August 12, 2013

श्रावण मास


श्रवण के संस्कृत शब्द का अर्थ है- सुनना’| जीवन में ज्ञान समावेष करने का पहला कदम ‘श्रवण’ हैपहले हम ज्ञान सुनते हैं (श्रवण)फिर बार-बार उसे अपने मन में दोहराते हैं – यह है मनन’, फिर वह ज्ञान हमारे जीवन में समाहित होकर हमारी संपत्ति बन जाता है – यह है निधिध्यासन’|
यह मास है ज्ञान में डूबने काबड़े-बुजुर्गों से सीखने का और ज्ञान के पथ पर चलने कापार्वती जी ने इसी मास में शिवजी की पूजा करी थीशिव को पाने के लिए उन्होंने तपस्या करीइस समय हम अपने अंतःकरण में डुबकी लगाकर वहाँ व्याप्त शिवतत्व से साक्षात्कार कर सकते हैं|
पार्वती शक्ति का रूप हैंशक्ति अर्थात बलसामर्थ्य,एवं उर्जाशक्ति ही इस पूरी सृष्टि का गर्भस्थान हैं - अतः इस दिव्य पहलु को माता का रूप दिया गया हैशक्ति सब प्रकार के उत्साहतेजस्वसौन्दर्यसमताशांति व भरण-पोषण की बीज है|शक्ति ही जीवन-उर्जा है| इस दिव्य उर्जाशक्ति के विभिन्न कार्यों के अनुसार उसके अनेकों नाम और रूप हैं| "शक्ति" में जो "इ" हैवह उर्जा है| "इ" के बिना "शिव" बन जाता है "शव"|
गतिशीलता की अभिव्यक्ति ही शक्ति हैशिव तत्व अवर्णनीय हैतुम हवा को बहते हुए महसूस कर  सकते होपेड़ों को झूमते हुए देख सकते होलेकिन उस स्थिरता को नहीं देख सकते जो इन सभी गतिविधियों का सन्दर्भ बिंदु हैयह गतिशील अभिव्यक्ति शक्ति हैशान्ति व स्थिरता शिव हैदोनों ही आवश्यक हैंजब गतिशील अभिव्यक्ति का भीतर की स्थिरता से मिलन होता है तब रचनात्मकतासकारात्मकता सत्व उत्पन्न होता है|
शक्ति एक गतिमान बल हैपार्वती आदिशक्ति का अंश हैशिव के सन्दर्भ में वह अर्धांगी हैवह एक तेजस्विनी उर्जा हैंशिव के गतिशील पहलु का रूप हैं|
एक समय ऐसा भी था जब शक्ति भी तपस में थीतीर को आगे चलाने के लिए पहले उसे कमान से पीछे की ओर खींचना पड़ता हैश्रावण मास भी निवृत्ति की वह कला हैजब शक्ति भी भीतर की ओर जाती हैआत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है|
जीवन में विरोधाभास सब जगह हैविपरीत साथ में रहते हैंगर्मी और सर्दीपर्वत व खाईहरियाली और हिम - ऐसे कई उदाहरण हैंगतिशीलता और स्थिरता उर्जा के विरोधाभास हैंयह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं|
