“प्रभात की अरुणिमा में उनकी मुरली की शांति धुन अभी तक मंत्रमुग्ध कर रही है...” शीर्षक से एक लोकप्रिय दैनिक पत्र ने परमपूज्य श्री श्री रविशँकर के एक सप्ताह लम्बे दौरे को प्रकाशित किया इस लेख ने भारत के सबसे पूर्वी राज्य में किये गए इस दौरे के भाव को कुशलतापूर्वक चित्रित किया।
इस आगमन के दौरान श्री श्री ने एक समृद्ध एवं शांत अरुणाचल प्रदेश के निर्माण के लिये एक प्रक्रिया प्रारम्भ की जिसमे वहां की स्थानीय जनसंख्या को सम्मिलित किया, विशेषतौर पर युवाओं को। इस सतत विकासशील पहल को क्रियान्वित करने के लिये और राज्य की पारम्परिक संस्कृति एंव प्रोत्साहन करने के लिये एक दीर्घकालिक अंतर दृष्टि प्रदान की।
भारत को भौगोलिक दृष्टि से अरुणाचल प्रदेश केवल एक सामरिक महत्व का स्थान रखता है अपितु यहाँ लोगों की मनःस्थिति पर भी विस्मयकारी प्रभाव डालता है।उनके लिये यहाँ “उगते सूर्य का प्रदेश” भी है। भारत हर सुबह सर्व प्रथम अरुणाचल में ही जागता है।
आगमन के समय जब अरुणाचल प्रदेश की मिश्रित संस्कृति एवं सामांजस्य लिये हुए विविधता , जो तीन देशों की अंतराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा है- म्यामार, भूतन, और चीन परिणमस्वरूप ये न केवल बाह्य दबाव से गुजर र्हा है अपितु आंतरिक दबाव्से भी ग्रसित है। अरुणाचल प्रदेश की समृद्ध संस्कृति की सराहना करते हुए श्री श्री ने कहा,”पुरातन विश्वास एवं संस्कृति विश्व की धरोहर हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है” उन्होंने कहा कि आर्ट ऑफ लिविंग इन्हें न केवल अरुणाचल प्रदेश में अपितु पूरे देश एवं विश्व में लोकप्रिय बनाने के लिये वहां के स्थानीय समुदायों के साथ कार्य करेगा।
इस राज्य में अपने प्रवास के दौरान श्री श्री ने ईटानगर, पासीघाट,और तवांग के अनेक जन आयोजनों में सम्मिलित हुए और सामाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से समपर्क एवं अंतर्वाता की। पासीघाट में श्री श्री ने त्रिदिवसीय- पारम्परिक युवामहोत्सव को सम्बोधित किया और पारम्परिक नेताओं से वार्ता की, कि युवाओं को अपनी जड़ों का सम्मान करना चाहिये न कि उन पर शर्मिन्दा होना चाहिये। वहां के लोगों ने हर कदम पर श्री श्री का पूरी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। अपनी अंतर्वाता के दौरान श्री श्री ने पुरातन विश्वासों को संरक्षित करने एवं विविधताऑं का सम्मान करने की आवश्यकता पर बल दिया।
2 दिसम्बर को गुरूजी ने तवांग की यात्रा की एवं एक बड़े सार्वजनिक समारोह को सम्बोधित किया। श्री श्री ने दृढतापूर्वक कहा की कोई भी ताकत अरुणाचल प्रदेश को भारत से अलग नहीं कर सकती क्योंकि यह “उगते सूर्य का प्रदेश” भारत का हिस्सा है(“चीन पूरे भारत का प्रिय बने और हमसे हाथ मिलाए, नाकि हमसे भूमि के एक टुकड़े को त्याग करने को कहे।)
श्री श्री के सार्वजनिक आयोजनों के दौरान तवांग के ऑफिस और व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने अपने कार्यों को स्थगित करके गुरुजी का महान स्वागत किया। उन्होंने तवांग के बौद्ध स्तूप का दौरा किया और वहां के भिक्षुऑं स अंतर्वाता की। उन्होंने 1962 में चीन के विरुद्ध अपने देश कि रक्षा करते हुए शहीद सैनिकों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि भि अर्पित की।तवांग आगमन के दौरान श्री श्री ने मुख्य मंत्री डोरी खाण्डू से उनके आवास पर एक घंटे लम्बी अत्यंत महत्व्पूर्ण मुलाकात की तत्पश्चात उनके साथ ईटानगर वापस चले गए।
