July 7, 2009

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा—भक्तों का दिन

परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी

गुरुपूर्णिमा को गुरु का दिन कहते हैं लेकिन वास्तव मे यह है भक़्त का दिन. यह कृतज्ञता महसूस करने का दिन है, इस सुंदर ज्ञान के लिये जो की तुम्हारे सदगुरु से तुम्हे मिला है. कृतज्ञता महसूस करो कि कैसे इस ज्ञान ने तुम्हे परिवर्तित कर दिया है. कृतज्ञता व विनम्रता से भीतर सच्ची प्रार्थना का उदय ( आविर्भाव) होता है. तीन प्रकार के लोग गुरु के पास आते है—विद्यार्थी, शिष्य व भक्त (श्रद्धालू).

एक विद्यार्थी गुरु के पास आता है, कुछ सीखता है, कुछ जानकारी प्राप्त करता है और स्कूल छोड़ देता है.यह ऐसे ही है जैसे गाइड के पास जाना हो. तुम पर्यट्न- गाइड के साथ कोई पर्यटन – स्थल देखने जाते हो और वह तुम्हे सारे स्थल दिखा देयता है और उनके बारे मे थोड़ी बहुत जानकारी भी दे देता है और फिर तुम उसे धन्यवाद कह देते हो और बात खत्म हो जाती है. विद्यार्थी वह होता है जो केवल जानकारी एकत्रित करता है लेकिन जानकारी ज्ञान नहीं होती और ना ही विवेक होती है.

तब होता है शिष्य, शिष्य-गुरु के पद-चिन्हों पर चलता है लेकिन उसका उद्देश्य होता है ज्ञान हासिल करना और अपने जीवन क सुधार करना. अत: वह केवल जांकारी एकत्रित नहीं करता बल्कि थोड़ा और भीतर तक जाता है. वह अपने जीवन मे परिवर्तन लाना चाहता है और अपने जीवन का कुछ मतलब बनाना चाहता है. वह अपना समय निकालता है, अपनी क्षमता के अनुसार उन्नति करता है और हो सकता है उसे एक न एक दिन प्रबोध हो भी जाए. तब बारी आती है भक्त की. उसका उद्देश्य बोध प्राप्त करना भी नहीं होता. वह तो केवल प्रेम मे डूबा रहता है.उसे तो केवल सदगुरु से, प्रभु से, अन्नता से प्रेम हो जाता है. वह यह चिंता नहीं करता कि उसे बोध प्राप्त हुआ या नहीं. उसे यह भी चिंता नहीं होती कि उसे काफी बुद्धिमता प्राप्त होगई या नहीं.बस वह तो हर पल प्रेम मे डूबा रहता है और उसके लिये यहि काफी होता है. ऐसे भक्त मिलना बहुत मुश्किल होता है. विद्यार्थी तो बहुत होते हैं, शिष्य थोड़े कम होते हैं.लेकिन भक्त कोई विरले ही होते हैं.

भगवान बनना कोई बड़ी बात नहीं है. कोई भी वस्तु तुम चाहो या ना चाहो भगवान ही है.केलिन भक्ती कहीं कहीं ही प्रस्फुटित होती है. जहां ऐसी भक्ति उत्पन्न होती है, वही भक्त है. आकर्षण हर जगह होता है पर प्रेम कहीं कहीं, लेकिन भक्ति तो बहुत हि दुर्लभ होती है.यह बहुत सुंदर चीज है.

एक विद्यार्थी आँखों में आँसू लेकर गुरु के पास आता है और जब जाता है तब भी उसकी आँखों मे आँसू होते है लेकिन यह आँसू थोड़ अलग तरह के होते हैं, ये कृतज्ञता के आँसू होते है,प्रेम के आँसू होते है. प्रेम मे रोना बहुत सुंदर है. जो एक बार भी प्रेम मे रोया है ,वही इसका स्वाद जानता है और जब भी ऐसा होता है तो पूरी सृष्टि इसका आनन्द मनाती है.पूरी सृष्टि एक ही चीज चाहती है और वह है नमकीन आँसुओं को बदल कर मीठा हो जाना.

प्रेम ऐसी चीज है जिसमे विधाता भी आनन्द मानते है. जितना तुम प्रभु को चाह्ते हो, वे भी तुम्हे उत्ना ही चाहते है. प्रभु भी तुम्हरे आने का इंतजार करते हैं.प्रभु भी तुम्हारे नजदीक आने को उत्ना ही उतावले हैं जित्ना तुम उनक पास जाने को. जब भी इस ध्रा पर किसी भक्त का आविर्भाव होता है तो प्रभु बहुत प्रसन्न होते है. इस लिये गुरुपूर्णिमा भक्त का दिन माना जाता है

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