साप्ताहिक ज्ञानपत्र 348
16 मार्च, 2002
ॠषिकेश
भारत
तुम शिव स्वरूप हो
शान्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम बेचैन रहते हो।
मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम बंधन में रहते हो।
आनन्द तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम किसी न किसी कारण से दुःखी रहते हो।
तृप्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम इच्छाओं के पीछे नाचते रहते हो।
परोपकार तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम हाथ आगे नहीं बढ़ा पाते।
अपने स्वभाव के ओर जाने को ही साधना कहते है। अपने सच्चे स्वरूप में आना ही साधना है। शिव तुम्हारा सच्चा स्वरूप है। और शिव है शान्ति, अनन्त, सौन्दर्य और अद्वैत।
रात्रि का अर्थ है “शरण लेना”। शिवरात्रि यानि शिव में शरण लेना।
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