October 24, 2008

दो परिप्रेक्ष्य से गुरु

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 317

9 अगस्त, 2001

यूरोप आश्रम, बैड एन्टोगास्ट

जर्मनी

 

दो परिप्रेक्ष्य से गुरु

पूर्वी संस्कृति के देशों में, गुरु का होना एक गर्व का विषय माना जाता है। गुरु प्रेम और सुरक्षा के प्रतीक हैं और एक बड़ी सम्पत्ति के द्योतक हैं। गुरु का सानिध्य अपने आत्म तत्व के साथ रहने के तुल्य माना जाता है। जिनके पास गुरु नहीं हैं उनको निम्न दृष्टि से देखा जाता था और उन्हें अनाथ, दरिद्र और अभागा समझा जाता था। संस्कृत में अनाथ माने जिसका नाथ न हो। जिनके गुरु नहीं होते थे उन्हें अनाथ कहा जाता था, न कि उन्हें जिनके माता-पिता नहीं होते।

 

परन्तु पश्चिम संस्कृति के देशों में मास्टर का होना शर्म की बात है और दुर्बलता का प्रतीक है, क्योंकि वे लोगों को अपने आधीन दास बनाने के लिये जाने जाते हैं।

 

पूर्वी संस्कृति में गुरू का होना गर्व समझा जाता है और जीवन के हरेक पहलु में गुरु हैं - धर्म के लिए धर्मगुरु, कुल के लिए कुलगुरु,  राज्य के लिए राजगुरु, किसी विषय के अध्ययन के लिए विद्यागुरुऔर आध्यात्म के लिए सद्गुरु. पूर्वी संस्कृति में गुरु आपको शक्तिशाली महसूस कराते हैं; जबकि पश्चिमी संस्कृति में मास्टर आपको कमज़ोर बनाते हैं। पूर्वी संस्कृति में एक अपनेपन की गहरी भावना होती है जो व्यक्ति को अपनी सीमित पहचान घुलाकर अनन्त के साथ एक होने के सक्षम बनाती है। परन्तु पश्चिमी संस्कृति में गुरु एक प्रेरक और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने वाला समझा जाता है।

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