शिव की अर्धांगी के रूप मेंवे सुंदर विरोधाभास का प्रतिनिधित्व करतीं हैंजिससे जीवन की गुणवत्ता बढ़ती हैशिव करुणा से भरे हैं और शक्ति कृपा से भरी है|शिव इस सृष्टि का स्थिर आधार हैं और शक्ति उसकी गतिशील अभिव्यक्तिशिव परोपकारी हैं और शक्ति तेजस्विनी हैंशिव बुद्धिमता के साथ साथ भोलेनाथ हैं और शक्ति बुद्धिमता के साथ कौशल हैंइस प्रकार उन में सभी गुण साथ में विद्यमान हैं|
शिव और पार्वती स्व-प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक दीप हैंपार्वती प्रेमनिर्दोषतादेखभाल व भूमिकाओं के निर्वाहन की प्रतिरूप हैंवे श्रेष्ठ पुत्रीपत्नी व माँ हैंवह दाम्पत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं|
पर्व का अर्थ हैं उत्सवसत्व से उभरने वाला उत्सवजब तमस का प्रभुत्व होता हैतब वहाँ उत्सव नहींबल्कि आलस्य होता हैरजोगुण से उत्पन्न होनेवाला कोई उत्सव अधिक समय तक नहीं टिकतामात्र सत्व में ही हम सदैव उत्सव मना सकते हैंशिव मनसंकल्पविचारभावनावाणी और कर्म की शुद्धता के साथ उत्सव के आदिपति हैंशाश्वत उत्सव पार्वती का प्रतिनिधित्व हैशाश्वत शांति शिव हैवे अनेकों के जीवन का मार्गदर्शन करने वाले अनुकरणीय दम्पति हैंउन्हें दम्पति भी कहा नहीं जा सकता क्योंकि वे एक ही हैंजगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौवे इस सृष्टि के माता पिता के रूप में पूजे जाते हैं| ‘ मूल शब्द है जो परब्रह्म,परमात्मा के सन्दर्भ में है| ‘ पार्वती और परमेश्वर का मूल हैवे उन सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भौतिक जगत के परे हैवे उत्सवआनंदपरोपकार व प्रेम के शाश्वत प्रतीक हैं|
 जब तुम भीतर जाते होजब तुम स्व में स्थित होते होतुम्हारे आसपास उत्सव घटित होता हैइसीलिए यह मास उत्सवों से भरा हैश्री श्री कहते हैं जीवन प्रेम,आनंद और उत्साह हैउत्साह के बिना प्रेम और आनंद जड़ हैपार्वती उत्साह हैंशिव शांत स्थिरता हैंउत्सव के साथ प्रेमआनंद और ज्ञान का समावेश ही जीवन की पराकाष्ठा है|

