September 17, 2008

श्री श्री और SIMI -एक संवाद

श्री श्री और SIMI -एक संवाद
स्वामी सद्योजाथः और हरीश रामचंद्रन द्वारा

एक रूढिवादी की मानसिकता कैसी विस्मयपूर्ण होती है? वह क्या है जो उनको वैमनस्य की तरफ उकसाता है? कुछ समय पूर्व हमें Art of Living के प्रणेता परम्पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी और कुछ SIMI (Student Islamic Movement of India) के कार्यकर्ताओं के मध्य हुई वार्तालाप को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ. इतने समय पूर्व हुए वार्तालाप से भी आज के परिपेक्ष में हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.

इस लेख की पृष्ठभूमि श्री श्री रवि शंकर जी का केरला का दौरा है जो कि दिसम्बर 2000 के पहले सप्ताह में हुआ था. केरला के विभिन्न शहरों में श्री श्री के आगमन पर आनन्दोत्सव का आयोजन किया गया था. आनन्दोत्सव में लाखों लोगों के सम्मेलन की व्यवस्था के लिए केरला के आयोजक पूर्णतः कार्यशील थे. कई माह पूर्व से आर्ट ऑफ लिविंग के सैकड़ों स्वयंसेवक पूरे जोश के साथ तैयारी में जुटे हुए थे. पर आयोजन के केवल एक सप्ताह पूर्व समाचार पत्र में SIMI द्वारा 6 दिसम्बर को (जो बाबरी मस्जिद का ध्वस्तीकरण का दिन था) पूरे केरला में बंध का ऐलान कर दिया गया. इसी 6 दिसम्बर को त्रिसूर में जो केरला की सांस्कृतिक राजधानी है आनन्दोत्सव का आयोजन होना था. पुलिस ने भी आगाह किया कि उनको बम विस्फोट की धमकियाँ मिली हैं. श्री श्री ने व्यवस्थापक समिति के अध्यक्ष श्री जेवियर के संपर्क करने पर कहा ''सत्संग तो होगा.''

समाचार पत्रों में कार्यक्रम को स्थगित करने की घोषणा और पुलिस द्वारा दी गई अनुमति वापस लेने के बावजूद भी 6 दिसम्बर को एक लाख से अधिक व्यक्ति सत्संग में सम्मलित हुए. अगले दिन श्री श्री ने SIMI के नेताओं से मुलाकात रखी.

SIMI के चार नेताओं एक व्यवस्थापक के घर मुलाकात करने आए. उनके आने से हॉल में तनाव महसूस होने लगा जहाँ सैकड़ों भक्त श्री श्री से मिलने के लिए इन्तजार कर रहे थे.

नसीब, आर्ट ऑफ लिविंग का एक भक्त उन नेताओं को लेकर उस कमरे में आया जहाँ हम लोग श्री श्री के साथ बैठे थे.

SIMI के नेता 22-24 वर्षीय हट्टे-कट्टे युवक थे जिनमें से एक अपने हाथ में कुरान-ए-पाक लिए हुए था. वे सख्त और निष्ठुर लग रहे थे. उनकी भीतरी आग और हठीलापन जता रहा था कि वे श्री श्री की हर बात को काटेंगे और तर्क वितर्क करेंगे.

श्री श्री अपने सहज प्रफ़ुल्लित स्वरुप में थे। वाद विवाद के लिए मंच तैयार था जिसमें एक ओर थे असंयमी, उध्दत, अधीर आदर्शवादी, अपनी श्रेष्ठता सिध्द करने के लिए तत्पर युवक और दूसरी ओर शांत, सौम्य, ज्ञान की गहराइयों में डुबकी लगाए हुए सिध्द पुरुष. कमरे में बैठे हम सभी लोग यह जानने के लिए बहुत उत्सुक थे कि श्री श्री इन तेज तर्रार युवकों से कैसे निपटेंगे. श्री श्री ने उनको गले लगाकर बैठने का निमंत्रण दिया. श्री श्री की सहजता में लेशमात्र भी परिवर्तन नहीं था. कोई भी इन युवकों श्री श्री के भक्त समझने की भूल कर सकता था. केवल एक ही अन्तर था कि वे चारों कुर्सी पर बैठे थे और बाकी हम सब भक्त नीचे जमीन पर. हम सभी के लिए श्री श्री के निस्वार्थ प्रेम को अनुभव करने का एक और अवसर था.

