February 21, 2009

शिवरात्रि


साप्ताहिक ज्ञानपत्र 348

16 मार्च, 2002

ॠषिकेश

भारत

 

तुम शिव स्वरूप हो

 

शान्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम बेचैन रहते हो।

मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम बंधन में रहते हो।

आनन्द तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम किसी न किसी कारण से दुःखी रहते हो।

तृप्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम इच्छाओं के पीछे नाचते रहते हो।

परोपकार तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम हाथ आगे नहीं बढ़ा पाते।

 

अपने स्वभाव के ओर जाने को ही साधना कहते है। अपने सच्चे स्वरूप में आना ही साधना है। शिव तुम्हारा सच्चा स्वरूप है। और शिव है शान्ति, अनन्त, सौन्दर्य और अद्वैत।

 

रात्रि का अर्थ है शरण लेना शिवरात्रि यानि शिव में शरण लेना।

February 13, 2009

तुम और आधिपत्य

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 321

13 सितम्बर, 2001

बंगलौर आश्रम

भारत

 

तुम और आधिपत्य

 

मनुष्य में चीजों को अपना बनाने की प्रवृत्ति होती है। जब वह किसी छोटी सी वस्तु को अपना बनाता है तब उसका मन भी छोटा ही रह जाता है, जीवन संकुचित हो जाता है और सम्पूर्ण चेतना उसके घर, गाड़ी, पति, पत्नी, बच्चे आदि में ही सीमित हो जाती है। एक सन्यासी अपना घर छोड़कर चला जाता है। पर वहाँ भी वह अपने आसन, माला, किताबें, धारणाएँ और ज्ञान के प्रति स्वामित्व शुरू कर देता है।

 

बस स्वामित्व वस्तुओं और लोगों से हटकर धारणाओं और प्रथाओं पर आ गया है। पर ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह सूरज, चाँद, तारे, हवा, अंतरिक्ष और सम्पूर्ण दिव्यता का स्वामी है। जब तुम किसी बड़ी चीज़ को अपनाते हो तब तुम्हारी चेतना का विस्तार होता है और जब तुम छोटी-छोटी चीजों को अपनाते हो तब छोटी-छोटी नकारात्मक भावनाएँ पनपने लगती हैं जैसे गुस्सा, लोभ आदि।

 

मुझे आश्चर्य होता है कि लोग सूर्य से अपना सम्बन्ध क्यों नहीं महसूस करते? जीवन का अस्तित्व सूर्य पर ही निर्भर है। शायद इस सजगता की कमी के कारण लोग वृहत् ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध स्वीकार नहीं करते। प्राचीन भारत के ॠषियों, अमरीकी मूल वासी और सम्पूर्ण विश्व के आदिवासियों ने भी यही आग्रह किया है कि तुम सूर्य, चन्द्रमा और दिशाओं के साथ अपने सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो।

 

जब तुम किसी विशाल चीज़ को अपना बनाते हो तब तुम्हारी चेतना भी विशाल हो जाती है।

February 1, 2009

अपने संघ को पहचानो

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 364 

17 जुलाई 2002

उत्तर अमेरिकी आश्रम

मॉन्ट्रियल, कनाडा


अपने संघ को पहचानो

 

आम तौर पर दुनिया में एक सी प्रवृत्ति के लोग मिल जाते हैं और एक समूह बना लेते हैं, बुद्धिमान लोगों का एक समूह बन जाता है, मूर्ख एक साथ मिल जाते हैं, खुश लोग एक गुट बना लेते हैं, महत्वाकांक्षी लोग साथ मिल जाते हैं, और असंतुष्ट लोग भी अपनी शिकायतों का जश्न मनाने के लिए अपना समूह बना लेते हैं! (हँसी)

 

कहा जाता है, "चोर का साथी गिरहकट" (“Birds of a feather flock together”) असंतुष्ट लोग एक साथ मिल जाते हैं, शिकायतें करते हैं और एक दूसरे को नीचे गिरा देते हैं। एक कुंठित व्यक्ति खुश व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता क्योंकि वह उसके अनुरूप नहीं चल रहा होता है। तुम तभी सहज महसूस करते हो जब दूसरा व्यक्ति तुम्हारी धुन में साथ देता है। बुद्धिमान लोग मूर्खों के साथ सहज नहीं महसूस कर पाते हैं। मूर्ख लोग महसूस करते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति में मानवीयता नहीं होती।

ज्ञानी मनुष्य चाहे असंतुष्ट लोगों के साथ हो या संतुष्ट लोगों के साथ, वह  मूर्ख के साथ हो या बुद्धिमान के साथ, अपने आप को बिलकुल सहज महसूस करता है।  इसी तरह, सभी प्रवृत्ति के लोग ज्ञानी के साथ सहज महसूस करते हैं। बस अपने चारों ओर नज़र घुमा कर देखो कि तुम्हारे गुट में क्या हो रहा है क्या आप आभारी हैं या असंतोष प्रकट करते रहते हैं? आप अपने आसपास के लोगों के उत्थान की जिम्मेदारी ले लीजिये। यही सत्संग है, न कि केवल भजन गाकर वापस चले जाना। बुद्धिमान व्यक्ति आकाशवत् है जहां सभी तरह के पक्षी स्वच्छन्द विचरण कर सकते हैं।