November 15, 2008

गुणगान

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 331

15 नवम्बर, 2001

बैंगलौर आश्रम

भारत

गुणगान 

 

गुणगान उस व्यक्ति के बड़प्पन को दर्शाता है जो प्रशंसा कर रहा है न कि  जिसकी प्रशंसा हो रही है। गुणगान इस बात का प्रतीक है कि अहंकार झीना हो गया है; अहंकार का सबसे अच्छा इलाज प्रशंसा करना है।  

प्रशंसा तीन प्रकार से कार्य करती है। 

  • यदि यह किसी और के लिए हो तब यह किसी अहंकारी व्यक्ति के लिए रूचिकर नहीं हो सकती। 
  • यदि यह तुम्हारे लिए हो तुम्हारा अहंकार बढ़ जाता है। 
  • यदि तुम किसी की  प्रशंसा करते हो तुम्हारा अहंकार विलीन हो जाता है और तुम विशाल हो जाते हो।

सब मिलकर - जब गुरुजी का गुणगान होता है; सभी आत्मविभोर हो जाते हैं  (हँसी)

 

प्रशंसा प्रशंसक की महानता का द्योतक है । और जो महान है उसका मन  प्रशंसा से नहीं हिलेगा। यानि किसी व्यक्ति की महानता की परीक्षा यह है कि चाहे जितनी भी प्रशंसा हो वह अडिग रहे।   

  • प्रशंसा की चाह अपरिपक्वता की निशानी है।
  • प्रशंसा से विमुखता संकीर्ण विचारधारा है ।
  • जीवन में प्रशंसा का अभाव नीरसता और उबानेवाला है।
  • एक स्वस्थ मन हमेशा दूसरों को उपर उठाने के लिए गुणगान करना पसंद करता है।
  • एक अस्वस्थ मन हर चीज को नीचे लाने की कोशिश करता है।
  • गुणगान विश्वास, उत्साह और संस्कृति की उच्च सोच को दर्शाता है।
  • प्रशंसा का अभाव स्वार्थी, भयभीत, संकीर्ण और संस्कृति विहीन समाज का प्रतीक है।

 

प्रशंसा मिलने पर अनासक्त होना, और प्रशंसा देते समय उदार होना यही एक ज्ञानी की पहचान है।

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