श्रवण के संस्कृत शब्द का अर्थ है- ‘सुनना’| जीवन में ज्ञान समावेष करने का पहला कदम ‘श्रवण’ है| पहले हम ज्ञान सुनते हैं (श्रवण), फिर बार-बार उसे अपने मन में दोहराते हैं – यह है ‘मनन’, फिर वह ज्ञान हमारे जीवन में समाहित होकर हमारी संपत्ति बन जाता है – यह है ‘निधिध्यासन’|
यह मास है ज्ञान में डूबने का, बड़े-बुजुर्गों से सीखने का और ज्ञान के पथ पर चलने का| पार्वती जी ने इसी मास में शिवजी की पूजा करी थी| शिव को पाने के लिए उन्होंने तपस्या करी| इस समय हम अपने अंतःकरण में डुबकी लगाकर वहाँ व्याप्त शिवतत्व से साक्षात्कार कर सकते हैं|
पार्वती शक्ति का रूप हैं| शक्ति अर्थात बल, सामर्थ्य,एवं उर्जा| शक्ति ही इस पूरी सृष्टि का गर्भस्थान हैं - अतः इस दिव्य पहलु को माता का रूप दिया गया है| शक्ति सब प्रकार के उत्साह, तेजस्व, सौन्दर्य, समता , शांति व भरण-पोषण की बीज है|शक्ति ही जीवन-उर्जा है| इस दिव्य उर्जा, शक्ति के विभिन्न कार्यों के अनुसार उसके अनेकों नाम और रूप हैं| "शक्ति" में जो "इ" है, वह उर्जा है| "इ" के बिना "शिव" बन जाता है "शव"|
गतिशीलता की अभिव्यक्ति ही शक्ति है| शिव तत्व अवर्णनीय है| तुम हवा को बहते हुए महसूस कर सकते हो, पेड़ों को झूमते हुए देख सकते हो, लेकिन उस स्थिरता को नहीं देख सकते जो इन सभी गतिविधियों का सन्दर्भ बिंदु है| यह गतिशील अभिव्यक्ति शक्ति है| शान्ति व स्थिरता शिव है| दोनों ही आवश्यक हैं| जब गतिशील अभिव्यक्ति का भीतर की स्थिरता से मिलन होता है तब रचनात्मकता, सकारात्मकता, व सत् व उत्पन्न होता है|
शक्ति एक गतिमान बल है| पार्वती आदिशक्ति का अंश है| शिव के सन्दर्भ में वह अर्धांगी है| वह एक तेजस्विनी उर्जा हैं, शिव के गतिशील पहलु का रूप हैं|
एक समय ऐसा भी था जब शक्ति भी तपस में थी| तीर को आगे चलाने के लिए पहले उसे कमान से पीछे की ओर खींचना पड़ता है| श्रावण मास भी निवृत्ति की वह कला है, जब शक्ति भी भीतर की ओर जाती है| आत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है|
जीवन में विरोधाभास सब जगह है, विपरीत साथ में रहते हैं, गर्मी और सर्दी, पर्वत व खाई, हरियाली और हिम - ऐसे कई उदाहरण हैं| गतिशीलता और स्थिरता उर्जा के विरोधाभास हैं| यह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं|
शिव की अर्धांगी के रूप में, वे सुंदर विरोधाभास का प्रतिनिधित्व करतीं हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है| शिव करुणा से भरे हैं और शक्ति कृपा से भरी है|शिव इस सृष्टि का स्थिर आधार हैं और शक्ति उसकी गतिशील अभिव्यक्ति| शिव परोपकारी हैं और शक्ति तेजस्विनी हैं| शिव बुद्धिमता के साथ साथ भोलेनाथ हैं और शक्ति बुद्धिमता के साथ कौशल हैं| इस प्रकार उन में सभी गुण साथ में विद्यमान हैं|
शिव और पार्वती स्व-प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक दीप हैं| पार्वती प्रेम, निर्दोषता, देखभाल व भूमिकाओं के निर्वाहन की प्रतिरूप हैं| वे श्रेष्ठ पुत्री, पत्नी व माँ हैं| वह दाम्पत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं|
