September 19, 2008

धड़कन चलती रही............ -डॉ. रमोला प्रभु

मेरीलैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरीका की डॉ. रमोला प्रभु (एम.डी.) सुदर्शन क्रिया के प्रभावों पर होने वाले चिकित्सा अनुसंधानों से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं।

एक बार गुरुजी दोपहर में वांशिगटन से लॉस ऐंजिलीस जाने वाले थे। मेरे पति गणेश को भोर के समय गुरुजी के साथ क्रिया करने की अनुमति मिल गयी थी जिसे लेकर वे काफ़ी उत्साहित थे। डरते हुए उन्होंने पूछा कि क्या वे गुरुदेव के दिल की धडकन को क्रिया के दौरान नाप सकते है ? उन्होंने आधे घंटे तक, क्रिया के दौरान, गुरुजी के दिल की धड़कन मापी और बाद में मशीन को गुरुजी के शरीर से अलग कर गाड़ी में रख दिया, क्योंकि सभी लोग हवाई अड्डे जा रहे थे। शाम को मैंने उनसे सुबह के परीक्षण के विषय में पूछा तो पता चला कि वे मशीन को कमरे में ही भूल आये थे। वे भागे-भागे दफ़तर गये और उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही जब उन्होंने देखा कि मशीन तब भी चल रही थी, मानो गुरुजी से अभी भी जुड़ी हुई हो। तभी अचानक, ठीक सात बजे, मशीन बंद हो गई।
जब गणेश ने क्रिया के दौरान गुरुजी की धड़कन का ग्राफ देखा तो पाया कि गुरुजी को धड़कन पहले 40 फिर 20 प्रति मिनट की दर पर आ गई थी और अंत में 20-30 सेकंडो तक तो शून्य हो गई (बंद हो गई)। तीन बार ऐसा हुआ कि क्रिया के दौरान 20-30 सेकंड के लिये गुरुजी की धडकन बंद हो गई। गणेश ने उत्साहित हो कर गुरुजी को अपने एक मित्र के मोबाइल पर फ़ोन करके पूछा कि सात बजे क्या हुआ था ? गुरुजी हँसे और बोले ''अरे, सात बजे मैं लॉस एंजिलीस पहँचा था।''

रहस्यमय व्यक्ति:-
मेरा प्रतिदिन अब जीवन के चमत्कारों से भर गया है। अच्छी तरह याद है वे दिन जब मेरा जीवन आषारहित व दु:ख से भरा था। उस समय बर्फ पर फिसल जाने से लगी चोट से मुझे अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में चिंतन करने का समय मिला। मैंने निष्चय किया कि मुझे अपने व्यस्त जीवन से कुछ विश्राम लेना होगा। उसी दौरान गुरुदेव की षिक्षा से मेरा परिचय हुआ।

मेरा पीठ-दर्द लगभग पूरी तरह से ठीक हुआ और मेरे चिड़चिड़ेपन में काफ़ी कमी आयी। गुरुदेव ने मुझे जीने का एक मकसद व जीवन के हर पक्ष के मूल्य को समझना व उचित सम्मान देना सिखाया। मेरे जीवन का हर क्षण उनके प्रति एक अर्पण बन गया।
यांति और उल्लास से जीवन का हर क्षण चमक उठा। अभी भी मुझे याद है जब न्यू यॉर्क में सुबह चार बजे फ़ोन की घंटी बजी थी। फ़ोन मेरीलैण्ड के दुर्धटना संकाय की एक नर्स का था। उसने बताया कि हमारे बेटे को एक कार दुघर्टना में कनपटी पर बहुत गहरा घाव लगा था और उसका operation करना पड़ा था। नर्स ने हमें विष्वास दिलाया कि हम बड़े भाग्यषाली माता-पिता हैं और अपने बेटे को घर ले जा सकते हैं। हमें तो इस बात पर विष्वास ही नहीं हो रहा था और हम बस काँपते हुए सुनते रहे। मेरे पति और दोनों बेटियाँ जिस दिन हमारे बेटे गोकुल को घर लाए उसी दिन गुरुजी न्यू यॉर्क पधारे।
आष्चर्यजनक रूप से, जिन लोगाें को गुरुजी को लेने आना था उन्हें आने में बहुत देर लगी और मैंने अपने आपको गुरुदेव के साथ हवाई-अड्डे पर अकेला खड़ा पाया, जैसा मैं चाह रही थी इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती उससे पहले गुरुजी बोले ''गोकुल का ऐक्सिडेंट हो गया न ? चिंता न करो, सब कुछ ठीक हो जायेगा।'' मैं तो बस रो पड़ी।
बाद में गोकुल ने बताया कि एक गाड़ी गलत दिषा में उसकी ओर आ रही थी। घना अंधेरा होने के कारण उससे बचाने की कोषिष में वह एक खम्भे से टकरा गया। उसके शरीर का दाहिना हिस्सा पूरी तरह खून से तर हो गया था। जैसे ही वह उठने की कोषिष करता, चक्कर खाकर गिर पड़ता था। तभी कहीं से एक आदमी आया और उसने गोकुल से पूछा कि क्या उसे मदद की जरूरत है ? कोई गाड़ी नहीं, कोई रोषनी नहीं, कोई और आवाज़ नहीं, बस यही आदमी जो मदद की पेषकष कर रहा था। जल्दी ही पुलिस आ गई और गोकुल को हेलिकॉप्टर द्वारा अस्पताल ले जाया गया।
मैंने अगले दिन पुलिस स्टेषन से उस आदमी के बारे में जानना चाहा तो वे बोले कि वहाँ तो कोई भी नहीं था, और किसी ने फ़ोन भी नहीं किया था '' उस अंधकार में वह कौन था जिसने गोकुल की सहायता की ? मुझे तो किसी उत्तर की आवष्यकता नहीं थी और गुरुजी की मेरे परिवार के ऊपर कृपा पर मेरे विष्वास की पुष्टि हुई।

