December 29, 2008

वासन्थी

वासन्थी

       एक प्रतिष्ठित आय्यन्गर परिवार की वासन्थी, यू.एन.आई. के ब्यूरो प्रमुख श्री नारायणन की पत्नी हैं। बंगलौर आने से पहले वे कई वर्षों तक सिंगापुर में रह चुकी हैं।

 

क्लिप ग़ायब!

       कुछ वर्ष पहले मुझे ऑपरेषन के द्वारा अपना गर्भाषय निकलवाना पड़ा। जिस डॉक्टर ने ऑपरेषन किया था, उसने ऑपरेषन करने में मेरे गुर्दे को नुकसान पहुँचाया जिसके कारण सर्जरी के बाद भी मेरा दर्द गया नहीं बल्कि तीन महीने में और बढ़ गया। मैंने और अच्छे इलाज के लिये भारत आने का निष्चय किया। यहाँ पर जाँच से पता चला कि पहले वाले ऑपरेषन में डॉक्टर मेरे उदर क्षेत्र में एक छोटा क्लिप छोड़ कर भूल गये थे। यहाँ के डॉक्टरों ने फिर से सर्जरी कर के मेरे उदर क्षेत्र से वह क्लिप निकालने का निष्चय किया। मैंने सोचा कि गुरुजी के जर्मनी से लौटने के बाद उनके दर्षन करने के बाद ऑपरेषन करवाऊँगी।

       मैं सर्जरी के लिये अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर चुकी थी क्याेंकि दर्द बढ़ता ही जा रहा था। मैंने फ़ोन से गुरुजी से बात की और उन्होंने मुझे एक घ्यान करने को कहा। एक सप्ताह बाद, मैं ऑपरेषन से एक दिन पहले अपनी जाँच करवाने गई। अगले दिन गुरुजी लौट आये और अपनी रिपोर्ट लेने से पहले मैं आश्रम में पूजा में चली गई। जब मैं रिपोर्ट लेने पहुँची तो डॉक्टरों को आष्चर्यचकित पाया। वह क्लिप ग़ायब हो चुकी थ्ीा।

भक्ताें के आनन्द :

गुरुजी से मेरा संपर्क 1988 में हुआ। उस समय मैं कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित थी, जैसे रीढ़ में कष्ट, स्पॉनडिलाइटिस, साँस की तकलीफ़। हृदय पर इस सब का बहुत दबाव पड़ रहा था और डॉक्टरों ने कहा था कि इस हालत में मैं 6 महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह पाऊँगी। मैं अवसाद की स्थिति में थी और मेरे परिवार की भी चिंता बढ़ रही थी।

       मैं रोज़ श्री कृष्ण भगवान से प्रार्थना करती थी। एक दिन मैं बैठी और प्रार्थना की कि वे अब मुझे ले जायें- मैं 6 महीने भी जीना नहीं चाहती थी। जब मैं प्रार्थना कर रही थी तो मुझे एक दर्षन हुआ। ऐसा लगा जैसे बारिष हुई हो और एक लगभग दस साल का लड़का, सफ़ेद कपड़े पहने हुए, मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाये खड़ा था। मैं एक अंधेरे कुएँ में थी और उस बालक ने अपना हाथ बढ़ाकर मुझसे उसे पकड़ कर ऊपर आने को कहा। मैं उसका हाथ पकड़ने की नाकाम कोषिष कर रही थी, कि उसने दोनों हाथों से मुझे उठा कर ऊपर खींच लिया। मैं इतना हल्का और आनंदित महसूस कर रही थी कि मैंने सोचा कि ईष्वर मुझे यहाँ से ले गये हैं। एक या दो घंटे बाद मैंने अपनी ऑंखें खोली और अपने आप को इसी दुनिया में पाया।

       उस अनुभव के दो दिन के अंदर ही सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग के एक कर्मचारी के घर पर एक सत्संग होना था जिसमें मुझे निमंत्रण मिला था। जब मैं वहाँ पहुँची तो ऐसा लगा कि वहाँ लोग किसी की प्रतीक्षा कर रहे थे, किसी योगी की। मैं किसी से बात नहीं करना चाहती थी। दरवाजा खुला और अचानक गुरुदेव बाहर निकले और मैंने सोचा 'कल तो आप मेरे साथ थे, और आज आप यहाँ है।' मुझे अपने अंदर एक अजीब से आनन्द की अनुभूति हुई। मुझे लगा ''यही मेरे कृष्ण है।'' मैं उन्हें अपने बारे में बताना चाहती थी। मै चाहती थी की वे मेरे विषय में तथा मेरे अनुभव के विषय में जाने। सत्संग के दौरान वे किसी बात पर चर्चा कर रहे थे, मेरी तरफ देख कर बोले 'क्यों वासन्ती, समझ में आया ?'