शक्ति एक गतिमान बल है| पार्वती आदिशक्ति का अंश है| शिव के सन्दर्भ में वह अर्धांगी है| वह एक तेजस्विनी उर्जा हैं, शिव के गतिशील पहलु का रूप हैं|
एक समय ऐसा भी था जब शक्ति भी तपस में थी| तीर को आगे चलाने के लिए पहले उसे कमान से पीछे की ओर खींचना पड़ता है| श्रावण मास भी निवृत्ति की वह कला है, जब शक्ति भी भीतर की ओर जाती है| आत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है|
जीवन में विरोधाभास सब जगह है, विपरीत साथ में रहते हैं, गर्मी और सर्दी, पर्वत व खाई, हरियाली और हिम - ऐसे कई उदाहरण हैं| गतिशीलता और स्थिरता उर्जा के विरोधाभास हैं| यह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं|
शिव की अर्धांगी के रूप में, वे सुंदर विरोधाभास का प्रतिनिधित्व करतीं हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है| शिव करुणा से भरे हैं और शक्ति कृपा से भरी है|शिव इस सृष्टि का स्थिर आधार हैं और शक्ति उसकी गतिशील अभिव्यक्ति| शिव परोपकारी हैं और शक्ति तेजस्विनी हैं| शिव बुद्धिमता के साथ साथ भोलेनाथ हैं और शक्ति बुद्धिमता के साथ कौशल हैं| इस प्रकार उन में सभी गुण साथ में विद्यमान हैं|
शिव और पार्वती स्व-प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक दीप हैं| पार्वती प्रेम, निर्दोषता, देखभाल व भूमिकाओं के निर्वाहन की प्रतिरूप हैं| वे श्रेष्ठ पुत्री, पत्नी व माँ हैं| वह दाम्पत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं|
पर्व का अर्थ हैं उत्सव| सत्व से उभरने वाला उत्सव| जब तमस का प्रभुत्व होता है, तब वहाँ उत्सव नहीं, बल्कि आलस्य होता है| रजोगुण से उत्पन्न होनेवाला कोई उत्सव अधिक समय तक नहीं टिकता| मात्र सत्व में ही हम सदैव उत्सव मना सकते हैं| शिव मन, संकल्प, विचार, भावना, वाणी और कर्म की शुद्धता के साथ उत्सव के आदिपति हैं| शाश्वत उत्सव पार्वती का प्रतिनिधित्व है| शाश्वत शांति शिव है| वे अनेकों के जीवन का मार्गदर्शन करने वाले अनुकरणीय दम्पति हैं| उन्हें दम्पति भी कहा नहीं जा सकता क्योंकि वे एक ही हैं| जगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौ| वे इस सृष्टि के माता पिता के रूप में पूजे जाते हैं| ‘प’ मूल शब्द है जो परब्रह्म,परमात्मा के सन्दर्भ में है| ‘प’ पार्वती और परमेश्वर का मूल है| वे उन सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भौतिक जगत के परे है| वे उत्सव, आनंद, परोपकार व प्रेम के शाश्वत प्रतीक हैं|
जब तुम भीतर जाते हो, जब तुम स्व में स्थित होते हो, तुम्हारे आसपास उत्सव घटित होता है| इसीलिए यह मास उत्सवों से भरा है| श्री श्री कहते हैं जीवन प्रेम,आनंद और उत्साह है| उत्साह के बिना प्रेम और आनंद जड़ है| पार्वती उत्साह हैं| शिव शांत स्थिरता हैं| उत्सव के साथ प्रेम, आनंद और ज्ञान का समावेश ही जीवन की पराकाष्ठा है|
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