February 21, 2009

शिवरात्रि


साप्ताहिक ज्ञानपत्र 348

16 मार्च, 2002

ॠषिकेश

भारत

 

तुम शिव स्वरूप हो

 

शान्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम बेचैन रहते हो।

मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम बंधन में रहते हो।

आनन्द तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम किसी न किसी कारण से दुःखी रहते हो।

तृप्ति तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम इच्छाओं के पीछे नाचते रहते हो।

परोपकार तुम्हारा स्वभाव है फिर भी तुम हाथ आगे नहीं बढ़ा पाते।

 

अपने स्वभाव के ओर जाने को ही साधना कहते है। अपने सच्चे स्वरूप में आना ही साधना है। शिव तुम्हारा सच्चा स्वरूप है। और शिव है शान्ति, अनन्त, सौन्दर्य और अद्वैत।

 

रात्रि का अर्थ है शरण लेना शिवरात्रि यानि शिव में शरण लेना।

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