उस भारत के लिए - जो सपने देखता है तथा निर्भय है
परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा
इस शताब्दि में चीन बल के ज़ोर पर एक रहा है जबकी भारत की एकता का कारण उसकी संस्कृति तथा आध्यात्म हैं । हालांकि पिछले कुछ दशकों में, धार्मिक कट्टरता, जातीय हिंसा, नक्सलवाद तथा प्राकृतिक आपदाओं ने भारत को हिलाया है, इसके बावजूद इसकी आध्यात्मिक मूल्य के बल पर टिकी हुई अखण्डता और सहिष्णुता पूरे विश्व को साफ दिखने लगी है ।
स्वतंत्रता, आध्यात्म तथा ऐसी राष्ट्रीयता जो सभी का सम्मान करती है के मूल्य सदैव ही भारत ने अपनाये हैं । यह संसार की प्राचीनतम सभ्यता है । जब अमेरिका की खोज नहीं हुई थी तथा यूरोप में अंधकारमय युग था, भारत की ख्याति सभी जगह फैली हुई थी । भारत अपनी कला, वास्तु, आध्यात्म तथा व्यापार के लिए विख्यात था ।
बीती हुई शताब्दियों में भारत ने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है तथा उन पर विजय पाई है । इक ओर भारत ने न्याय तथा समानता के शिखर को छूआ है तथा एक ओर दलितों का दमन भी हुआ है । जहाँ भारत अहिंसक तथा सौम्य लोगों का देश रहा है वहाँ सती जैसी कुप्रथाएँ भी प्रचलित रही हैं । बीच की राय न होते हुए भारत के बारे में लोगों की या तो बहुत ही अच्छी राय है अथवा बहुत ही निकृष्ठ क्योंकि यह विपरीत मूल्यों से भरा हुआ है ।
शताब्दियों से भारत के सकारात्मक पहलुओं की आपेक्षा नकारात्मक स्वरूप का अधिक प्रचार किया गया है । सौभाग्य से अब यह बदल रहा है । अनेक भाषाओं, तथा जातियों में विभाजित तथा शताब्दियों के दमन से प्रभावित यह देश आत्मसंशय में लिप्त रहा है । जैसे कि कोई हाथी जो बड़े से बड़ा पेड़ तो उखाड़ सकता है, किंतु महावत के अंकुश से डरा रहता है, भारत भी कभी कभी भयभीत हो जाता है । पश्चिम ने भी भारत को एक सोया हुआ महाकाय बताया है ।
विश्व की एक छटवीं जनसंख्या के साथ इसे पहले ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा लेनी चाहिए थी । अब इसे विश्व के पटल पर अपना उचित स्थान ले लेना चाहिए । ऐसा होने के लिए इसके देश वासियों को अपनी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल पर और अधिक विश्वास तथा गर्व करना होगा । आतंक तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिए और अपने युवा मन को हिंसा की ओर बढ़ने से रोकने के लिए हमें अपने आध्यात्मिक मूल्यों को प्रसारित तथा पोषित करना होगा । नक्सल्वाद के मूल कारणों को संबोधित करना होगा तथा भ्रमित युवाओं को मुख्य धारा में लाना होगा । हमें सीखने तथा नवीनीकरण के लिए खुला मन रखना होगा न कि पश्चिमी उपभोगवाद एवं भौतिकवाद का अंधानुकरण।
१. शिक्षा को रोज़गार मूलक करना होगा।
२. राजनीति से भ्रष्टाचार तथा कदाचार को मिटाना होगा ।
३. युवाओं को सामाजिक विकास में रुचि लेने के लिए शिक्षित तथा प्रोत्साहित करना होगा ।
४. कृषि क्षेत्र की ओर ध्यान देना होगा, जहाँ एक ओर औद्योगिक विकास हुआ है वहीं कृषि पूर्णतः उपेक्षित रही है ।
५. स्वच्छता पर ध्यान देना होगा ।
६. एड्स के प्रति जागरूकता बढ़ाना होगा ।
७. कन्या भ्रूण हत्या रोकना होगा ।
८. जल संसाधनों का उचित उपयोग करना होगा।
जिस प्रकार से जनसंख्या बढ़ रही है, इन समस्याओं का समाधान अब भी बहुत दूर है ।
प्राचीन ज्ञान जो कि भारत का मान रहा है लगभग भुलाया जा चुका है, उसके पुनर्स्थापना की आवश्यकता है ।
हमें उस भारत के लिए कार्य करना होगा जिसमें हिंसा, आतंक की कोई जगह नहीं हो, निर्धन को सहयोग तथा न्याय दोनों हो, मध्यवर्ग, भय तथा असंतोष से मुक्त हो, सपने देख सके तथा निर्भय हो और समृद्धशालीवर्ग सामाजिक उत्तरदायित्व लें तथा मानवीय मूल्यों को धारण करें । पूरे विश्व और अपने भले के लिये उस भारत की परिकल्पना करनी होगी जो अपने ज्ञान तथा संस्कृति के श्रेष्ठ पहलुओं को २१वीं सदी के अनुसार ढाल कर आगे बढ़ सके ।