बैंगलोर, अगस्त 25, 2010:
पूरे भारत में जैविक कृषि के विस्तार के लिए प्रशिक्षित किसानो का एक जत्था तैयार करने के लिए आर्ट आफ लिविंग ने एक पांच दिवसीय टीचर्स ट्रेनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया। पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बैंगलोर में 21 अगस्त शनिवार को से आरंभ हो कर बुधवार 25 अगस्त 2010 को समाप्त हुआ जिसमें 15 राज्यों से 1100 किसानों ने जिनमें 100 महिलायें भी शामिल है, ने भाग लिया।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संभागियों को इस बात के लिए सक्षम बनायेगा कि वे जैविक कृषि के
तंत्र को आगे दूसरे किसानों समझा सके। इस प्रभावी लागत तकनीक के अतिरिक्त किसानों
को अन्य कई किसानों के लिए उपयोगी तकनीकें जैसे उद्यान संबंधी, देशी गायों का कृषि में
उपयोग, जल संरक्षण और जल संसाधनों के बारे में भी प्रशिक्षण दिया गया है। किसानों अन्य
कृषि संबंधी विकास कार्यक्रमों की जानकारी दी गई है।
श्री सुभाष पालेकर, शून्य बजट कृषि के संस्थापक ने अपनी जानकारियां किसानों के साथ
बांटी साथ ही किसानों को कम से कम लागत से अधिक से अधिक पैदावार कैसे प्राप्त की जा
सकती है, बताया। साथ ही किसानों को रसायनिक खेती से होने वाली बिमारियां जैसे कैंसर
आदि के बारें में शिक्षित किया।
'' रसायनिक खेती हमारे इको सिस्टम के लिए खतरनाक है। प्राकृतिक तकनीक को अपनाकर
किसान एक ही वर्ष में इसके अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकतें हैं। उपज उच्च गुणवत्ता की
होगी और ज्यादा गुणकारी एवं स्वादिष्ट होगी। किसानों को जो आज मूल्य मिल रहा है उसे
दुगुना मूल्य मिलेगा। साथ ही प्राकृतिक खेती जलवायु परिवर्तन और ग्लॉबल वार्मिंग को भी
संतुलित करती है और प्राकृतिक संसाधनों को भी बचाती है।'' श्री पालेकर ने कहा।
गणेशम् चौपडे, वर्धा महाराष्ट के एक किसान ने कुछ वर्ष पूर्व ही प्राकृतिक खेती को अपनाया
है और अपने जीवन स्तर में अनेक प्रकार से सुधार किया। '' मैं रसायनिक खेती के कारण 12
लाख के कर्ज से दबा हुआ था और इससे मेरा स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा था। जब से मैंने
प्राकृतिक खेती को अपनाया है मैंने सारे कर्ज उतार दिये और मेरे परिवार को पहले से अच्छा
खाना, कपड़े और मकान बनाकर दिया है।''
किसानों ने कम से कम एक एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती करके इसे अपने गांव के अन्य
100 किसानों को दिखाकर अपनाने हेतु अपील की शपथ ली।
ऐसे समय में जब ग्लॉबल वॉर्मिंग के खतरे से जलवायु को खतरा हो रहा है, आर्ट आफ
लिविंग ने अन्य प्रकार के भी कार्यक्रमों के साथ साथ इस कार्यक्रम का भी शुभारंभ कर
जलवायु के संरक्षण के लिए सार्थक कदम बढाया है। ये प्राकृतिक और रसायनमुक्त खेती के
साथ साथ, वर्षा जल संरक्षण पर कार्य कर रही है। अब तब भारत के 6000 किसानों को
रसायन मुक्त खेती का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
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