आज, भारत में एक नई सरकार बनी है. इस नई सरकार के लिए दो सलाह हैं:
पहली सलाह उनके लिये जो जीत गये हैं – उन्हें सोचना चाहिये कि 'हम जीत गए, लोगों ने हम पर भरोसा किया है, तो हमें विनम्र होना चाहिए.' विनम्रता बढ़ाएँ. जो लोग हार गये उनको प्यार से देखें. उनके साथ हमदर्दी रखें. युद्ध के समय एक अलग स्थिति होती है : आप लड़ाई लड़ो । लेकिन जब युद्ध खत्म हो गया तब स्थिति भिन्न हो जाती है. दुश्मन को गले लगाओ. घावों पर मलहम लगाओ.
अब जो हार गये उनके लिये सलाह। जब तुम हारते हो तब तुम जो चाहते हो वह नहीं होता. तब फिर कई विकल्प उत्पन्न होते हैं-
कुंठा
अवसाद
क्रोध
ये तीन विकल्प तुम्हें सही रास्ते पर जाने से रोकते हैं, जिसके कारण तुम्हें नुकसान होता है.
चौथा विकल्प है कि, 'यह भगवान की इच्छा है.' इस तरह, हम बुरी भावनाओं से छुटकारा पा जाएंगे, और सकारात्मक कार्य में लग जाओ. मन को शांत कर कुछ रचनात्मक कार्य में खुद को संलग्न कर लो. अवसादग्रस्त होकर कुछ नहीं मिलेगा. अन्यथा न तो स्वयं की प्रगति होती है और न ही है समाज की.
हारी हुई पार्टी को यह सोचना चाहिए कि 'हमने अपनी पूरी कोशिश करी, लेकिन जो होना था, सो हुआ.’
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:”, अपने कर्म के फल की अपेक्षा किये बिना अपना कर्तव्य करो. जो भी फल मिले उसको स्वीकार करो - भूतकाल के प्रति समर्पण की भावना ही सच्चा समर्पण है. सच्चा समर्पण भगवान पर फल फूल चढ़ाना नहीं है. भगवान के लिए अतीत के कचरे का समर्पण असली समर्पण है. भगवान इस कचरे को फूलों और फल में बदल देते हैं.
इसलिए, भूतकाल पर गुस्सा मत हो, अवसाद में मत जाओ. नफरत का कोई मतलब नहीं है, और कुछ नहीं करने का भी कोई मतलब नहीं है. बुद्धिमानी की निशानी है कि समर्पण करके आगे बढ़ें.
यह हर देश में होता है. जंग होती है, कोई जीतता है और कोई हारता है.
जो जीते उन्हें अधिक विनम्रता दिखानी चाहिए, व और अधिक सम्मानजनक होना चाहिये . उन्हें विश्वास करना चाहिए कि: 'दूसरी पार्टी इसलिये हारी ताकि हमें खुशी मिले.' यदि वे इस तरह से सोचते हैं, तो वे अपने खुशी-दाता को अपमानित नहीं करेंगे और हारे हुए का सम्मान करेंगे.
भगवान जानते हैं कि किसे कहाँ पर रखें. भगवान का निर्णय स्वीकार करो. लोगों को इस तरह से सोचना चाहिए. जीत और हार जीवन का हिस्सा हैं. इस पद्धति को पहचान कर इसके ऊपर उठना ही विकास की निशानी है.
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