दल के नेता ने बोलाः
SIMI - आप हमसे मिलना चाहते थे?

श्री श्री – हाँ - हम जानना चाहते थे कि आपकी संस्था को आनन्दोत्सव से क्या विरोध है?

SIMI -हमको लगा कि 6 दिसम्बर का आनन्दोत्सव हमारी मजहबी जज़बातों को जानबूझ कर तौहीन पहुँचाने के लिए किया गया है. क्या आप हमारे मजहब के बारे में कुछ भी जानते हैं? क्या आप कुरान में जरा भी यकीन रखते हैं?

श्री श्री – हाँ-अवश्य.

SIMI – (उनको इस उत्तर की अपेक्षा नहीं थी. कुरान की ओर इशारा करते हुए उन्होंने अगला सवाल किया) हमारा मानना है कि ज्ञान केवल कुरान में ही है. आपको क्या लगता है?

श्री श्री - यह ज्ञान समय समय पर मनुष्य के सामने प्रकट हुए विभिन्न ज्ञानों में से एक है.

SIMI - पर अल्लाह के मुताबिक यही इकलौता इल्म है. कुरान का बताया रास्ता ही इकलौता रास्ता है, दूसरा और कोई रास्ता नहीं है.

श्री श्री - यह संदेश तो सभी धर्मग्रन्थों में है - वेदों में कहा गया है ''नान्यः पन्थाः अन्याय: विद्यते.'' अर्थात सत्य के सिवाय कोई भी अन्य मार्ग नहीं है. बाइबिल में भी यही कहा गया है. जीसस कहते हैं, ''परमपिता ईश्वर तक पहुँचने के लिए मुझसे होकर गुजरना होगा. मैं ही एकमात्र रास्ता हूँ.''

SIMI - पर हमारा मजहब कहता है कि बुतपूजा बुरी है, कुफ्र है.

श्री श्री - अच्छा और बुरा आखिर है क्या? यह सापेक्ष है. इस सापेक्ष अस्तित्व में कभी पूर्णता नहीं होती. जैसे दूध लाभदायक है पर अत्यधिक दूध घातक हो सकता है. विष हानिकारक होता है - परन्तु बूँदमात्र विष जीवनदायक हो सकता है. अधिकतर जीवनरक्षक दवाइयों पर ''विष'' लिखा होता है. यह सभी ना ही पूर्णतः अच्छे हैं और ना ही पूर्णतः खराब. वह तो बस ''है''. सत् द्वैत के परे है. ईश्वर ही सम्पूर्ण और इकलौता सत् है. तो इसमें निष्ट-अनिष्ट के लिए जगह ही कहाँ है?

SIMI - फिर भी आप हिन्दु लोग अनेकों देवी देवताओं को पूजते हैं जबकी हमारे यहाँ बस एक खुदा है जिसके पैगाम से ही जन्नत तक पहुँचा जा सकता है.

श्री श्री - अलग अलग रुपों में एक ही परमात्मा है

SIMI - (व्याकुल होकर श्री श्री को बीच में ही काटते हुए) पर कुरान कहता है कि हमें केवल निराकार अल्लाह की इबादत करनी चाहिए जबकि हिन्दु पत्थर की मूर्ति की पूजा करते हैं.

श्री श्री - (इस पर श्री श्री ने अचानक उनसे पूछा) - क्या आप कुरान की इज्जत करते हैं?