January 26, 2012

बुद्ध का मौन


बुद्ध को जब बोध प्राप्त हुआ, तो कहा जाता है कि वे एक सप्ताह तक मौन रहे। उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला। पौराणिक कथाएं कहती हैं कि सभी देवता चिंता में पड़ गए। उनसे बोलने की याचना की। मौन समाप्त होने पर वे बोले, जो जानते हैं, वे मेरे कहने के बिना भी जानते हैं और जो नहीं जानते, वे मेरे कहने पर भी नहीं जानेंगे। जिन्होंने जीवन का अमृत ही नहीं चखा, उनसे बात करना व्यर्थ है, इसलिए मैंने मौन धारण किया था। जो बहुत ही आत्मीय और व्यक्तिगत हो उसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है?
देवताओं ने उनसे कहा, जो आप कह रहे हैं वह सत्य है, परंतु उनके बारे में सोचें जिनको पूरी तरह से बोध भी नहीं हुआ है और पूरी तरह से अज्ञानी भी नहीं हैं। उनके लिए आपके थोड़े से शब्द भी प्रेरणादायक होंगे। तब आपके द्वारा बोला गया हर शब्द मौन का सृजन करेगा।
बुद्ध के शब्द निश्चित ही मौन का सृजन करते हैं, क्योंकि बुद्ध मौन की प्रतिमूर्ति हैं। मौन जीवन का स्रोत है। जब लोग क्रोधित होते हैं, तो पहले वे चिल्लाते हैं और फिर मौन हो जाते हैं। जब कोई दुखी होता है, तब वह भी मौन की शरण में जाता है। जब कोई ज्ञानी होता है, तब भी वहांपर मौन होता है।
शुरुआत से ही बुद्ध ने संतुष्ट जीवन का निर्वाह किया। हर सुख-सुविधा किसी भी समय उनकी इच्छानुसार उनके सामने हाजिर हो जाती थी। एक दिन उन्होंने कहा कि मुझे बाहर जाकर यह देखना है कि दुनिया क्या है। जब उन्होंने एक बीमार, एक वृद्ध और एक मृत व्यक्ति को देखा, तो उन्होने जीवन के बारे में विचार करना शुरू किया। ये दृश्य यह ज्ञान देने में पर्याप्त थे कि जीवन में दु:ख है।
बुद्ध ने अकेले सत्य की तलाश शुरू की। इसके लिए उन्होंने अपना महल, पत्‍‌नी और बेटे को छोड़ दिया। उन्होंने वह सब कुछ किया, जो लोगों ने उन्हें बताया। इसके बाद ही वे चार सत्य जान पाए। पहला सत्य है कि दुनिया में दु:ख है। जीवन में सिर्फ दो संभावनाएं हैं- पहली यह कि अपने आसपास के संसार में औरों के दु:ख के अनुभव को देखकर समझ जाना। दूसरी यह कि स्वयं उसका अनुभव करके समझना कि संसार दु:ख है। दूसरा सत्य यह है कि दु:ख के लिए कोई कारण होता है। आप बिना किसी कारण सुखी रह सकते हैं, परंतु दु:ख का कोई कारण अवश्य होता है। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सत्य यह है कि दु:ख का निवारण संभव है। चौथा सत्य यह है कि दु:ख से बाहर निकलने के लिए एक पथ है।
उस समय इतनी अधिक समृद्धि थी कि बुद्ध ने अपने मुख्य शिष्यों को भिक्षा का पात्र पकड़ा दिया और उनसे भिक्षा मांगने को कहा! उन्होनें राजाओं के शाही वस्त्र उतरवाकर उनके हाथ में भिक्षा का कटोरा दे दिया। यह इसलिए नहीं था कि उन्हें भोजन की आवश्यकता थी, परंतु वे उन्हें कुछ होने से कुछ नहीं होने के पाठ की सीख देना चाहते थे। यह बताना चाहते थे कि आप कुछ नहीं हैं। आप इस विश्व में निरर्थक हैं। जब उस समय के राजाओं और ज्ञानियों को भिक्षा मांगने को कहा गया, तो वे करुणा की मूर्ति बन गए।
अपने सच्चे स्वभाव को देखें कि वह क्या है? वह शांति, करुणा, प्रेम, मित्रता, और आनंद है। मौन में इन सब का उदय होता है। दुख, पछतावे और कष्ट को मौन निगल लेता है और आनंद, करुणा और प्रेम को जन्म देता है।