रोगों का उपचार:-
कुछ वर्ष पूर्व मेरी चाची के गले में एक बहुत बडा टयूमर हो गया। डॉक्टरों को समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी जड़ कहाँ है, जिससे उन्हें पूरे शरीर में रेडियेषन व कीमोथेरेपी करवानी पड़ी। डॉक्टरों ने उन्हें जीने के लिये केवल 6 महीने का ही समय शेष है, ऐसा बताया। मेरे चाचा और चाची ने यूरोप में अपने पोते-पोतियों के साथ कुछ समय बिताने का निष्चय किया। मैंने उनसे अमरीका में हम लोगों से मिलने आने को कहा। वे बाल्टीमोर आये। उसी दौरान हमारे घर पर एक बेसिक कोर्स शुरू होने जा रहा था। उन दोनों ने वह कोर्स किया। सुदर्षन क्रिया के दौरान मेरी चाची गले में जलन की षिकायत करती थीं, पर किसी तरह उन्होंनें उस कोर्स को पूरा किया। उसके बाद वे दोनों भारत लौट गये। सात साल बीत चुके है, मेरी चाची जीवित और स्वस्थ है और नियमित रूप से क्रिया करती हैं। आजकल वे अपने इलाके के गरीब बच्चों के लिये एक स्कूल चलाती हेैं।
केटी (असली नाम गुप्त रखा गया है), एक महिला जो कि पचास साल के लगभग आयु की हैं, को 'सिस्टेमिक लूपस' की बीमारी थी। लगभग तीस वर्षो से वे इस बीमारी से पीड़ित थीं जिसके फलस्वरूप उनका शरीर जैसे खोखला हो गया था। उनके दोनों गुर्दे खराब हो चुके थे और ऑपरेषन कराके उन्होंने एक गुर्दा प्रतिरोपित कराया था। इसी प्रतिरोपित गुर्दे में उनका जीवन चलता था। उनके शरीर के सभी महत्वपूर्ण जोड़, धातु अथवा प्लास्टिक के अंगो द्वारा बदले गये थे (दोनाें ऐड़ियाँ, दोनाें कूल्हे, दोनों घुटने, दोनों कलाइयाँ)। बाल्टीमोर के शेरटन होटल में जब गुरुजी एक वार्ता दे रहे थे तो केटी उन्हें सुनने वहाँ गई। उसके एक हफ्ते बाद उन्होंने बेसिक कोर्स किया और एक महीने बाद कैनडा में गुरुदेव के सान्निध्य में एडवांस्ड कोर्स भी किया। इससे उन्हें कुछ लाभ अवष्य हुआ होगा क्योंकि इसके बाद उन्हाेंने बहुत से एडवांस्ड कोर्स किये और फिर एक डी.एस.एन. कोर्स भी किया। समकालीन चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यदि देखा जाये तो केटी को दी जाने वाली दवाआें के साइड इफेक्ट से ही उन्हें पंगु होकर बिस्तर पकड़ लेना चाहिये था। परंतु गुरु कृपा व नियमित साधना से वह आज काम पर जाती है और एक भी सत्संग नहीं छोड़ती हैं।
डॉन नामक एक व्यक्ति को धूम्रपान व मद्यपान की बुरी लत थी। वे किसी की भी बात नहीं सुनते थे और अपनी लत नहीं छोडते थे। एक दिन गॉल्फ खेलते वक्त उन्हें एक बड़ा दौरा पड़ा और वे वहीं गिर गये। उसके बाद वे अपनी नौकरी छोड़ अपनी पत्नी व जवान बेटे के साथ कैलिफ़ोर्निया में रहने आ गये। कुछ महीनाें बाद उन्हाेंने फ़ोन करके कहा कि वे उस ''साँस वाली चीज़'' को सीखना चाहते हैं। उनके आधे शरीर को लकवा मार चुका था और वे किसी तरह अपनी पत्नी के साथ कोर्स करने पहुँचे। कुछ सप्ताह बाद डॉन ने फ़ोन करके बताया कि वे चलने लगे हैं। इसके एक महीना बीतने के बाद डॉन की पत्नी ने फ़ोन किया, उनकी खुषी की सीमा न थी। डॉन ने धूम्रपान और शराब छोड़ दिये थे, वे फिर से गॉल्फ खेलने लगे थे।

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