October 24, 2008

प्रेम और अधिकार

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 318
16 अगस्त, 2001
बैंगलौर आश्रम
भारत

प्रेम और अधिकार
प्रेम और अधिकार एक दूसरे के पूर्णतः विपरीत मूल्य हैं फिर भी वे एक साथ विद्यमान रहते हैं। चेतना जितनी अधिक स्थूल होती है अधिकार उतना ही अधिक प्रबल दिखता है। चेतना जितनी अधिक परिष्कृत और सूक्ष्म होती है अधिकार के प्रयोग की उतनी ही कम आवश्यकता होती है। जब तुम स्थूल होते हो, तुम अधिकार की माँग करते हो, और अधिकार माँगने से प्रेम कम हो जाता है। अधिकार जमाना प्रेम और आत्मविश्वास की कमी का द्योतक है। अधिकार की भावना जितनी प्रबल होगी तुम उतने ही कम संवेदनशील और प्रभावशाली होगे। एक समझदार व्यक्ति कभी भी अपने अधिकार की माँग नहीं करेगा... बल्कि अपने अधिकार को पहले से मान कर चलेगा। (हँसी) सबसे प्रभावशाली सी.ई.ओ. अपने अधिकार को कभी महसूस नहीं होने देते क्योंकि अधिकार से अंतरप्रेरणा कभी भी प्रस्फुटित नहीं होती।
तुम्हारे बॉस के मुकाबले एक ईमानदार नौकर का तुम्हारे ऊपर अधिकार कहीं अधिक होता है, है न? एक शिषु का अपनी माँ के ऊपर पूर्ण अधिकार होता है। इसी प्रकार एक भक्त का परमात्मा के ऊपर पूरा अधिकार होता है, हालांकि वह कभी भी उसका प्रयोग नहीं करता।
अत: तुम जितने अधिक सूक्ष्म होगे उतना ही ज्यादा अधिकार तुम्हें प्राप्त होगा। प्रेम जितना अधिक होगा अधिकार उतना ही सूक्ष्म होगा। प्रेम जितना कम होगा अधिकार उतना ही अधिक प्रबल होगा।

5 comments:

शोभा said...

वाह! बहुत ही सुंदर लिखा है. दीपावली की शुभ कामनाएं

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

prem ke sath adhikar apne aap aa jata hai

bhajman narayan narayan

कृषि समाधान said...

May Avtar Meher Baba Bless All, Very Happy Dipawali to All of You.
A very nice post. Last few line could have been in an easier way.
Congratulation
Dr. Chandrajiit Singh
chandar30@gmail.com
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kvkrewa.blogspot.com

संगीता-जीवन सफ़र said...

आपने बहुत सही लिखा है/आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें/

रचना गौड़ ’भारती’ said...

प्रसंशनीय.