October 20, 2010

भौतिक सम्पन्नता एवं आध्यात्मिक उन्नति का रहस्य

 
ज्ञान पत्र तिथि : 2010-10-13
स्थान : बंगलौर आश्रम, भारत
नवरात्रि उत्सव के दौरान चल रहे यज्ञों के महत्व के बारे में श्री श्री बताते हुए -   
अस्तित्व के तीन स्तर हैं  बाहरी स्थूल जगत, विभिन्न शक्तियों का सूक्ष्म जगत  और देवत्व या भगवान. यहाँ पर कराये गए सभी यज्ञों का उद्देश्य आध्यात्मिक और भौतिक लाभ दोनों प्राप्त करना है. जब तुम अपनी गहराइयों में डूबते हो, जो सब का स्रोत है, तुम परम शान्ति का अनुभव करते हो.  जब तुम गहरे ध्यान की अवस्था में रहते होतभी इन मंत्रों का प्रभाव पड़ता है. वह बहुत ही शक्तिशाली और सुंदर हैं और वे सूक्ष्म जगत को समृद्ध करते हैं. हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें  इसका हिस्सा बनने का मौक़ा मिला.
यहाँ पर सभी वेदों के पंडित हैंऔर वे मंत्र उच्चारण करेंगे. यह हजारों साल से होता आ रहा है. ऐसा पूरे विश्व के कल्याण के लिये किया जाता है. हम सभी यहाँ पर एक शरीरएक मन और एक आत्मा के रूप में एकत्रित हुए हैं, और यहाँ जो हो रहा है उसमें पूर्ण रूप से निमग्न हैं.  चाहे हम इनका अर्थ नहीं भी जानते हों तब भी हम जानते हैं कि सूक्ष्म स्तर पर ये हमारे जीवन और पूरी मानवता के लिए कुछ अच्छा है.
हो सकता है कि हमारी बुद्धि इसको समझ न पाये परन्तु हमारा सूक्ष्म शरीर इसकी गहराई को समझता है. और जो स्पंदन यहाँ से निकल रहे हैं वे अस्तित्व के सभी सूक्ष्म परतों के लिये कल्याणकारी हैं.  इस ऊर्जा से परोपकार होता हैपूरी मानवता का कल्याण होता हैहमारे बुरे कर्म कट जाते हैंविश्व में सद्भाव बढ़ता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इच्छाएं पूर्ण होने के लिये सूक्ष्म स्तर में शक्ति होनी  चाहिए. यह हमें आत्म बोध के पास लाता है और दुनिया में सफल बनाता है.
एक शरीर और एक मन के रूप मेंपरम सत्य में स्थित होकरअपने सभी सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए शांति की गहराई में विश्राम करो. इस प्रेम और भक्ति में डूब जाओ और यह भावना रखो कि सब कुछ अच्छा हो रहा है, सब कुछ आप के लिए हो रहा है. मकई की तरह - जब वह थोड़ा गर्म किया जाता हैतब वह फूट कर पॉप कॉर्न बन जाता है. उसी प्रकारयह चेतना दिव्य है और मंत्र के जप से यह कुसुमित होकर प्रकट होती है. चेतना को खिलाने के लिये यह एक सुंदर अवसर है. ओम शांति!

September 16, 2010

September 2, 2010

कृष्ण का प्रेम अद्वितीय है

परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी

कृष्ण का ज्ञान, माधुर्य और प्रेम अद्वितीय था। किसी भी दृष्टिकोण से उनका व्यक्तित्व पूर्ण था और अनूठा था। यह बताता है कि यह सब गुण आपके अंतर तम में हैं ठीक उसी प्रकार से जैसे सूर्य की किरण में सभी रंग हैं।

पांडवों की माँ महारानी कुंती ने एक बार कृष्ण से कहा, "काश मेरे पास और अधिक परेशानियाँ होतीं। जब भी मैं किसी मुसीबत में थी, तुम हमेशा मेरे साथ थे। तुम्हारे साथ से मिलने वाला आनंद किसी और सुख सुविधा या आराम के आनंद से कहीं अधिक है। मैं कोई भी दुःख सह सकती हूँ। मैं तुम्हारी उपस्थिति के एक पल के बदले में इस दुनिया के सभी सुखों को छोड़ सकती हूँ।"

कृष्ण ने उनको आत्मज्ञान अधिक दिया -  "मैं तुम्हारे अन्दर तुम्हारे स्वयं के रूप में ही हूँ। इस दुनिया में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ मैं नहीं हूँ। लोग मुझे एक भौतिक शरीर के रूप में देखते हैं पर वे मेरे सच्चे स्वरुप को नहीं जानते। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - यह शरीर इन आठ तत्वों से बना है। मैं नौवा हूँ और इन सब से परे हूँ। मैं सर्वव्यापी हूँ। मूर्ख लोग यह नहीं जानते। उन्हें लगता है कि मैं एक मानव हूँ। हालांकि मैं शरीर में हूँ, परन्तु मैं शरीर नहीं हूँ। हालांकि मैं मन के माध्यम से काम कर रहा हूँ, परन्तु मैं मन नहीं हूँ। जैसा मैं तुम्हें दिखता हूँ वह मैं नहीं हूँ, अपनी ज्ञानेन्द्रियों से जितना तुम मुझे जान पायी हो उससे मैं कहीं अधिक हूँ। मैं तुम्हारे दिल में तुम्हारे स्वयं के ही रूप में उपस्थित हूँ और जब कभी भी तुम्हें मेरी आवश्यकता होगी, मैं वहाँ रहूँगा। मैं तुरंत तुम्हारे पास आ जाऊँगा, तुमको सभी परेशानियों से बाहर निकालूँगा, तुम हमेशा मुझ पर भरोसा कर सकती हो।"