       मेरे लिये बेसिक कोर्स काफ़ी कठिन और कष्टदायी था, पर कुछ समय बाद मुझे अच्छा लगने लगा और शरीर में कुछ बदलाव महसूस हुआ। मैंने अपनी पीठ से बेल्ट व गले से कॉलर हटा दिया जिसके कारण मैं ठीक से साँस लेने लगी। उसके बाद जल्दी ही मैं आश्रम गई और उन्नीस दिन वहाँ रही। गुरुजी की कृपा से मैं उस समय में बिलकुल ठीक हो गयी और बिलकुल नयी होकर लौटी। मैं तृप्त हो गई। मानसिक अथवा किसी भी अन्य स्तर पर, मैं पुरानी वाली वासन्ती नहीं थी। ये मेरे लिये सचमुच एक चमत्कार था।

       गुरुदेव से संपर्क में आने से पहले, शारीरिक स्तर पर मैं ठीक से साँस भी नहीं ले पाती थी, बिलकुल भी नहीं। मैं बहुत अधिक भावुक स्वभाव की थी। मानसिक स्तर पर मुझे अपने संबंधियो के कारण काफी कठिन क्षणों का सामना करना पड़ा था। पर आश्रम में बिताये उन उन्नीस दिनों में मैं पूरी तरह बदल गयी थी। मेरे पति व परिवार वालों ने मुझमें आये इस बदलाव को देखा और फिर वे भी जुड़ गये।

       पहले मैं अपने में ही रहती थी और लोगाें से मिलना पसंद नहीं करती थी। आज मैं विष्व भर में कोर्स लेती हँ। बहुत आष्चर्य होता है यह देख कर कि अब मैं केैसे हर जगह घर जैसा ही अनुभव करती हँ और लोगों से मिलकर मुझे कितनी खुषी होती है। मैं जहाँ भी जाती हँ अपने आपको मार्गदर्ष्ाित व रक्षित अनुभव करती हँ।

       ऑस्टे्रलिया से, हाल ही में कोर्स लेते समय कई लोगों को गुरुजी की उपस्थिति का आभास हुआ। यह बस, आष्चर्यजनक था। पर्थ में एडवांस्ड कोर्स के बाद हम 6 लोग ंकिंग्स पार्क नाम के एक उद्यान में गये। पार्क से आप नीचे बहती हुई 'स्वान' (हंस) नदी की ओर देख सकते हैं। लगभग शाम के 6:30 बजे थे, नदी के ऊपर एक नीली रोषनी थी। हमने सोचा कि यह पानी के ऊपर एक प्रतिबिम्ब है, पर वह बढ़ती रही और हम इस रोषनी को आसमान में भरते हुए देख सकते थे। तभी पानी में हमें श्वेत वस्त्र पहने गुरुजी की छवि उभरती दिखाई दी। हम उनके केष व उनकी ऑंखे देख सकते थे और यह भी कि वह छवि पीछे मुड़ी और हमारी ओर देखने लगी। मन में एक विस्तार हुआ। वह एक गहरा अनुभव था।

       लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं 'उन्हें' किस रूप में देखती हँ, विष्णु, देवी, गणपति, या जीसस, या कुछ और ? मेरे हृदय में दिव्यता के इन सभी स्वरूपों के लिये प्रेम है। यह अभी शक्तियाँ गुरुजी के रूप में एक हो गयी हैं। और मज़े की बात यह है कि आप उन्हें छू सकते हैं, उनसे बात कर सकते हैं, उनकी अनुभूति भी कर सकते हैं । उनके परे कुछ भी नहीं है। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा चमत्कार है।

       जहाँ भी आप जायें, पथ आपके लिये बिछा हुआ है और जीवन बड़ा सरल हो जाता है। यह टीचर होने का एक बड़ा अनुभव है। यह उनके प्रेम की शक्ति है जो आस्था या किसी और भाव से बढ़कर है।

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