August 7, 2009

वापस दिल की ओर

एक बार मछलियों का एक सम्मेलन हुआ, जो वहाँ पर इसलिए एकत्रित हुई थीं कि इस बात पर विचार-विमर्श कर सकें कि उनमें से किसने सागर को देखा है। उनमें से कोई भी यह नहीं कह सकी कि वास्तव में उन्होंने सागर को देखा था। तब एक मछली ने कहा, ''मेरे विचार से मेरे परदादा ने समुद्र देखा था''। एक दूसरी मछली ने कहा, ''हाँ, हाँ मैंने भी इसके बारे में सुना है''। तीसरी मछली ने कहा, ''हाँ वास्तव में उसके परदादा ने सागर देखा था''। फिर उन्होंने एक बड़ा सा मन्दिर बनाया और उस मछली के परदादा की एक मूर्ति स्थापित की। उन्होंने कहा, ''इन्होंने सागर देखा था। वे सागर से जुड़े हुए थे''

ठीक यही बात उन लोगों के साथ भी है, जो साधना के पथ पर चल रहे हैं और दिव्यता को जानने के लिए उत्सुक हैं। दिव्यता क्या है? मैं तुम्हें बताता हूँ। दिव्यता एक हँसी-खेल की तरह से है। यह उसी समुद्र की मछली की तरह से है, जो समुद्र की खोज कर रही है। दिव्यता हमारी आत्मा के केन्द्र में है, अपनी आत्मा के अन्दर जाने और वहाँ से अपना जीवन जीने की तरह से है।

हम सभी इस संसार में भोलेपन का उपहार लेकर आए है, लेकिन धीरे-धीरे जैसे हम अधिक बुध्दिमान होते गए, हमारा भोलापन समाप्त होता गया। हम शान्ति के साथ पैदा हुए और जैसे-जैसे बड़े हुए, हमने अपनी शान्ति खो दी और हम शब्दों से भर गए। हम हृदय से जीते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, हम हृदय से मस्तिष्क की ओर चले गए। इस यात्रा को विपरीत दिशा में ले जाना ही दिव्यता है। यह अपने मस्तिष्क से हृदय की तरफ की यात्रा है, शब्दों से शान्ति की तरफ तथा हमारी बुध्दिमत्ता के साथ-साथ भोलेपन की तरफ वापसी है। यद्यपि यह बहुत सरल है, लेकिन यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करना और किसी भी परिस्थिति में विचलित न होना दिव्यता है। कुछ भी हो, तुम्हारे चेहरे की मुस्कान को कोई भी नहीं छीन सकता है। सीमित दायरे के बाहर जाना और इस बात का अनुभव करना कि इस ब्रह्माण्ड में जो भी कुछ है, वह मेरा है, दिव्यता है।

अदिव्यता को परिभाषित करना आसान है। यह, मैं इस स्थान विशेष का हूँ, कहकर अपने को सीमित करना है। मैं इस संस्कृति का हूँ या मैं इस धर्म का हूँ, कहकर अपने को सीमित करना है। यह उसी तरह से है जैसे बच्चे कहते हैं कि मेरे पिताजी तुम्हारे पिताजी से अच्छे हैं या मेरा खिलौना तुम्हारे खिलौने से अच्छा है। मेरा विचार है कि अधिकांश लोग अभी भी इसी मानसिक आयु से चिपके हुए हैं, जबकि खिलौने बदल चुके हैं। युवक कहते हैं कि मेरा देश तुम्हारे देश से अच्छा है या मेरा धर्म तुम्हारे धर्म से अच्छा है।

एक इसाई कहेगा बाइबिल सत्य है, जबकि एक हिन्दू कहेगा कि वेद सत्य है और वे प्राचीन हैं। मुसलमान कहेंगे, कुरान खुदा का अन्तिम शब्द है। किसी वस्तु को हम केवल इसलिए महिमामयी बताते हैं क्योंकि हम उस संस्कृति के हैं, इसलिए नहीं कि वह क्या है। यदि कोई व्यक्ति उन सभी चीजों की जिम्मेदारी ले सके, जो युगों-युगों से है और यह अनुभव करे कि यह सब मेरा है, तब यह परिपक्वता है। यह मेरी सम्पत्ति है, क्योंकि मैं ईश्वर का हूँ। ईश्वर ने समय और स्थान के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न ज्ञान दिए। कोई भी व्यक्ति पूरे ब्रह्माण्ड का ज्ञाता हो सकता है और कह सकता है कि जितने भी सुन्दर फूल हैं वे सब मेरे उपवन के हैं।

मानव का सम्पूर्ण विकास ''कुछ होने'' से ''कुछ न होने'' की तरफ तथा ''कुछ भी न होने'' से ''सबका होने'' का है। दिव्यता, भोलेपन और बुध्दिमत्ता का एक दुर्लभ संगम है; शान्त रहते हुए उसी समय अपने को व्यक्त करने के लिए शब्दों की क्षमता रखना। उस समय मन पूर्ण रूपेण वर्तमान क्षण में होता है। जो भी आवश्यक है उसका तुम्हें एक प्राकृतिक और अविरल रूप में ज्ञान दिया जाता है, बस तुम शान्त रूप से बैठो और प्रकृति का संगीत तुम्हारे अन्दर से प्रवाहित होता है।

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