श्री श्री ने ईटानगर में एक अनूठी कार्यशाला का संचालन किया जिसमें लोगों को स्वस्थ, सुखी, एवं अर्थपूर्ण जीवन जीने के रहस्य बताए गए।विभिन्न पृष्ठ्भूमियों के करीब 4000 लोग इस “हेल्थ ऐंड हैपिनैस” कार्यशाला में सम्मिलित हुए जहाँ श्री श्री ने प्रतिभागियों को प्राणायाम , योग और ध्यान कि शांति पूर्ण दुनिया से परिचित कराया। उन्होंने “ विस्ड्म ऐंड म्युसिक फौर वन वर्ल्ड फैमिली”नाम के समारोह में भी सम्मिलित हुए।
दौरे के अन्य केन्द्र बिन्दू अरुणाचल प्रदेश और अन्य पूर्वोतर राज्यों से आए करीब 1000 युवाओं के लिये आयोजित प्रशिक्षण कर्यक्रम, युथ लीडरशिप ट्रेनिंग कार्यक्रम था युवाओं ने श्री श्री से वार्तलाप की और एक तनाव रहित हिंसा मुक्त विश्व एवं सम्पूर्ण क्षेत्र के ग्रमों के सतत विकास की अचूक पहल के लिये उनके दृष्टिकोण के कृयांवयन के लिये योजनाओं की रूपरेखा बनाई। श्री श्री ने कहा कि आर्ट ऑफ लिविंग इस क्षेत्र के युवाओं को प्रशिक्षित करने एवं रोजगार प्रदान करने के लितये योजना बना रही है।उन्होंने कहा कि आदिवासी जनजातियों मे से चर्यानित युवाओं के युथ लीडर अथवा युवाचार्य बनने के लिये प्रशिक्षण दिया जाएगा।
अपने प्रवास के दौरान श्री श्री ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल जे।जे।सिंह से राज्यभवन मे मुलाकात की। ईटानगर के बिशप जौन थौमस काट्रूकुडिविल को भी श्री श्री ने ईटानगर के जूली बस्ती स्थित आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम मे बुलाया जहां उन्होंने एक घंटे का समय व्यतीत किया।
श्री श्री ने राज्य मे अपने एक सप्ताह लम्बे दौरे की समाप्ति असहिष्णुता के प्रति सहनशीलता न दिखाने की प्रवृति को प्रोत्साहन करने एवं पुरातन संस्कृति को पोषण करने के आवाहन के साथ की।”भारत की समंजनशीलता एवं सबसे प्रेम करने का पुराना इतिहास है और इसे हर कीमत पर संरक्षित करने की जरूरत है।” उन्होंने ईटानगर छोड्ने से पहले एक प्रेसवार्ता मे कहा।
श्री श्री ने धार्मिक एवं सांस्कृतिक असहनशीलता के बढ़ते स्तर के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, आध्यात्मिकता के आभाव को इसके लिये दोषारोपित किया। हाल ही मे मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले का उल्लेख करते हुए, जिसमे यहूदियों को विशेष तौर पर निशाना बनाया गया था, उन्होंने कहा कि यहाँ भारत के सहनशीलता के इतिहास पर एक बड़ा धब्बा है; क्योंकि यहूदियों को कभी देश मे पीड़ित नहीं रखा गया है। उन्होंने इस पर खेद व्यक्त किया कि आज के राजनेता आतंकवाद एवं धर्मोन्मतता के दमन के लिये कुछ कार्य करने के स्थान पर अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिये अधिक चिंतित हैं। पथभ्रष्ट आतंकवादियों से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि वो विविधता को सराहें, उन्होंने कहा “भारत विभिन्न रंगों के पुष्पों का गुल्दस्ता है, और इसे नष्ट करने का अधिकार किसी को भी नहीं है।” उन्होंने धार्मिक नेताओं से पथभ्रष्ट तत्वों को शिक्षित करने का आग्रह किया।
विभिन्न विद्यालयों की स्थापना, ऑषधीय वनसपतीयों एवं स्थानीय फलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने, स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करना एवं ज्ञान के मंदिरों के निर्माण के लिये योजनाएँ चल रहीं है जिसमे 180 बच्चों का स्कूल् भी चल रहा है। ये एक अन्य उदाहरण है कि कैसे श्री श्री विश्व मे भ्रमण करके सतत सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये परियोजनाऑं को क्रियाशील करते हैं।
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