February 1, 2009

अपने संघ को पहचानो

साप्ताहिक ज्ञानपत्र 364 

17 जुलाई 2002

उत्तर अमेरिकी आश्रम

मॉन्ट्रियल, कनाडा


अपने संघ को पहचानो

 

आम तौर पर दुनिया में एक सी प्रवृत्ति के लोग मिल जाते हैं और एक समूह बना लेते हैं, बुद्धिमान लोगों का एक समूह बन जाता है, मूर्ख एक साथ मिल जाते हैं, खुश लोग एक गुट बना लेते हैं, महत्वाकांक्षी लोग साथ मिल जाते हैं, और असंतुष्ट लोग भी अपनी शिकायतों का जश्न मनाने के लिए अपना समूह बना लेते हैं! (हँसी)

 

कहा जाता है, "चोर का साथी गिरहकट" (“Birds of a feather flock together”) असंतुष्ट लोग एक साथ मिल जाते हैं, शिकायतें करते हैं और एक दूसरे को नीचे गिरा देते हैं। एक कुंठित व्यक्ति खुश व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता क्योंकि वह उसके अनुरूप नहीं चल रहा होता है। तुम तभी सहज महसूस करते हो जब दूसरा व्यक्ति तुम्हारी धुन में साथ देता है। बुद्धिमान लोग मूर्खों के साथ सहज नहीं महसूस कर पाते हैं। मूर्ख लोग महसूस करते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति में मानवीयता नहीं होती।

ज्ञानी मनुष्य चाहे असंतुष्ट लोगों के साथ हो या संतुष्ट लोगों के साथ, वह  मूर्ख के साथ हो या बुद्धिमान के साथ, अपने आप को बिलकुल सहज महसूस करता है।  इसी तरह, सभी प्रवृत्ति के लोग ज्ञानी के साथ सहज महसूस करते हैं। बस अपने चारों ओर नज़र घुमा कर देखो कि तुम्हारे गुट में क्या हो रहा है क्या आप आभारी हैं या असंतोष प्रकट करते रहते हैं? आप अपने आसपास के लोगों के उत्थान की जिम्मेदारी ले लीजिये। यही सत्संग है, न कि केवल भजन गाकर वापस चले जाना। बुद्धिमान व्यक्ति आकाशवत् है जहां सभी तरह के पक्षी स्वच्छन्द विचरण कर सकते हैं।

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