SIMI -(इस प्रश्न से कुछ भौंचक्के से प्रतीत होते हुए) हाँ, यह तो अल्लाह का पैगाम है.

श्री श्री - क्या आप मक्का का आदर करते हैं?

SIMI – हाँ, वह तो हमारे लिए पाक जमीन है.

श्री श्री - इसी तरह हिन्दु भी भगवान की रचना को भगवान की तरह पूजते हैं. जैसे कुरान, ईद का चाँद, काबा, रमजान का महीना आप के लिए पाक है उसी तरह हिन्दुओं के लिए गंगा, हिमालय, ॠषि मुनि आदि पवित्र हैं.देखिए जैसे आपकी बेटी की फ़ोटो आपकी बेटी नहीं है फिर भी आप फ़ोटो को चाहते हैं. क्या फ़ोटो देखकर आपको अपनी बेटी की याद नहीं आती?

SIMI - (सब कहते हैं) हाँ.

श्री श्री - उसी प्रकार प्रतीक भगवान नहीं है पर भगवान की तरह पूजनीय है. यही पूजा और पवित्रता का भाव मनुष्य को जीवन्त बनाता है. इसी लिए सभी ॠषि मुनियों ने सारी सृष्टि और सम्पूर्ण जीवन को पवित्र माना है. उन्होंनें भगवान को सर्वव्यापी माना है जो अपनी सृष्टि से परे नहीं है. जैसे नृत्य और नर्तकी. श्री श्री ने और विस्तारपूर्वक बताया - आत्मा को विविधता प्रिय है. क्या सिर्फ एक ही तरह की सब्जी और् फल होते हैं? भगवान ने भिन्न भिन्न तरह के फल सब्जी रचे. केवल एक ही प्रकार का वृक्ष नहीं है, ना ही केवल एक ही प्रकार का साँप, बादल, मच्छर . आप अपने कपडे भी अवसर के अनुसार बदलते हैं. तो यह चेतना जो समस्त सृष्टि के रुप में अभिव्यक्त है - कैसे नीरस हो सकती है? केवल एक ही ईश्वर है अनेक रुपों में. केवल एक ही ईश्वर मानना चाहिए. जब तुम दिव्यता की इस विविधता को स्वीकार करते हो तो तुम कट्टरपंथी या रुढिवादी होने से बचते हो.

SIMI -(कमरे में सन्नाटा छा गया और निरउत्तर होकर चारों एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे. फिर उनका मुखिया बोला) मैं और मौलाओं से मश्विरा करके बताऊँगा.
श्री श्री - (करुणापूर्वक) कोई बात नहीं (हाथों को लहराते हुए) चलो मज़हब की बातें छोडते हैं, हम सब इन्सान हैं चलो एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करें और विकास के लिए सोचें.

SIMI - नहीं, नहीं, नहीं आप क्या कह रहे हैं? आप इस दुनिया की बातें कर रहे हैं. हम इस दुनिया में जो भी करते हैं वह मायने नहीं रखता. कुरान कहता है -शाश्वत जिन्दगी में जो हासिल होगा - वही मायने रखता है, भौतिक दुनिया की फ़िक्र छोड़ोे. कौम की खिदमत करके तुम दुनिया में ही फँसे रहोगे. तुम्हें अल्लाह के हुक्म की तामील करनी है. अल्लाह ही इकलौता खुदा है और मोहम्मद ही आखिरी पैगंबर.
श्री श्री - इस पर श्री श्री ने उनको रोका और कुछ देर बाद पूछा - क्या आपको लगता है कि सिक्खों के गुरु पैगम्बर नहीं है? क्या मीराबाई एक पैगम्बर नहीं है? या चैतन्य महाप्रभु?

