साप्ताहिक ज्ञानपत्र 331
15 नवम्बर, 2001
बैंगलौर आश्रम
भारत
गुणगान
गुणगान उस व्यक्ति के बड़प्पन को दर्शाता है जो प्रशंसा कर रहा है न कि जिसकी प्रशंसा हो रही है। गुणगान इस बात का प्रतीक है कि अहंकार झीना हो गया है; अहंकार का सबसे अच्छा इलाज प्रशंसा करना है।
प्रशंसा तीन प्रकार से कार्य करती है।
- यदि यह किसी और के लिए हो तब यह किसी अहंकारी व्यक्ति के लिए रूचिकर नहीं हो सकती।
- यदि यह तुम्हारे लिए हो तुम्हारा अहंकार बढ़ जाता है।
- यदि तुम किसी की प्रशंसा करते हो तुम्हारा अहंकार विलीन हो जाता है और तुम विशाल हो जाते हो।
सब मिलकर - जब गुरुजी का गुणगान होता है; सभी आत्मविभोर हो जाते हैं (हँसी)
प्रशंसा प्रशंसक की महानता का द्योतक है । और जो महान है उसका मन प्रशंसा से नहीं हिलेगा। यानि किसी व्यक्ति की महानता की परीक्षा यह है कि चाहे जितनी भी प्रशंसा हो वह अडिग रहे।
- प्रशंसा की चाह अपरिपक्वता की निशानी है।
- प्रशंसा से विमुखता संकीर्ण विचारधारा है ।
- जीवन में प्रशंसा का अभाव नीरसता और उबानेवाला है।
- एक स्वस्थ मन हमेशा दूसरों को उपर उठाने के लिए गुणगान करना पसंद करता है।
- एक अस्वस्थ मन हर चीज को नीचे लाने की कोशिश करता है।
- गुणगान विश्वास, उत्साह और संस्कृति की उच्च सोच को दर्शाता है।
- प्रशंसा का अभाव स्वार्थी, भयभीत, संकीर्ण और संस्कृति विहीन समाज का प्रतीक है।
प्रशंसा मिलने पर अनासक्त होना, और प्रशंसा देते समय उदार होना यही एक ज्ञानी की पहचान है।
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