February 13, 2009

तुम और आधिपत्य

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 321

13 सितम्बर, 2001

बंगलौर आश्रम

भारत

 

तुम और आधिपत्य

 

मनुष्य में चीजों को अपना बनाने की प्रवृत्ति होती है। जब वह किसी छोटी सी वस्तु को अपना बनाता है तब उसका मन भी छोटा ही रह जाता है, जीवन संकुचित हो जाता है और सम्पूर्ण चेतना उसके घर, गाड़ी, पति, पत्नी, बच्चे आदि में ही सीमित हो जाती है। एक सन्यासी अपना घर छोड़कर चला जाता है। पर वहाँ भी वह अपने आसन, माला, किताबें, धारणाएँ और ज्ञान के प्रति स्वामित्व शुरू कर देता है।

 

बस स्वामित्व वस्तुओं और लोगों से हटकर धारणाओं और प्रथाओं पर आ गया है। पर ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह सूरज, चाँद, तारे, हवा, अंतरिक्ष और सम्पूर्ण दिव्यता का स्वामी है। जब तुम किसी बड़ी चीज़ को अपनाते हो तब तुम्हारी चेतना का विस्तार होता है और जब तुम छोटी-छोटी चीजों को अपनाते हो तब छोटी-छोटी नकारात्मक भावनाएँ पनपने लगती हैं जैसे गुस्सा, लोभ आदि।

 

मुझे आश्चर्य होता है कि लोग सूर्य से अपना सम्बन्ध क्यों नहीं महसूस करते? जीवन का अस्तित्व सूर्य पर ही निर्भर है। शायद इस सजगता की कमी के कारण लोग वृहत् ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध स्वीकार नहीं करते। प्राचीन भारत के ॠषियों, अमरीकी मूल वासी और सम्पूर्ण विश्व के आदिवासियों ने भी यही आग्रह किया है कि तुम सूर्य, चन्द्रमा और दिशाओं के साथ अपने सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो।

 

जब तुम किसी विशाल चीज़ को अपना बनाते हो तब तुम्हारी चेतना भी विशाल हो जाती है।

No comments: