June 29, 2009

तिहरे ग्रहण



ट्रिपल ग्रहणों की श्रंखला जुलाई'09 से प्रारम्भ - दुनिया के लिए इसका क्या अभिप्राय है?

बंगलूरू. 22 जून, 2009.

कुछ ही समय बाद विश्व एक दुर्लभ खगोलीय घटना का साक्षी होगा. जुलाई 2009 की शुरुआत से श्रृंखला से तीन तीन ग्रहण लगेंगे. पहला 7 जुलाई, 2009 को चन्द्र ग्रहण लगेगा , फिर उस के बाद 22 जुलाई, 2009 को सौर ग्रहण लगेगा और अंत में चंद्र ग्रहण 6 अगस्त, 2009 को लगेगा. अगले दशक से 2020 तक ऐसे 6 और ट्रिपल ग्रहण लगेंगे.


दुनिया के लिए इस खगोलीय घटना का क्या मतलब है? क्या यह खगोलीय घटना हमारे लिए कुछ संकेत देती है? लेखक दम्पति डी.के. हरि और डी.के.हेमा हरि ने उनकी किताब - "क्या इतिहास दोहराएगा? जुलाई 2009 के ट्रिपल ग्रहण मंगल या अमंगल?" की समीक्षा के दौरान इस सवाल पर विचार विमर्श किया.

भारत के प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान की सोच की सम्मिश्रित व सर्वांगीण विचारधारा का प्रयोग करते हुए लेखकों ने आने वाले त्रिग्रहणों की एक समग्र दृष्टिकोण से विवेचना करी है.

अपने त्रिग्रहणों पर प्रकाश डालते हुए श्री डी.के.हरि ने कहा कि, "पहला त्रिग्रहण जो 3067 BCE में अभिलिखित हुआ था वह कुरुक्षेत्र के महायुद्ध के साथ मेल खाता है. दूसरा त्रिग्रहण जो 3031 BCE में हुआ उसके साथ ही द्वारका नगर का विनाश हुआ था. अभी हाल ही में 20 वीं सदी की पहली छमाही में 1910 और 1945 के बीच तीन त्रिग्रहणों की श्रृंखला हुई हुई जो प्रथम व द्वितीय विश्व युद्धों व जापान में हुए परमाणु बम विस्फोट के साथ मेल खाते हैं"

परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी जिनकी आर्ट ऑफ लिविंग संस्था यह पुस्तक प्रकाशित कर रही है ने कहा कि, “विश्व में सभी वस्तुओं का परस्पर सम्बन्ध है. सभी का असर सब पर होता है. स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत आपस में सभी सम्बन्धित हैं. कारण और फल के इस सिद्धांत के विश्लेषण से जीवन में एक नया आयाम खुल जाता है."

तो जुलाई 2009 में जब यह ट्रिपल ग्रहण लगेंगे तो इनका क्या प्रभाव पड़ेगा?

भारत के लिए यह एक चिंता का विषय है कि वह ऐसे राष्ट्रों से घिरा हुआ है जो आज आंतरिक राजनीतिक संघर्ष का सामना कर रहे हैं जैसे - पाकिस्तान, तिब्बत, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका. डी.के. हरि और हेमा हरि ने कहा कि पहले ग्रहण के शुरुआत के साथ इन संघर्षों का असर भारत तक पहुँचने की संभावना है.

लेखकों ने प्रदर्शित करा कि प्राचीन भारतीय समाज की राजनीति अपरिहार्य युद्ध और संघर्ष की स्थिति का सार समझ कर कैसे उनक सामना करती थी.

दुनिया के आपदा प्रबंधन क्षमताओं के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने यह उत्तेजक प्रश्न उठाया कि जिस प्रकार से प्राचीन सभ्यताएँ प्राकृतिक या मनुष्य द्वारा बनायी गयी आपदा की स्थिति में बड़े पैमाने पर परागमन का सामना कर लेते थे क्या आज के राष्ट्र उतने ही खुले दिल व दिमाग से बिना जातीय, धार्मिक, और राजनीति भेदभाव के शरणार्थीयों को स्वीकार करने के लिये तैयार हैं?

लेखकों ने इस संघर्षपूर्ण अवधि के दौरान में उत्पन्न आशा की किरण और सकारात्मक सोच के उद्भव की सम्भावना पर भी प्रकाश डाला जो इस जुलाई 2009 के त्रिग्रहण के साथ प्रकट हो सकते हैं.

"यह पृथ्वी उस अनंत आकाश का एक हिस्सा है” – इस सरल किंतु गहन कथन ने इस सत्य को प्रकट करा कि हम सब प्रकृति के अंश हैं और आगे बढ़ने का रास्ता यही है कि हम अपने विचार, कर्म और जीवन शैली में प्रकृति की भूमिका को समझें और अपने जीवन और कर्मों को प्रकृति के अनुरूप ढालें.

डी.के.हरि और हेमा हरि के काम की प्रासंगिकता पर टिप्पणी देते हुए श्री श्री ने कहा, "हालांकि खगोल विज्ञान व ज्योतिष विज्ञान घटनाओं के विज्ञान का अध्ययन है, उसका उपाय आध्यात्मिकता है. जबकि खगोल विज्ञान / ज्योतिष विज्ञान मनुष्य की बेबसी का संकेत देती है, आध्यात्मिकता उसके भीतर की शक्ति को प्रकाश में लाती है."

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