August 12, 2013

श्रावण मास


श्रवण के संस्कृत शब्द का अर्थ है- सुनना’| जीवन में ज्ञान समावेष करने का पहला कदम ‘श्रवण’ हैपहले हम ज्ञान सुनते हैं (श्रवण)फिर बार-बार उसे अपने मन में दोहराते हैं – यह है मनन’, फिर वह ज्ञान हमारे जीवन में समाहित होकर हमारी संपत्ति बन जाता है – यह है निधिध्यासन’|
यह मास है ज्ञान में डूबने काबड़े-बुजुर्गों से सीखने का और ज्ञान के पथ पर चलने कापार्वती जी ने इसी मास में शिवजी की पूजा करी थीशिव को पाने के लिए उन्होंने तपस्या करीइस समय हम अपने अंतःकरण में डुबकी लगाकर वहाँ व्याप्त शिवतत्व से साक्षात्कार कर सकते हैं|
पार्वती शक्ति का रूप हैंशक्ति अर्थात बलसामर्थ्य,एवं उर्जाशक्ति ही इस पूरी सृष्टि का गर्भस्थान हैं - अतः इस दिव्य पहलु को माता का रूप दिया गया हैशक्ति सब प्रकार के उत्साहतेजस्वसौन्दर्यसमताशांति व भरण-पोषण की बीज है|शक्ति ही जीवन-उर्जा है| इस दिव्य उर्जाशक्ति के विभिन्न कार्यों के अनुसार उसके अनेकों नाम और रूप हैं| "शक्ति" में जो "इ" हैवह उर्जा है| "इ" के बिना "शिव" बन जाता है "शव"|
गतिशीलता की अभिव्यक्ति ही शक्ति हैशिव तत्व अवर्णनीय हैतुम हवा को बहते हुए महसूस कर  सकते होपेड़ों को झूमते हुए देख सकते होलेकिन उस स्थिरता को नहीं देख सकते जो इन सभी गतिविधियों का सन्दर्भ बिंदु हैयह गतिशील अभिव्यक्ति शक्ति हैशान्ति व स्थिरता शिव हैदोनों ही आवश्यक हैंजब गतिशील अभिव्यक्ति का भीतर की स्थिरता से मिलन होता है तब रचनात्मकतासकारात्मकता सत्व उत्पन्न होता है|
शक्ति एक गतिमान बल हैपार्वती आदिशक्ति का अंश हैशिव के सन्दर्भ में वह अर्धांगी हैवह एक तेजस्विनी उर्जा हैंशिव के गतिशील पहलु का रूप हैं|
एक समय ऐसा भी था जब शक्ति भी तपस में थीतीर को आगे चलाने के लिए पहले उसे कमान से पीछे की ओर खींचना पड़ता हैश्रावण मास भी निवृत्ति की वह कला हैजब शक्ति भी भीतर की ओर जाती हैआत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है|
जीवन में विरोधाभास सब जगह हैविपरीत साथ में रहते हैंगर्मी और सर्दीपर्वत व खाईहरियाली और हिम - ऐसे कई उदाहरण हैंगतिशीलता और स्थिरता उर्जा के विरोधाभास हैंयह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं|
शिव की अर्धांगी के रूप मेंवे सुंदर विरोधाभास का प्रतिनिधित्व करतीं हैंजिससे जीवन की गुणवत्ता बढ़ती हैशिव करुणा से भरे हैं और शक्ति कृपा से भरी है|शिव इस सृष्टि का स्थिर आधार हैं और शक्ति उसकी गतिशील अभिव्यक्तिशिव परोपकारी हैं और शक्ति तेजस्विनी हैंशिव बुद्धिमता के साथ साथ भोलेनाथ हैं और शक्ति बुद्धिमता के साथ कौशल हैंइस प्रकार उन में सभी गुण साथ में विद्यमान हैं|
शिव और पार्वती स्व-प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक दीप हैंपार्वती प्रेमनिर्दोषतादेखभाल व भूमिकाओं के निर्वाहन की प्रतिरूप हैंवे श्रेष्ठ पुत्रीपत्नी व माँ हैंवह दाम्पत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं|
पर्व का अर्थ हैं उत्सवसत्व से उभरने वाला उत्सवजब तमस का प्रभुत्व होता हैतब वहाँ उत्सव नहींबल्कि आलस्य होता हैरजोगुण से उत्पन्न होनेवाला कोई उत्सव अधिक समय तक नहीं टिकतामात्र सत्व में ही हम सदैव उत्सव मना सकते हैंशिव मनसंकल्पविचारभावनावाणी और कर्म की शुद्धता के साथ उत्सव के आदिपति हैंशाश्वत उत्सव पार्वती का प्रतिनिधित्व हैशाश्वत शांति शिव हैवे अनेकों के जीवन का मार्गदर्शन करने वाले अनुकरणीय दम्पति हैंउन्हें दम्पति भी कहा नहीं जा सकता क्योंकि वे एक ही हैंजगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौवे इस सृष्टि के माता पिता के रूप में पूजे जाते हैं| ‘ मूल शब्द है जो परब्रह्म,परमात्मा के सन्दर्भ में है| ‘ पार्वती और परमेश्वर का मूल हैवे उन सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भौतिक जगत के परे हैवे उत्सवआनंदपरोपकार व प्रेम के शाश्वत प्रतीक हैं|
 जब तुम भीतर जाते होजब तुम स्व में स्थित होते होतुम्हारे आसपास उत्सव घटित होता हैइसीलिए यह मास उत्सवों से भरा हैश्री श्री कहते हैं जीवन प्रेम,आनंद और उत्साह हैउत्साह के बिना प्रेम और आनंद जड़ हैपार्वती उत्साह हैंशिव शांत स्थिरता हैंउत्सव के साथ प्रेमआनंद और ज्ञान का समावेश ही जीवन की पराकाष्ठा है|