यहां तक कि संतजन भी कृष्ण के प्रेम में डूब गए। वैरागी जन भी उनकी ओर खिंचे चले जाते थे। कृष्ण शब्द का अर्थ है कि जो आकर्षक है, जो कि सब कुछ अपनी और खींचता है। हमारे अस्तित्व का अंतरतम स्तर ऐसा ही है - आत्मा का सुख और परमानंद कुछ ऐसा ही है। वह सब कुछ अपनी और आकर्षित करता है। कृष्ण के जन्म का प्रतीकवाद भी बहुत सुंदर है। देवकी - शरीर, वसुदेव - प्राण यानि सांस एक होकर कृष्ण - यानि भीतर के आनंद और खुशी को प्रकट करते हैं।

कृष्ण हमेशा नीले रंग में दर्शाये जाते हैं। इसका अर्थ है कि शरीर इतना पारदर्शी है, कि उसका अस्तित्व लगभग न के बराबर है। जो अनंत है उसे नीले से दर्शाया जाता है; आकाश नीला है, और समुद्र नीला है। खुद कृष्ण गीता में कहते हैं -  "लोग मेरे सच्चे स्वभाव को नहीं जानते। कोई भी नहीं जानता।  उनके पूरे जीवन काल में केवल तीन लोग ही उनके सच्चे विराट स्वरुप को जान पाये। पहली यशोदा थीं, दूसरे अर्जुन और तीसरे व्यक्ति उनके बचपन के दोस्त उद्धव थे। वे गीता में कहते हैं, "लोग मुझे भौतिक रूप - एक शरीर के रूप में समझते हैं। मैं शरीर नहीं हूँ, मैं चेतना हूँ जो सर्वव्यापी है और सब में मौजूद है। वे आगे कहते हैं, "मैं चीनी में मिठास हूँ, मैं चाँद में चाँदनी हूँ, मैं धूप में गर्मी हूँ।" उन्होंनें अपने आप को सर्वव्यापी कहा ।
कृष्ण हमेशा एक पैर को जमीन पर मज़बूती के साथ जमा कर खड़े होते हैं, और उनका दूसरा पैर तिरछा रहता है जो कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह ज़मीन छू रहा है लेकिन वास्तव में वह नहीं छू रहा होता है। वह कहीं और है। इसे त्रिभंगी मुद्रा कहा गया है। इसका तात्पर्य है जीवन में सम्पूर्ण संतुलन होना।

कृष्णा को माखन चोर कहा गया है। मक्खन दूध का अंतिम उत्पाद है। दूध में जामन डालने से दही जम जाती है और दही को अच्छी तरह से मथ कर मक्खन निकलता है। जीवन भी मंथन की एक प्रक्रिया है। आपके मन में भी बहुत सी बातों द्वारा मंथन हो रहा है - घटनाओं, परिस्थितियों और वाकयों से।

अंत में मक्खन निकलता है जो कि आपका सतचित स्वरुप है। और कृष्ण नवनीत चोर हैं चितचोर हैं। इसका क्या अर्थ  है? वह प्रेम करते हैं सच्चिदानंद स्वरुप से, वह उस चित से प्रेम करते हैं जो मक्खन जितना नरम हो, जो सख्त न हो। जब तुम्हारा मन ऐसा बन जाता है तब वे तुमको पसंद करने लगते हैं। इसका अर्थ है कि तब अनन्तता तुम्हारी ओर बढ़ने लगती है, वह तुमसे इतना प्यार करती है कि तुम्हारे चित को तुमसे किसी भी कीमत पर चुरा लेती है। वह तुम्हें ढूँढ रहे हैं। तुम जहाँ कहीं भी हो, भगवान आते हैं और तुम्हें ढूंढ लेते हैं।

