एक अवसर है जब व्यक्ति हर प्रकार की निद्रा से स्वयं को जगा सकता है। जागरण का अर्थ केवल ऊंची आवाज में भजन गाना या हठपूर्वक स्वयं को जगाए रखना नहीं है। यह है स्वयं को जागृत रखना, आत्मोन्मुख होना एवं अपने अंदर उस विश्राम के प्रति सजग होना, जो नींद में आप को वैसे भी प्राप्त होता है। जब नींद आने की एक अवस्था को आप पार कर लेते हैं तो फिर समाधि लग  जाती है या शिव सायुज्य हो जाता है।

शिव का प्रतीक लिंग है। दिव्यता लिंग के परे है। इसलिए ईश्वर को एकलिंग कहते हैं। आत्मा एकलिंग है। आत्मा शरीर, मन या बुद्धि के परे है,  वह प्रिय और अप्रिय से भी परे है,  आत्मा केवल एक ही है, वह एकलिंग है। शिव शक्ति (शिव की उर्जा ) सभी लिंगों से आकर शिवरात्रि में लीन हो जाती है ।

शिव बहुत ही सरल देव है वे भोले हैं भोलानाथ। किसी को उन्हें खुश करने के लिये बस बेल पत्ता ही चढ़ाना होता है। परन्तु इस सरलता में एक गहरा संदेश है- बेल पत्र को भेंट करना यह दर्शाता है कि स्वभाव के तीनों गुणों का समर्पण कर दो - तमस, रजस और सत्व। अपने जीवन की  सकारात्मकता और नकारात्मकता को शिवजी को समर्पित करके आपको आनन्दविभोर हो जाना है। सबसे बड़ा चढ़ावा स्वयं का है। स्वयं को समर्पित कर देना जीवन में आनन्द पाने का सूत्र है ।

कैलाश शिवजी का प्रसिद्ध निवास स्थान है। कैलाश का अर्थ है जहाँ पर उत्सव हो । इसलिये जहाँ पर भी आनंद और उत्सव है, वहाँ पर शिवजी उपस्थित होते हैं। चाहे आप सन्यास में हो या संसार में आप शिव से नहीं बच सकते। उनकी उपस्थिति को हर समय महसूस करते रहना शिवरात्रि का सार है। भगवान शिव को हर समय आँख बंद करे हुए गले में नाग लपेटे हुए बैठे हुए दिखाया जाता है। किसी को यह  लग सकता है कि वे सो रहे है परन्तु इससे यह दर्शाता है कि भीतर से वे कैसे है - सर्प के जैसे हर समय सजग।

उनके चित्र में उन्हें हमेशा नीले रंग से दर्शाया जाता है। नीला रंग आकाश की विशालता को दर्शाता है। उनके सिर पर चन्द्र दर्शाता है कि उनके भीतर क्या है। इसलिये सारे भूत, प्रेत, राक्षस भी उनके गण में शामिल हैं। वे कह रहे हैं कि शिव की बारात में सभी प्रकार के लोग हैं। इसलिये इस विश्व में सब कुछ उस परम आत्मा का है। यह कहा जाता है कि ''सर्वम शिवमयम जगत''  - यह सारा जगत शिवमय है।     

शिवरात्रि इस बात का प्रतीक है कि आपके पास जो कुछ भी है उसके प्रति सजग हो जायें और कृतज्ञ हो जायें। सुख के लिये कृतज्ञ रहो जो जीवन में विकास लाता है और दुःख के प्रति भी कृतज्ञ रहो जो जीवन में गहराई प्रदान करता है। यह शिवरात्रि मनाने की सही विधि है।

परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के द्वारा

No comments: