November 7, 2008

सत्ता की भूख

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 320

30 अगस्त, 2001

बैंगलौर आश्रम

भारत

लोग सत्ता के भूखे क्यों होते हैं?

लोग सत्ता के भूखे इसलिये होते हैं क्योंकि वे अपनी ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं और अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। जिस प्रकार धन साधन होता है उसी प्रकार सत्ता भी साधन है। किसी परिणाम को पाने के लिये जोश होता है। जो लोग सत्ता और धन को साधन न मानकर, साध्य मान लेते हैं वे जीवन जीते नहीं बल्कि केवल मौजूद् हैं। यदि तुमने यह न जाना कि तुम ही शक्ति हो अर्थात तुम ही ब्रह्मज्ञानी हो तब तुम में सत्ता की भूख होगी।

 

तुम अपने ऊपर ध्यान आकर्षित करवाना चाहोगे और अपनी पहचान बनाना चाहोगे जब--- तुम्हारे अन्दर कोई प्रतिभा नहीं होती, तुम्हारे अन्दर प्रेम या जोश नहीं होता, तुम मासूम और बच्चों जैसा सहज नहीं होते। यदि तुम्हारे अन्दर कोई प्रतिभा न हो, समाज में तुम्हारा कोई सार्थक योगदान न हो, जैसे कि एक कलाकार, वैज्ञानिक, आर्ट ऑफ लिविंग टीचर या स्वयंसेवक का होता है तब तुम सत्ता की आकांक्षा करोगे। यदि तुममें समाज में परिवर्तन लाने के लिये प्रेम या जोश नहीं है तब तुम सत्ता की अभिलाषा करोगे। यदि तुम एक बच्चे की तरह सहज नहीं हो, सम्पूर्ण विश्व के साथ तुम्हें अपनापन नहीं लगता हो, तब तुम्हें सत्ता की अभिलाषा होती है। जिन लोगों के पास इन चारों में से एक भी नहीं होता, जैसे कि कुछ राजनीतिज्ञ, वे सत्ता की आकांक्षा करते हैं।

 

सच्ची शक्ति, आत्मा की शक्ति होती है। वास्तविक आत्मविश्वास, बल, और खुशी का प्रस्फुरण आत्मा से ही होता है। जो यह जानता है और जिसके पास यह है वह शक्ति के लिये बिलकुल भी भूखा नहीं होता।

1 comment:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

आत्मतृप्ति के नाम पर, यथास्थिति आराधन.
स्वयंसेवक ने कर लिया,माँ का यह आराधन.
माँ का यह आराधन,करके खुद ही खुश है.
आँख मूँद ली दुःखों से,शाखा में खुश है.
कह साधक ’याची देही डोळा’ के नाम पर.
चुप ना बैठो यार, आत्म-तृप्ति के नाम पर