कृष्ण सभी संभावनाओं के प्रतीक है, मानव के सभी कलाओं और दिव्यता के पूर्ण विकसित स्वरुप के प्रतीक हैं। वास्तव में कृष्ण के व्यक्तित्व को समझना बहुत मुश्किल है। ऋषियों ने उन्हें पूर्ण पुरुष और सभी कलाओं से सम्पन्न दिव्यता का एक सम्पूर्ण अवतार बताया है क्योंकि जो कुछ भी किसी मानव में हो सकता है वह सब कृष्ण में मौजूद है।

जन्माष्टमी वह दिन है जब आप अपनी स्वयं की चेतना में एक बार फिर कृष्ण के विराट स्वरूप को सजीव कर लेते हैं। अपने सत्य स्वरुप को अपने दैनिक जीवन में प्रकट करना ही कृष्ण जन्म का सच्चा रहस्य है।

August 30, 2010

क्रिस कपीला

क्रिस कपीला, सीऐटिल, अमरीका के एक सॉफ्टवेयर कन्सल्टेन्ट हैं।

वह विशेष कलीनेक्स -
       1993 की गर्मियों में, लेक जेनिवा (विस्कॉन्सिन) में आयोजित, गुरुदेव, के सान्न्ध्यि में हुए सप्ताह भर के कोर्स को करने के बाद हम लोग वैनकूवर (कनाडा) पहुँचे। कहने की जरूरत नहीं, पर फिर भी, वह कोर्स जीवन बदलने वाला था, अगर कहें कि कोर्स करके पुनर्जन्म हो गया तो गलत नहीं होगा।

       उस कोर्स में गुरुजी के आस-पास हर क्षण इतनी भीड़ होती थी कि मैं उनसे कुछ बोल ही नहीं पाता था। मुझे उनके साथ कुछ क्षण अकेले में बात करने की तीव्र इच्छा थी। परंतु शायद उस कोर्स में हर कोई यही चाहता था, और मुझे अपनी इच्छा की पूर्ति असंभव लगने लगी।

       वैनकूवर में, गुरुजी एक हिन्दू मंदिर में रविवार की प्रात: कालीन पूजा में प्रवचन देने गये। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद और लोग तो दोपहर का भोजन करने चले गये, पर मैं उनकी फ़ोटो खींचने की मंषा से वहीं खड़ा रहा।

       लगभग दस मिनट के बाद गुरुजी के साथ थोड़े से ही लोग थे, जो उनसे बात कर रहे थे। बाद में वे लोग भी चले गये और मैं अकेला, उनके साथ, उनके कमरे में रह गया।

       मैं संकुचाया सा वहाँ खड़ा था। गुरुजी उस हॉलनुमा कमरे में टहलते हुए कुछ वार्तालाप कर रहे थे। मेरे पास पहुँचते ही उन्होंने मुझसे पूछा कि मुझे कोर्स कैसा लगा। मैंने उनसे कहा कि मुझे कोर्स बहुत अच्छा लगा और उन्होंने मेरे और मेरे प्रियजनों के लिये अब तक जो कुछ भी किया, उसके लिये मैं बहुत कृतज्ञ हँ। यह कहते-कहते मैं फूट-फूट कर रो पड़ा। उन्होंने मुझे उनके पीछे-पीछे मंच तक आने का संकेत किया और वहाँ मुझे एक टिषू पेपर (क्लीनेक्स) दिया, जिसकी उस समय (कहने की जरूरत नहीं) मुझे बहुत ज़रूरत थी। यह मेरा पहला अनुभव था कि गुरुदेव कैसे हम में से प्रत्येक की छोटी से छोटी आवष्यकताओं के प्रति अपना ध्यान रखते हैं।

