August 20, 2010

सच्ची सफ़लता

आप जीवन में आराम ढूंढ रहे हैं. तुम्हें पैसा क्यों चाहिए? क्योंकि तुम आराम करना चाहते हो. किसी भी दिशा में करी गयी इच्छा का निचोड़ है - आराम.

आराम के कई स्तर हैं. एक शारीरिक है - अगर तुम घास पर बैठे हैं, तो तुम्हें लगता है कि, ओह, बेहतर होता अगर यहाँ एक तकिया होता. फिर मानसिक आराम है - यह और भी जरूरी है. यदि तुम पूरे सुख सुविधा के साथ घर में हो, लेकिन मन में आराम नहीं हो तब एक आरामदायक बिस्तर पर भी तुम सो नहीं पाओगे.

एक और प्रकार का आराम है भावनात्मक आराम - तुम्हारे पास सब कुछ हो, पर अगर कोई तुम्हारा करीबी तुम से बात नहीं करे या कुछ ऐसा करे जिससे तुम्हें पीड़ा मिले, तो तुम्हारा भावनात्मक आराम खत्म हो जाता है.

फिर होता है आध्यात्मिक आराम - यह है आत्मा की शान्ति, पूर्ण शांति. यह है अपने भीतर से शांति और आनन्द का एक निरंतर प्रवाह. आराम यानि अपने स्वभाव में रहना.

आराम कहाँ है? यह शरीर में है या मन में? यह दोनों के संयोजन में है. कभी-कभी, जब शरीर को आराम नहीं मिलता तब मन को भी आराम नहीं मिलता और इसका विपरीत भी होता है. शरीर से अधिक, मन की शान्ति महत्वपूर्ण है. शरीर से मन तीन गुणा अधिक ताकतवर है, यानि मानसिक शान्ति शारीरिक आराम से तीन गुणा अधिक महत्वपूर्ण है.

आराम प्रतिबद्धता पर आधारित है. दूसरे लोगों की प्रतिबद्धता तुम्हें आराम देती हैं. उदाहरण के लिए,  तुम तक दूध पहुँचाने की दूधवाले की प्रतिबद्धता तुम्हें आराम देता है. इसी तरह तुम्हारी प्रतिबद्धता से और सभी लोगों को आराम मिलना चाहिए. कभी-कभी लोग कहते हैं,  ओह, मैं प्रतिबद्ध होकर फँस गया हूँ, इसलिये मैं दुखी हूँ. अब यह नहीं सोचना कि हर प्रतिबद्धता शुरू से ही आसान रहेगी. यदि आप डॉक्टरी पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो रास्ते में कुछ काँटे आना स्वाभाविक है.

हालांकि प्रतिबद्धता तुम्हें सभी बाधाओं के पार ले जा सकती हैं. जितनी अधिक उपलब्धि होगी उतनी ही अधिक प्रतिबद्धता और चाहिये होगी. तुम जितना अधिक प्रतिबद्ध होगे तुम्हारी क्षमता और योग्यता उतनी ही बढ़ेगी. प्रतिबद्धता हमेशा कुछ ऐसे के बारे में होती है जो थोड़ा अधिक हो. तुम यह नहीं कह सकते कि,  'मैं एक गिलास पानी पीने या एक किलोमीटर चलने के लिए प्रतिबद्ध हूँ ', यह तो तुम वैसे भी करते हो. प्रतिबद्धता तभी होती है जब तुम्हें जितना लगता है कि तुम कर सकते हो तुम उससे भी अधिक करो. प्रतिबद्धता यानि अपनी क्षमता के स्तर को बढ़ाना.

सफ़लता के बारे में हर जगह बहुत चर्चे होते हैं. सभी सफ़ल होना चाहते हैं. क्या तुमने कभी सोचा है कि सफ़लता क्या है? यह केवल अपनी क्षमताओं के प्रति अनजान होना है. तुमने अपने आप पर एक सीमा निर्धारित करी है, और जब भी तुम अपनी सीमा को पार करते हो तो अपने आप को सफ़ल होने का दावा करते हो. सफ़लता स्वयं की शक्ति का अज्ञान है क्योंकि तुमने मान लिया है कि तुम केवल इतना ही कर सकते हो.

तुम कभी नहीं कहते 'मैंने सफ़लतापूर्वक एक केला खा लिया!' जब तुम एक सीमा डालते हो तो अपनी  आत्मशक्ति, अपनी चेतना को सीमित कर रहे होते हो. हर बार जब तुमको कोई उपलब्धि मिलती है तब  तुम गर्व महसूस करते हो, है ना? असल में, तुम्हें खेद महसूस होना चाहिए. तुम उसी के प्रति गर्व कर रहे हो जो तुम आसानी से कर सकते हो, जबकि जिसके प्रति तुम्हें गर्व हो रहा है उससे कहीं अधिक तुम्हारी क्षमता है. जब तुम सफ़ल होते हो तो गर्व महसूस होता है और अगर तुम असफ़ल होते हो तो पछतावा होता है जिससे तुम परेशान हो जाते हो.  दोनों परिस्थितियों में तुम आनन्द से दूर हो सकते हो, या अपने सामर्थ्य से दूर हो सकते हो.

तो सबसे अच्छा है कि तुम परमात्मा को समर्पण कर दो. यदि तुम सफ़ल रहे, तो क्या हुआ? यह एक और घटना थी, बस एक और कृत्य जो तुमने किया, तुम इससे बहुत ज्यादा कर सकते हो. यदि तुम कोई चीज़  अच्छी तरह से नहीं कर पाये, तो बस नहीं कर पाये, बस इतना ही. इस पल, क्या तुम उसे फिर से करना चाहते हैं? तो संकल्प लो - 'मुझे कर के ही रहना है!' - तो तुम्हें अच्छी प्रगति मिलेगी, बिना अपराधबोध के, बिना आलोचक बने.


पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी के लेख से अनुवादित 

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