वह विशेष कलीनेक्स -
1993 की गर्मियों में, लेक जेनिवा (विस्कॉन्सिन) में आयोजित, गुरुदेव, के सान्न्ध्यि में हुए सप्ताह भर के कोर्स को करने के बाद हम लोग वैनकूवर (कनाडा) पहुँचे। कहने की जरूरत नहीं, पर फिर भी, वह कोर्स जीवन बदलने वाला था, अगर कहें कि कोर्स करके पुनर्जन्म हो गया तो गलत नहीं होगा।
उस कोर्स में गुरुजी के आस-पास हर क्षण इतनी भीड़ होती थी कि मैं उनसे कुछ बोल ही नहीं पाता था। मुझे उनके साथ कुछ क्षण अकेले में बात करने की तीव्र इच्छा थी। परंतु शायद उस कोर्स में हर कोई यही चाहता था, और मुझे अपनी इच्छा की पूर्ति असंभव लगने लगी।
वैनकूवर में, गुरुजी एक हिन्दू मंदिर में रविवार की प्रात: कालीन पूजा में प्रवचन देने गये। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद और लोग तो दोपहर का भोजन करने चले गये, पर मैं उनकी फ़ोटो खींचने की मंषा से वहीं खड़ा रहा।
लगभग दस मिनट के बाद गुरुजी के साथ थोड़े से ही लोग थे, जो उनसे बात कर रहे थे। बाद में वे लोग भी चले गये और मैं अकेला, उनके साथ, उनके कमरे में रह गया।
मैं संकुचाया सा वहाँ खड़ा था। गुरुजी उस हॉलनुमा कमरे में टहलते हुए कुछ वार्तालाप कर रहे थे। मेरे पास पहुँचते ही उन्होंने मुझसे पूछा कि मुझे कोर्स कैसा लगा। मैंने उनसे कहा कि मुझे कोर्स बहुत अच्छा लगा और उन्होंने मेरे और मेरे प्रियजनों के लिये अब तक जो कुछ भी किया, उसके लिये मैं बहुत कृतज्ञ हँ। यह कहते-कहते मैं फूट-फूट कर रो पड़ा। उन्होंने मुझे उनके पीछे-पीछे मंच तक आने का संकेत किया और वहाँ मुझे एक टिषू पेपर (क्लीनेक्स) दिया, जिसकी उस समय (कहने की जरूरत नहीं) मुझे बहुत ज़रूरत थी। यह मेरा पहला अनुभव था कि गुरुदेव कैसे हम में से प्रत्येक की छोटी से छोटी आवष्यकताओं के प्रति अपना ध्यान रखते हैं।
उस पहली रूबरू मुलाक़ात के बाद मेरा जीवन बहुत बदल गया है। अब जीवन में केवल आनंद ही आनंद हैं, प्रेम ही प्रेम है।