इरावती, पुणे की एक प्रतिभाशाली गायिका हैं। इन्होने संस्कृत साहित्य में स्नातक किया है।
अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं भजन कैसे बनाती हँ। मुझे संगीत की रचना करने का कोई अनुभव नहीं हैं और न ही मुझे इस क्षेत्र की कोई विशेष जानकारी है। और मैं उनके भजनों का माध्यम होने पर अपने आपको धन्य मानती हँ। पहला भजन जो मेरे माध्यम से निकला वह था 'परमेश्वरी जय दुर्गा' जो नवरात्रि के दौरान की गई एक विरह पूर्ण प्रार्थना के बीच उदय हुआ। मैंने बंगलोर आश्रम में नवरात्रि में होने वाली पूजाओं के विषय में बहुत कुछ सुन रखा था और मैं वहाँ जाना चाहती थी, पर जा नहीं पा रही थी। हाँलाकि मैं मुम्बई में थी पर मेरा मन आश्रम में था और ऐसी ही एक रात में नींद में मैंने यह भजन सुना। मैं मध्यरात्रि में ही उठ कर इस भजन को ज़ोर-ज़ोर से गाने लगी। शब्द और सुर दोनों मेरे नहीं थे। यह केवल दैवी कृपा थी जो मुझ पर हुई और इस प्रकार पहले भजन का जन्म हुआ।
इस वर्ष के शिवरात्रि उत्सव में, मैंने मन ही मन सत्संग के बीच में गुरुजी से प्रार्थना की कि वे मुझे एक भजन दें जिसे मैं उन्हें सुना सकूँ। कुछ मिनटों के अन्दर ही, एक शिव भजन का जन्म हुआ, और जैसे ही उस सत्संग में मैंने उसे गाना शुरू किया, गुरुदेव भी मेरे साथ गाने लगे। सभी आश्चर्य में उनकी ओर देख रहे थे कि इस भजन को तो पहली बार गाया जा रहा है फिर गुरुदेव कैसे इसके बोल जानते हैं ?
मेरे लिये तो गुरुजी माता, पिता मित्र, गुरु, यह सब कुछ तथा और बहुत कुछ हैं। उन्होनें मुझे अपूर्व साहस दिया है, मैं अपनी सीमितताओं से छूट गयी हँ। और उनकी कृपा, तथा असीमित प्रेम, दया व धैर्य से यह पूरी प्रक्रिया अत्याधिक सरल हो गयी है।
No comments:
Post a Comment