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September 17, 2008
गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी तब मनाया जाता है,जब भगवान गणेश पृथ्वी पर अपने सभी भक्तो के लिए प्रकट हुए. गणेश गज के सिर वाले, शिव पार्वती के पुत्र, जिनको बुद्धि ,समृद्धि और सौभग्य प्रदान करने वाले सर्वोच्च देवता के रुप मॅ पूजा जाता है. हाँलाकि, यह उत्सव उनके जन्मदिवस के रुप मॅ मनाया जाता है, परंतु इस त्यौहार के पीछे क प्रतीक बहुत गूढ- है.
गणेश जी के सारतत्व आदि शँकराचार्य ने बहुत ही सुन्दर रूप मॅ लाया है. हाँलकि गणेश जी की उपासना गजवदन के रूप मॅ की जाती है लेकिन उनका यह रूप उनके परब्रम्ह रूप को उभारता है.गणेश जी का वर्णन ‘अजम निर्विकल्पम निराकारमेकम’ के रूप मॅ किया जाता है – जिसका मतलब है कि गणेश जी अजन्मा हैँ.
वे अजम हैँ, निराकार हैँ, व निर्विकल्प हैँ. गणेश उस चेतना के प्रतीक हैँ जो सब जगह व्याप्त है. ग्णेश उस ऊर्जा के स्रोत हैँ जो इस ब्रम्हांड का कारण है, जिससे सबकुछ उत्पन्न हुआ है और सबकुछ समा जाएगा. गणेश कहीँ बाहर नहीँ हैँ बल्कि हमारे जीवन के केन्द्र मए हैँ. परंतु यह बहुत ही सूक्ष्म ज्ञान है. हर कोई निराकार का अनुभव बिना आकार के नहीँ कर सकता है. हमारे प्राचीन ऋषि, मुनि तह जानते थे इसलिए उन्होँने यहाँ रूप बनाया जो सभी स्तर के लोगोँ के लिए लाभदायक हो और सभी इसे समझ सकेँ. वे जो इस निरकार का अनुभव नहीँ कर सकते , वे साकार की अभिव्यक्ति का कुछ अनुभव निर्वाह करने के बाद निराकार ब्राह्म्ण के रूप तक पहुँच जाते हैँ.
इसलिए वास्तविकता मॅ गणेश निराकार हैँ, फिर भी आदि शँकराचार्य ने उनके साकार रूप को पूजा और यह साकार रूप यह सन्देश देती है कि गणेश जी निराकार है. इस प्रकार यहाँ साकार रूप एक प्रारम्भ बिँदु के रूप मॅ पूर्ति करते हुए धीरे धीरे निराकार चेतना को अभिव्यक्त करती है. गणेश चतुर्थी निराकार परमात्मा – श्री गणेश तक बार बार उनके अभिव्यक्त रूप की पूजा कर , पहुँचने की अनूठी कला है. यहाँ तक की गणेश स्त्रोम जो गणेश जी की प्रशँसा मॅ गाया जाता है . वह भी यही ब्ताता है. हम गणेश जी से प्रार्थना करते हैँ कि वे कुछ समय के लिए हमारी चेतना से निकल कर गणेश मूर्ति मॅ विराजेँ जिससे हम उनके साथ खेल सकेँ. पूज के समापन के बाद हमारा उनसे अपनी चेतना मॅ वापस आने के लिए प्रार्थना करते है. जब वे मूर्ति मॅ विराजित होटल हैँ तब हमारा पूजा के द्वारा भगवान को वही अर्पण करते हैँ जो भगवान ने हमेँ दिया है.
कुछ दिनोँ कि पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन यहाँ प्रबलता से समझाता है कि भ्गवान मूर्ति मॅ नहीँ बल्कि हमारे अन्दर हैँ. तो सर्वव्यापी को साकार मॅ अनुभव करना और उससे आनन्द प्राप्त करना ही गणेश चतुर्थी का सार है. एक तरह से ऐसे उत्सव का आतयोजन करना एक जोश और भक्ति की लहर का नेत्रित्व करती है.
गणेश हमारे भीतर के सभी अच्छे गुणो के देवता हैँ.इसलिए जब हम उनकी पूजा करते हैँ तब हमारे अन्दर के सभी अच्छे गुण खिल जाते हैँ. वे बुद्धि व ज्ञान के भी देवता हैँ. जब हमारा अपनी आत्मा के बारे मॅ सजग होते हैँ तब हमारे अन्दर ज्ञान का उदय होता है. जहाँ आलस्य है वहाँ अज्ञान है, बुद्धि नहीँ है, चैतन्यता नहीँ है और जीवन का विकास भी नहीँ है. इसलिए चेतना को जगाना है, और इस चेतना मॅ व्याप्त श्री गणेश ही हैँ. तभी हर पूजा के पहले गणेश जी की पूजा होती है.
इसलिए, गणेश जी की मूर्ति अपने अन्दर ही स्थापित कर, उनका ध्यान व अनुभव कर अनंत प्रेम के साथ उनकी पूजा करनाहै. यही गणेश चतुर्थी का प्रतीकात्मक सार है, अपने अन्दर व्याप्त गणेश तत्व को जगाना है.
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