SIMI - (एक बार पुनः सन्नाटा छा गया उनके चहरे के भाव में बदलाव था - कठोरता की जगह अब अनिश्चितता झलक रही थी. श्री श्री पहले जैसे ही स्वाभाविक थे) नहीं - आप जन्नत तभी जा सकते हैं जब आप अल्लाह और कुरान को मानते हैं.

श्री श्री - नहीं प्यारों, बुध्द, महावीर, नानक, ईसामसीह, शंकर सभी हैं क्या आप समझते हैं कि यह सब जन्नत में नहीं हैं. अगर नहीं हैं - तो जन्नत की अपेक्षा मैं इन लोगों के साथ रहना अधिक पसंद करुँगा.

SIMI - आप इतने अच्छे इन्सान हैं पर हमें आप पर तरस आता है क्योंकि आप हकीकत को नहीं समझ पा रहे हैं. आप अल्लाह तक नहीं पहुँच पाएँगे. आप को अल्लाह की रहमत कभी नहीं मिलेगी.
श्री श्री - कोई बात नहीं. (शरारत भरी मुस्कान के साथ) मैं तो इन लोगों के साथ में रहूँगा. (शंकर, नानक आदि)

( श्री श्री की धैर्य की सराहना करते हुए भी हम लोग इन युवकों के भ््रामित धारणाओं के प्रति चिंतित थे. कमरे में उपस्थित और लोग भी अधीर हो रहे थे कि श्री श्री इन चारों को इतना अधिक समय क्यों दे रहे हैं जो इतने ग्रहणशील भी नहीं हैं और जबकि बाहर सैकड़ों लोग श्री श्री के दर्शन मात्र की प्रतीक्षा में थे)
SIMI -क्या आप जानते हैं कि 1400 साल पहले बीच रेगिस्तान में अल्लाह नें कुदरत के राज क़ा ऐलान करा? जब विज्ञान का इजाद भी नहीं हुआ तो अल्लाह ने बताया कि अणु सबसे छोटा कण है.
श्री श्री - (मुस्कराते हुए कहा) हाँ - शास्त्रों में यही बात 10,000 साल पहले कही गई है. शास्त्रों में कहा जाता है धरती 1900 करोड वर्ष पुरानी है. सत् देश और काल के परे है. यह एक स्थान और एक समय से बंधा हुआ नहीं है. हमें एक वैज्ञानिक आध्यात्मिकता की आवश्यकता है.

आखिर में प्रसाद के रुप में श्री श्री ने चारों को लड्डू दिया. अब उनके चेहरों पर हल्की मुस्कुराहट की झलक थी. जाते जाते श्री श्री ने उनको गले से लगाया. निश्चित तौर पर उनकी कठोरता में कमी आ चुकी थी. क्या उनकी मनोवृत्ति में कुछ बदलाव था? हम सोच रहे थे - क्या यह मनोवृत्ति टिकी रहेगी या वह लोग अपनी पुराने कट्टरवादी वृत्ति में लौट जाएंगे? पर एक बात पक्की थी कि श्री श्री के साथ हुई इस मुलाकात को वह भूल नहीं पाएंगे.

बाद में जब श्री श्री भोजन कर रहे थे किसीने उनसे पूछा, ''ऐसा क्यों है कि इस्लाम दुनियाभर में इतने आतंकवादियों को जन्म दे रहा है? किसी भी दूसरे धर्म से इतने आतंकवादी नहीं उपजे - इसका क्या कारण है?

श्री श्री - उनके अंदर की आग और प्रतिबध्दता को देखो. उनकी अच्छाईयों को अपनाओ और सीखो कि तुम्हें क्या नहीं करना चाहिए. उन्हें खराब व्य्क्ति की उपाधि नहीं दो. उनको वेदान्त का ज्ञान नहीं मिला है. (फर मिर्च में घी मिलाते मिलाते श्री श्री मुस्कराते हुए बोले) इस सृष्टि में हरेक चीज क़ा अपना स्थान है.

1 comment:

Unknown said...

wonderful Iliked this & Paheli