       उस पहली रूबरू मुलाक़ात के बाद मेरा जीवन बहुत बदल गया है। अब जीवन में केवल आनंद ही आनंद हैं, प्रेम ही प्रेम है।

1100 किसानों को मिला जैविक खेती का प्रशिक्षण

बैंगलोर, अगस्त 25, 2010:
पूरे भारत में जैविक कृषि के विस्तार के लिए प्रशिक्षित किसानो का एक जत्था तैयार करने के लिए आर्ट आफ लिविंग ने एक पांच दिवसीय टीचर्स ट्रेनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया। पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बैंगलोर में 21 अगस्त शनिवार को से आरंभ हो कर बुधवार 25 अगस्त 2010 को समाप्त हुआ जिसमें 15 राज्यों से 1100 किसानों ने जिनमें 100 महिलायें भी शामिल है, ने भाग लिया।

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संभागियों को इस बात के लिए सक्षम बनायेगा कि वे जैविक कृषि के
तंत्र को आगे दूसरे किसानों समझा सके। इस प्रभावी लागत तकनीक के अतिरिक्त किसानों
को अन्य कई किसानों के लिए उपयोगी तकनीकें जैसे उद्यान संबंधी, देशी गायों का कृषि में
उपयोग, जल संरक्षण और जल संसाधनों के बारे में भी प्रशिक्षण दिया गया है। किसानों अन्य
कृषि संबंधी विकास कार्यक्रमों की जानकारी दी गई है।

श्री सुभाष पालेकर, शून्य बजट कृषि के संस्थापक ने अपनी जानकारियां किसानों के साथ
बांटी साथ ही किसानों को कम से कम लागत से अधिक से अधिक पैदावार कैसे प्राप्त की जा
सकती है, बताया। साथ ही किसानों को रसायनिक खेती से होने वाली बिमारियां जैसे कैंसर
आदि के बारें में शिक्षित किया।

'' रसायनिक खेती हमारे इको सिस्टम के लिए खतरनाक है। प्राकृतिक तकनीक को अपनाकर
किसान एक ही वर्ष में इसके अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकतें हैं। उपज उच्च गुणवत्ता की
होगी और ज्यादा गुणकारी एवं स्वादिष्ट होगी। किसानों को जो आज मूल्य मिल रहा है उसे
दुगुना मूल्य मिलेगा। साथ ही प्राकृतिक खेती जलवायु परिवर्तन और ग्लॉबल वार्मिंग को भी
संतुलित करती है और प्राकृतिक संसाधनों को भी बचाती है।'' श्री पालेकर ने कहा।

गणेशम् चौपडे, वर्धा महाराष्ट के एक किसान ने कुछ वर्ष पूर्व ही प्राकृतिक खेती को अपनाया
है और अपने जीवन स्तर में अनेक प्रकार से सुधार किया। '' मैं रसायनिक खेती के कारण 12
लाख के कर्ज से दबा हुआ था और इससे मेरा स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा था। जब से मैंने
प्राकृतिक खेती को अपनाया है मैंने सारे कर्ज उतार दिये और मेरे परिवार को पहले से अच्छा
खाना, कपड़े और मकान बनाकर दिया है।''

किसानों ने कम से कम एक एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती करके इसे अपने गांव के अन्य
100 किसानों को दिखाकर अपनाने हेतु अपील की शपथ ली।

ऐसे समय में जब ग्लॉबल वॉर्मिंग के खतरे से जलवायु को खतरा हो रहा है, आर्ट आफ
लिविंग ने अन्य प्रकार के भी कार्यक्रमों के साथ साथ इस कार्यक्रम का भी शुभारंभ कर
जलवायु के संरक्षण के लिए सार्थक कदम बढाया है। ये प्राकृतिक और रसायनमुक्त खेती के
साथ साथ, वर्षा जल संरक्षण पर कार्य कर रही है। अब तब भारत के 6000 किसानों को
रसायन मुक्त खेती का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।